मां शैलपुत्री: नवरात्रि के प्रथम दिन की पूजा विधि, महात्म्य और कथा

नवरात्रि का प्रथम दिन मां शैलपुत्री की उपासना के लिए समर्पित होता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री प्रथम रूप हैं। उनका यह स्वरूप अत्यंत शांतिपूर्ण और दिव्य है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। यह दिन सभी शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि मां शैलपुत्री की उपासना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग खुलता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन क्या करना चाहिए?
नवरात्रि का आरंभ करने से पहले भक्तों को शुद्धता और पवित्रता का पालन करना चाहिए। दिन की शुरुआत प्रातःकाल स्नान और स्वच्छ वस्त्र धारण करके होती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करना अत्यंत आवश्यक होता है। यह कलश देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और इससे पूरे नवरात्रि की पूजा विधि शुरू होती है।

कलश स्थापना विधि

सबसे पहले एक शुद्ध ताम्बे या मिट्टी के कलश को लें और उसमें गंगाजल भरें।
कलश के ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखें।
कलश को चावल के ढेर पर रखें और उसमें दूब, सिक्का और सुपारी डालें।
इस कलश की पूजा करें और दीपक जलाकर मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने स्थापित करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा विधि शुरू की जाती है। सफेद फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित कर मां की आराधना की जाती है।

मां शैलपुत्री का स्वरूप
मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत, दिव्य और सौम्य होता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं और उनके दाएं हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। त्रिशूल उनके शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि कमल का पुष्प पवित्रता और शांति का संकेत देता है। मां शैलपुत्री के इस स्वरूप को देखकर यह समझा जा सकता है कि वह भक्तों को संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं, जिसमें शक्ति और करुणा का संतुलन हो।

मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा
मां शैलपुत्री के जन्म की कथा पुराणों में विस्तार से बताई गई है। उनके पूर्व जन्म की कहानी देवी सती से जुड़ी हुई है, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इस अपमान का पता चला, तो वह अत्यंत दुखी हुईं और अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के पहुंचीं। यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया। अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मीं और उन्हें शैलपुत्री कहा गया।

मां शैलपुत्री ने कठिन तपस्या के बाद पुनः भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। यह कथा दर्शाती है कि मां शैलपुत्री आत्मशक्ति, संकल्प और धैर्य की देवी हैं। उनके इस रूप की उपासना से साधक को जीवन में सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए। पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।

मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें
मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व
मां शैलपुत्री की पूजा का आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण से अत्यंत महत्व है। उनका आशीर्वाद जीवन में स्थिरता, मानसिक शांति और सफलता लाता है। विशेष रूप से जो लोग मानसिक और शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, उनके लिए मां शैलपुत्री की उपासना अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
भक्तों का मानना है कि मां शैलपुत्री की कृपा से सभी दुखों और बाधाओं का अंत होता है और व्यक्ति को जीवन के हर पहलू में सफलता प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री की उपासना के लिए विशेष स्तोत्र

मां शैलपुत्री की उपासना में विशेष स्तोत्र का पाठ किया जाता है। यह स्तोत्र मां की महिमा और गुणों का वर्णन करता है और उनके आशीर्वाद से साधक को आध्यात्मिक लाभ मिलता है। स्तोत्र का पाठ करने से साधक के जीवन में सकारात्मकता का प्रवाह होता है और उसे मानसिक शांति प्राप्त होती है।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नवरात्रि के प्रथम दिन शैलपुत्री स्वरूप की उपासना विधि
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना के दौरान निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है:

प्रातः स्नान के बाद मां शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
उन्हें सफेद वस्त्र अर्पित करें और सफेद फूलों से उनकी पूजा करें।
धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित कर मां का आशीर्वाद प्राप्त करें।

इस दौरान मां शैलपुत्री के इस मंत्र का जाप करें
मंत्र

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।
इस मंत्र का जाप नवरात्रि के प्रथम दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इससे साधक को आत्मशक्ति और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री की पूजा के लाभ: स्वास्थ्य, धन, व्यापार, शिक्षा और प्रेम जीवन

स्वास्थ्य: मां शैलपुत्री की उपासना से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से शरीर में ऊर्जा और मन में शांति का अनुभव होता है। जो लोग लंबे समय से बीमारियों से जूझ रहे होते हैं, उनके लिए मां शैलपुत्री की उपासना विशेष लाभकारी मानी जाती है।

धन और वित्त: मां शैलपुत्री की पूजा से साधक के जीवन में धन और समृद्धि का प्रवाह होता है। जो लोग आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे होते हैं, उनके लिए मां की उपासना अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।

व्यापार: मां शैलपुत्री का आशीर्वाद व्यापार में सफलता और समृद्धि लाता है। नवरात्रि के पहले दिन मां की आराधना करने से व्यापार में आने वाली सभी रुकावटें दूर होती हैं और व्यवसाय में वृद्धि होती है।

शिक्षा: मां शैलपुत्री की उपासना से विद्यार्थियों को शिक्षा में सफलता मिलती है। जो विद्यार्थी अपने भविष्य के अध्ययन के लिए मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, उन्हें हर परीक्षा में सफलता प्राप्त होती है।

वास्तु: मां शैलपुत्री की पूजा से घर का वास्तु दोष भी दूर होता है। उनका आशीर्वाद घर में शांति, प्रेम और सौहार्द बनाए रखने में मदद करता है। वैवाहिक जीवन और प्रेम: मां शैलपुत्री की उपासना वैवाहिक जीवन और प्रेम संबंधों में आने वाली बाधाओं को दूर करती है। उनके आशीर्वाद से दांपत्य जीवन में सुख, प्रेम और सामंजस्य बना रहता है।


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