व्यतिपात योग का परिचय
हिंदू धर्म में योगों का विशेष महत्त्व है, जिनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और दुर्लभ योग 'व्यतिपात योग' है। यह योग अपने विशेष प्रभावों और महत्त्व के कारण धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित है। वाराह पुराण में इस योग की अद्भुत महिमा का वर्णन मिलता है, जिसमें बताया गया है कि इस योग के दौरान किया गया जप, तप, दान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान सामान्य समय की तुलना में 1 लाख गुना अधिक फलदायी होते हैं।
व्यतिपात योग का आगामी मुहूर्त
वर्ष 2025 में व्यतिपात योग निम्नलिखित तिथियों पर रहेगा:
सोमवार, 24 फरवरी 2025 प्रातःकाल से मंगलवार, 25 फरवरी 2025 प्रातः 08:15 बजे तक
इस दौरान किया गया दान, जप, और तप सर्वोत्तम फलदायी होगा।
व्यतिपात योग की उत्पत्ति और पौराणिक कथा
एक प्राचीन कथा के अनुसार, जब चंद्रमा ने गुरु बृहस्पति की पत्नी तारा का हरण किया, तो इस बात से सूर्य देव अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने चंद्रमा को इस कार्य के लिए फटकार लगाई, लेकिन चंद्रमा ने उनकी बातों की अवहेलना की। इससे सूर्य और चंद्रमा के बीच क्रोध उत्पन्न हुआ और दोनों की दृष्टि के टकराव से एक भयंकर पुरुष उत्पन्न हुआ।
यह पुरुष अत्यंत विशालकाय, अठारह हाथों वाला और भयावह स्वर में गर्जना करने वाला था। उसका मुख खुला हुआ था मानो वह समस्त संसार को निगल जाएगा। इस भयावह दृश्य को देखकर सूर्यदेव को अपने गुरु की याद आई और उनके नेत्रों से आँसू बह निकले। यह वही क्षण था जब 'व्यतिपात योग' का जन्म हुआ।
सूर्य और चंद्रमा ने इस भयावह पुरुष को शांत करने के लिए कहा कि वह उनका आदेश माने। चूँकि वह उनके कोप से उत्पन्न हुआ था, इसलिए उसका नाम 'व्यतिपात' रखा गया। देवताओं ने उसे आश्वस्त किया कि जो भी इस योग में दान, स्नान, उपवास और पूजन करेगा, उसे अपार पुण्य प्राप्त होगा। साथ ही, जो इस योग में अनुष्ठान करेगा, वह दीर्घायु, धनवान और समृद्ध होगा। स्त्रियों के सुहाग की रक्षा होगी और संतान प्राप्ति के योग बनेंगे।
व्यतिपात योग का महत्व और धार्मिक अनुष्ठान
वर्ष में 13 बार व्यतिपात योग आता है, और इस दिन विशेष रूप से निम्नलिखित कार्य करने से अत्यधिक पुण्य फल प्राप्त होता है:
स्नान एवं ध्यान:
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि नदी स्नान संभव न हो, तो घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करने से भी पुण्य प्राप्त होता है।
दान एवं धर्म-कर्म:
इस दिन गरीबों को अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं।
विशेष रूप से तिल, गुड़, वस्त्र, फल, अनाज और दक्षिणा देने का अधिक महत्त्व है।
व्रत एवं उपवास:
व्यतिपात योग में उपवास रखने से सभी प्रकार के दोष समाप्त होते हैं।
विशेष रूप से इस दिन निर्जला उपवास करने से एक लाख गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है।
जप एवं हवन:
इस योग में मंत्र जप, विशेष रूप से 'सूर्य मंत्र' और 'गायत्री मंत्र' का जाप करने से अत्यधिक लाभ होता है।
हवन करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और ग्रह दोषों का निवारण होता है।
पौराणिक कथा: व्यतिपात योग से उद्धार की कथा
महाभारत काल में राजा युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय मुनि से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त की जा सके? तब मुनि ने कहा कि व्यतिपात योग का व्रत करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं। इस संदर्भ में एक प्राचीन कथा प्रचलित है:
एक समय की बात है, एक सेठ जिसका नाम भुण्ड था, पूर्व जन्म में एक व्यापारी था। एक दिन, व्यतिपात योग के दौरान एक गरीब ब्राह्मण उसकी दुकान पर आया और भोजन का दान माँगा। लेकिन सेठ ने उसे अपमानित करके भगा दिया। ब्राह्मण ने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया कि अगले जन्म में वह भयंकर जंगल में भूखा-प्यासा घूमता रहेगा। अगले जन्म में वह भुण्ड नामक जीव बना और जंगल में कष्ट भोगने लगा।
कई वर्षों बाद, एक दिन राजा हर्ष उस जंगल से गुजरा और उसने इस पीड़ित जीव को देखा। जब राजा ने उससे उसकी पीड़ा का कारण पूछा, तो भुण्ड ने अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाई और राजा से अनुरोध किया कि यदि उसने व्यतिपात योग का व्रत किया हो, तो उसका पुण्य उसे दान कर दे। राजा ने व्यतिपात योग का संकल्प लेकर अपना पुण्य दान किया, जिससे भुण्ड को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वह स्वर्ग चला गया।
व्यतिपात योग का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यतिपात योग में सूर्य और चंद्रमा की विशेष स्थिति के कारण पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रवाह परिवर्तित होता है। इस समय किया गया साधना, ध्यान, और जप अत्यंत फलदायी होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, इस दौरान गुरुत्वाकर्षण बल और चंद्र प्रभाव अधिक सक्रिय रहता है, जिससे मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है
व्यतिपात योग केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि यह एक अत्यंत शुभ योग है जो आध्यात्मिक उन्नति के लिए सर्वोत्तम अवसर प्रदान करता है। जो भी इस योग में धार्मिक अनुष्ठान करता है, वह जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस योग में किए गए पुण्य कार्यों का फल कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। अतः इस अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिए और दान, व्रत, जप, तथा तप का पालन करना चाहिए।