श्री सत्यनारायण व्रत कथा - द्वितीय अध्याय
सूत जी ने ऋषियों को बताया कि किस प्रकार श्री सत्यनारायण व्रत ने पहले के समय में कठिनाइयों से जूझते हुए मनुष्यों को सुख, संपत्ति और मोक्ष प्राप्त करने में सहायता की। उन्होंने काशीपुरी नगरी के एक निर्धन ब्राह्मण का उदाहरण देते हुए समझाया कि कैसे इस व्रत ने उसके जीवन में चमत्कारिक बदलाव लाया।
निर्धन ब्राह्मण की कथा
सुंदर काशीपुरी में एक अत्यंत गरीब ब्राह्मण रहता था, जो भूख-प्यास से व्यथित होकर दिन-रात भिक्षा माँगने के लिए नगर में भटकता रहता था।
एक दिन, भगवान सत्यनारायण ने वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर उससे पूछा,
“हे विप्र! तुम इतने दुखी होकर यहाँ-वहाँ क्यों घूमते हो?” उस निर्धन ब्राह्मण ने बताया, “हे प्रभु! मैं अत्यंत गरीब हूँ, और भिक्षा माँगकर ही अपना जीवन यापन करता हूँ। यदि आप मेरी सहायता कर सकते हैं, तो कृपया कोई उपाय बताएं जिससे मेरी दरिद्रता दूर हो सके।”
भगवान ने ब्राह्मण के वेश में उसे सत्यनारायण व्रत का विधान बताया और कहा कि यह व्रत मनुष्य की सभी इच्छाओं को पूर्ण करता है और उसके सारे दुखों का नाश करता है।
इतना कहने के बाद भगवान वहाँ से अंतर्धान हो गए।
निर्धन ब्राह्मण ने इस व्रत को करने का निश्चय किया और उस रात उसे नींद नहीं आई।
अगले दिन, वह सत्यनारायण व्रत करने का संकल्प लेकर भिक्षा माँगने निकला, और उस दिन उसे पहले से कहीं अधिक भिक्षा मिली।
व्रत के प्रभाव से जीवन में बदलाव
प्राप्त भिक्षा से उसने अपने बंधु-बांधवों को बुलाकर विधिपूर्वक सत्यनारायण भगवान का व्रत किया।
इस व्रत के प्रभाव से उसकी दरिद्रता समाप्त हो गई और उसके जीवन में धन-संपत्ति का आगमन हुआ।
इसके बाद वह ब्राह्मण हर माह श्रद्धापूर्वक सत्यनारायण व्रत करने लगा और उसके जीवन में सुख-समृद्धि बनी रही।
सूत जी ने बताया कि इस व्रत को करने वाले व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
लकड़हारे की कथा
ऋषियों की जिज्ञासा पर सूत जी ने आगे बताया कि उस निर्धन ब्राह्मण से सत्यनारायण व्रत के बारे में सुनकर कई अन्य लोगों ने भी इस व्रत को किया।
उनमें से एक लकड़हारा भी था।
एक दिन, जब वह ब्राह्मण सत्यनारायण व्रत कर रहा था, तभी वह लकड़हारा वहां पहुंचा।
प्यास से व्याकुल लकड़हारे ने ब्राह्मण को व्रत करते देखा और उनसे नम्रता से पूछा,
“हे ब्राह्मण देव! आप यह कौन-सा व्रत कर रहे हैं, और इससे क्या लाभ मिलता है?”
ब्राह्मण ने उसे बताया कि यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है, जो सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।
इस व्रत के कारण मेरे जीवन में भी धन-धान्य की वृद्धि हुई है।
ब्राह्मण की बातों को सुनकर लकड़हारे के मन में भी इस व्रत को करने की इच्छा उत्पन्न हुई।
उसने तुरंत संकल्प लिया कि आज लकड़ी बेचने से जो भी धन प्राप्त होगा, उससे वह सत्यनारायण व्रत करेगा।
लकड़हारे की जीवन में चमत्कार
लकड़हारे ने सिर पर लकड़ी रखी और उन लकड़ियों को बेचने के लिए नगर में गया।
उसे आश्चर्य हुआ कि उस दिन उसकी लकड़ियों का दाम चार गुना अधिक मिला।
इस अप्रत्याशित लाभ से प्रसन्न होकर वह केले, शक्कर, घी, दूध, दही, और गेहूं का आटा लेकर अपने घर लौटा।
उसने अपने परिवार और मित्रों को आमंत्रित कर विधिपूर्वक सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया।
इस व्रत के प्रभाव से उसके जीवन में संपत्ति, पुत्र, और हर प्रकार का सुख प्राप्त हुआ।
उसने अपने जीवन में जो भी कठिनाइयाँ झेलीं थीं, वे सब समाप्त हो गईं।
अंत समय में वह भगवान सत्यनारायण की कृपा से बैकुंठ धाम को प्राप्त हुआ।
व्रत का महत्व
सूत जी ने ऋषियों से कहा कि श्री सत्यनारायण व्रत सभी प्रकार के दुखों का नाश करने वाला और मनुष्यों के पापों का नाश करने वाला है।
इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने वाले व्यक्ति को निश्चित रूप से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
इस व्रत का पालन करना बहुत सरल है, परंतु इसके लाभ अत्यंत महान हैं।
सत्यनारायण व्रत की कथा में यह संदेश निहित है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया कोई भी व्रत अथवा तप मनुष्य के जीवन में सुख और समृद्धि लेकर आता है।
चाहे वह निर्धन ब्राह्मण हो या एक साधारण लकड़हारा, इस व्रत को करने से उनके जीवन में बदलाव आया और अंततः वे भगवान की कृपा प्राप्त कर सके।
।। इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण।।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय!
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