भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया. उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा. इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा. जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा। सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्रीसत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा. हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ? ऋषि बोले – हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं. इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है. सूत जी बोले – हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो ! एक समय वही विप्र धन व ऎश्वर्य के अनुसार अपने बंधु-बाँधवों के साथ इस व्रत को करने को तैयार हुआ. उसी समय एक एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया और लकड़ियाँ बाहर रखकर अंदर ब्राह्मण के घर में गया. प्यास से दुखी वह लकड़हारा उनको व्रत करते देख विप्र को नमस्कार कर पूछने लगा कि आप यह क्या कर रहे हैं तथा इसे करने से क्या फल मिलेगा? कृपया मुझे भी बताएँ. ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है. इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन धान्य आदि की वृद्धि हुई है। विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ. चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया. लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूँगा. मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियाँ रख उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे. उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है। बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियाँ लेकर अपने घर गया. वहाँ उसने अपने बंधु-बाँधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया. ।।
इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण।। श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
इस पर श्री भगवान क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि साधु को अत्यधिक दुख मिले. अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाई को लेकर समुद्र के पास स्थित होकर रत्नासारपुर नगर में गया. वहाँ जाकर दामाद-ससुर दोनों मिलकर चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे. एक दिन भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था. उसने राजा के सिपाहियों को अपना पीछा करते देख चुराया हुआ धन वहाँ रख दिया जहाँ साधु अपने जमाई के साथ ठहरा हुआ था. राजा के सिपाहियों ने साधु वैश्य के पास राजा का धन पड़ा देखा तो वह ससुर-जमाई दोनों को बाँधकर प्रसन्नता से राजा के पास ले गए और कहा कि उन दोनों चोरों हम पकड़ लाएं हैं, आप आगे की कार्यवाही की आज्ञा दें. राजा की आज्ञा से उन दोनों को कठिन कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन भी उनसे छीन लिया गया. श्रीसत्यनारायण भगवान से श्राप से साधु की पत्नी भी बहुत दुखी हुई. घर में जो धन रखा था उसे चोर चुरा ले गए. शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा व भूख प्यास से अति दुखी हो अन्न की चिन्ता में कलावती के ब्राह्मण के घर गई. वहाँ उसने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत होते देखा फिर कथा भी सुनी वह प्रसाद ग्रहण कर वह रात को घर वापिस आई. माता के कलावती से पूछा कि हे पुत्री अब तक तुम कहाँ थी़? तेरे मन में क्या है? कलावती ने अपनी माता से कहा – हे माता ! मैंने एक ब्राह्मण के घर में श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत देखा है. कन्या के वचन सुन लीलावती भगवान के पूजन की तैयारी करने लगी. लीलावती ने परिवार व बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और उनसे वर माँगा कि मेरे पति तथा जमाई शीघ्र घर आ जाएँ. साथ ही यह भी प्रार्थना की कि हम सब का अपराध क्षमा करें. श्रीसत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चन्द्रकेतु को सपने में दर्शन दे कहा कि – हे राजन ! तुम उन दोनो वैश्यों को छोड़ दो और तुमने उनका जो धन लिया है उसे वापिस कर दो. अगर ऎसा नहीं किया तो मैं तुम्हारा धन राज्य व संतान सभी को नष्ट कर दूँगा. राजा को यह सब कहकर वह अन्तर्धान हो गए। प्रात:काल सभा में राजा ने अपना सपना सुनाया फिर बोले कि बणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाओ. दोनो ने आते ही राजा को प्रणाम किया. राजा मीठी वाणी में बोला – हे महानुभावों ! भाग्यवश ऎसा कठिन दुख तुम्हें प्राप्त हुआ है लेकिन अब तुम्हें कोई भय नहीं है. ऎसा कह राजा ने उन दोनों को नए वस्त्राभूषण भी पहनाए और जितना धन उनका लिया था उससे दुगुना धन वापिस कर दिया. दोनो वैश्य अपने घर को चल दिए।
।। इति श्रीसत्यनारायण भगवान व्रत कथा का तृतीय अध्याय संपूर्ण ।। श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।।
जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी. निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है. संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है. सूतजी बोले – जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा कहता हूँ. वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की. लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया. उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए. साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया. महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया.
।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण ।।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय ।। कथा श्रवण के बाद श्री सत्यनारायणजी की आरती करें और अंत मे 3 बार प्रदक्षिणा कर आटे की पंजीरी में विविध फल और दही लस्सी का चरणामृत बना कर सभी लोगो प्रसाद स्वरूप बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें।
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में से यह दूसरा स्वरूप अत्यंत पवित्र, शुद्ध और तपस्या का प्रतीक है। ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ होता है तपस्या या तपस्वी जीवन, और ‘चारिणी’ का अर्थ होता है आचरण करने वाली। इस प्रकार, मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप संयम, साधना और अनुशासन का प्रतीक है। नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा उनके तपस्वी रूप की आराधना के रूप में की जाती है।
नवरात्रि के द्वितीय दिन क्या करना चाहिए?
द्वितीय नवरात्रि के दिन भक्तों को संयम, आत्मनियंत्रण और एकाग्रता का पालन करना चाहिए। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करने से साधक को जीवन के कठिन समय में धैर्य, शांति और शक्ति प्राप्त होती है। यह दिन विशेष रूप से मानसिक शांति और धैर्य को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। पूजा के साथ-साथ, इस दिन व्रत रखने और अपने आचरण को शुद्ध रखने का भी विशेष महत्व है।
कलश की पूजा और नवदुर्गा का आह्वान: नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है, जो पूरे नवरात्रि के दौरान पूजनीय होती है। दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय कलश के सामने दीप जलाकर नवदुर्गा का आह्वान किया जाता है। दीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्त के मन को शांति मिलती है।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और तपस्विनी है। वह दो हाथों वाली देवी हैं। उनके एक हाथ में जप की माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। जप माला उनके निरंतर ध्यान और साधना का प्रतीक है, जबकि कमंडल उनके तपस्वी जीवन और वैराग्य का संकेत देता है। इस स्वरूप से यह संदेश मिलता है कि आत्मसंयम, साधना और तपस्या जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा
मां ब्रह्मचारिणी का पूर्व जन्म की कथा भी देवी सती से जुड़ी हुई है। अपने पिछले जन्म में, मां सती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। यह तपस्या इतनी कठोर थी कि उन्होंने हजारों वर्षों तक केवल फल और फिर केवल पत्तों पर ही अपना जीवन बिताया। अंततः उन्होंने पानी तक का त्याग कर दिया। उनकी कठोर तपस्या से सभी देवता और ऋषि-मुनि प्रभावित हुए। उनके इस तपस्वी जीवन के कारण ही उन्हें 'ब्रह्मचारिणी' कहा गया।
उनकी तपस्या की यह कथा प्रेरणादायक है और यह संदेश देती है कि संकल्प, धैर्य और तपस्या से किसी भी कठिन कार्य को सिद्ध किया जा सकता है। उनकी साधना और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। यह कथा हमें जीवन में धैर्य और समर्पण का महत्व सिखाती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि में विशेष रूप से शुद्धता और संयम का ध्यान रखा जाता है। पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
मां ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
मां को सफेद रंग के फूल अर्पित करें, क्योंकि सफेद रंग पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है।
उन्हें धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
मां ब्रह्मचारिणी के ध्यान और तपस्या का स्मरण करते हुए उनके इस मंत्र का जाप करें:
मंत्र:
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः।
इस मंत्र का जाप करने के बाद मां ब्रह्मचारिणी को फल, मिश्री और पंचामृत का भोग अर्पित करें।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती करें और उन्हें अपनी साधना और तपस्या से प्रसन्न करने के लिए प्रार्थना करें।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना साधक के जीवन में संयम, शक्ति और अनुशासन का संचार करती है। उनकी कृपा से साधक को तपस्वी जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है और कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है।
जो लोग जीवन में मानसिक अशांति या अव्यवस्था का अनुभव कर रहे होते हैं, उनके लिए मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। उनकी कृपा से व्यक्ति को जीवन में संतुलन और धैर्य की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और महात्म्य
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत साधारण होते हुए भी अद्वितीय तपस्विनी है। उनका तप और साधना यह सिखाता है कि जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या और संकल्प आवश्यक हैं।
उनके तपस्वी स्वरूप का दर्शन भक्तों को यह प्रेरणा देता है कि भौतिक सुखों की चाह छोड़कर, ईश्वर की उपासना और ध्यान में लीन होना ही सच्चा आनंद है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से साधक को जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना के विशेष स्तोत्र
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना में निम्नलिखित स्तोत्र का पाठ किया जाता है। यह स्तोत्र मां ब्रह्मचारिणी के गुणों और महिमा का वर्णन करता है और साधक को मानसिक शांति और आत्मशक्ति प्रदान करता है।
या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लाभ
स्वास्थ्य: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। जो लोग मानसिक तनाव या अवसाद का सामना कर रहे होते हैं, उनके लिए मां की उपासना अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
धन और वित्त: मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से व्यक्ति के जीवन में स्थिरता और संतुलन आता है, जिससे वित्तीय समस्याओं का समाधान होता है। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से व्यक्ति को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा मिलती है।
व्यापार: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से व्यापार में सफलता और वृद्धि होती है। उनकी कृपा से व्यवसाय में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और व्यापार में स्थिरता प्राप्त होती है।
शिक्षा: विद्यार्थी वर्ग के लिए मां ब्रह्मचारिणी की उपासना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके आशीर्वाद से छात्रों को पढ़ाई में एकाग्रता और धैर्य मिलता है, जिससे वे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।
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वास्तु: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से घर और कार्यस्थल का वास्तु दोष दूर होता है और वहां सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
वैवाहिक जीवन और प्रेम: मां ब्रह्मचारिणी की उपासना वैवाहिक जीवन और प्रेम संबंधों में सामंजस्य और प्रेम बनाए रखने में सहायक होती है। उनकी कृपा से जीवनसाथी के साथ संबंध मधुर और स्थिर रहते हैं।
भविष्य की योजना और अध्ययन: जो लोग अपने भविष्य के लिए अध्ययन कर रहे हैं या किसी विशेष योजना पर काम कर रहे हैं, उनके लिए मां ब्रह्मचारिणी की उपासना अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। उनकी कृपा से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
नवरात्रि का द्वितीय दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनकी पूजा विधि, तपस्या और कथा का स्मरण हमें जीवन में धैर्य, संयम और आत्मसंयम के महत्व को सिखाता है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से जीवन में संतुलन, शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
मां ब्रह्मचारिणी के आशीर्वाद से व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मविश्वास और धैर्य प्राप्त होता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं।
आज का दिन आपके लिए आशा और नई संभावनाओं से भरा हुआ है। तारा टैरो कार्ड आज आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव और नवीनीकरण का संकेत दे रहा है। यह दिन आपको आत्म-सुधार और आत्म-ज्ञान के रास्ते पर ले जा सकता है। अगर आप पिछले कुछ दिनों से तनाव में थे, तो आज आपको शांति और स्थिरता प्राप्त होगी।
व्यक्तिगत जीवन: आज आपके व्यक्तिगत जीवन में शांति और सामंजस्य रहेगा। जिन समस्याओं का सामना आप लंबे समय से कर रहे थे, वे अब धीरे-धीरे सुलझने लगी हैं। आपको अपने संबंधों में नई ऊर्जा और ताजगी का अनुभव होगा। अगर आप किसी के साथ संवाद सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, तो आज का दिन इसके लिए बेहतरीन है।
पेशेवर जीवन: आपका पेशेवर जीवन भी नई संभावनाओं की ओर बढ़ रहा है। अगर आप किसी नई परियोजना पर काम कर रहे हैं, तो यह दिन आपके लिए रचनात्मक ऊर्जा और प्रेरणा से भरा होगा। अपने काम में नई दिशा और स्थिरता मिलेगी, जिससे आप अपनी योजनाओं को साकार कर पाएंगे।
स्वास्थ्य: तारा कार्ड आज आपके स्वास्थ्य के लिए भी एक सकारात्मक संकेत दे रहा है। अगर आप किसी स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं, तो आज आपको सुधार महसूस हो सकता है। योग और ध्यान जैसे आत्मिक अभ्यास आज आपके लिए फायदेमंद रहेंगे।
आध्यात्मिकता: यह दिन आत्म-चिंतन और आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए उपयुक्त है। आप अपने जीवन के उद्देश्य और अपनी आंतरिक शक्तियों के प्रति अधिक सजग होंगे। आज का दिन आध्यात्मिक प्रथाओं को गहराई से अपनाने और आत्मा से जुड़ने का है।
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए।
पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:
प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए। पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:
प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
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मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत, दिव्य और सौम्य होता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं और उनके दाएं हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। त्रिशूल उनके शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि कमल का पुष्प पवित्रता शांति का संकेत देता है। मां शैलपुत्री के इस स्वरूप को देखकर यह समझा जा सकता है कि वह भक्तों को संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं, जिसमें शक्ति और करुणा का संतुलन हो।
मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा
मां शैलपुत्री के जन्म की कथा पुराणों में विस्तार से बताई गई है। उनके पूर्व जन्म की कहानी देवी सती से जुड़ी हुई है, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इस अपमान का पता चला, तो वह अत्यंत दुखी हुईं और अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के पहुंचीं। यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया। अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मीं और उन्हें शैलपुत्री कहा गया।
मां शैलपुत्री ने कठिन तपस्या के बाद पुनः भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। यह कथा दर्शाती है कि मां शैलपुत्री आत्मशक्ति, संकल्प और धैर्य की देवी हैं। उनके इस रूप की उपासना से साधक को जीवन में सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
नवरात्रि का प्रथम दिन मां शैलपुत्री की उपासना के लिए समर्पित होता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री प्रथम रूप हैं। उनका यह स्वरूप अत्यंत शांतिपूर्ण और दिव्य है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। यह दिन सभी शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि मां शैलपुत्री की उपासना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग खुलता है।
नवरात्रि के प्रथम दिन क्या करना चाहिए?
नवरात्रि का आरंभ करने से पहले भक्तों को शुद्धता और पवित्रता का पालन करना चाहिए। दिन की शुरुआत प्रातःकाल स्नान और स्वच्छ वस्त्र धारण करके होती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करना अत्यंत आवश्यक होता है। यह कलश देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और इससे पूरे नवरात्रि की पूजा विधि शुरू होती है।
कलश स्थापना विधि:
सबसे पहले एक शुद्ध ताम्बे या मिट्टी के कलश को लें और उसमें गंगाजल भरें।
कलश के ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखें।
कलश को चावल के ढेर पर रखें और उसमें दूब, सिक्का और सुपारी डालें।
इस कलश की पूजा करें और दीपक जलाकर मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने स्थापित करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा विधि शुरू की जाती है। सफेद फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित कर मां की आराधना की जाती है।
मां शैलपुत्री का पूजा मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर नवम दिन की पूजा विधि का से वर्णन किया गया है:
नवमी दिन: सिद्धिदात्री (नवमी)
इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!
नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। अष्टम दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर अष्टम दिन की पूजा विधि का वर्णन किया गया है:
अष्टमी दिन: महागौरी (अष्टमी)
सामान्य पूजा विधि
इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!
सप्तमी दिन: कालरात्रि (सप्तमी)
नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है।सप्तम दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है।
यहाँ पर सप्तम दिन की पूजा विधि का वर्णन किया गया है:
सामान्य पूजा विधि
इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!