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2023-12-30

मकर संक्रांति 15-1- 2024 TIME 02-44 AM सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे

मकर संक्रांति का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है। साल में वैसे 12 संक्रांति मनाई जाती है लेकिन, मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य धनु राशि के निकलकर मकर राशि में संचार करते हैं। इसलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं साल 2024 में मकर संक्रांति कब मनाई जाएगी। आइए जानते हैं मकर संक्रांति की सही तारीख और तिथि।

मकर संक्रांति 15�1 2024 TIME 0244 AMसूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे
नए साल यानी 2024 में मकर संक्रांति 15 जनवरी सोमवार के दिन मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे। मकर संक्रांति देश के अलग अलग कोने में अलग अलग नामों से जाना जाता है। उत्तरायण, पोंगल, मकरविलक्कु, माघ और बिहु। शास्त्र के अनुसार, इस दिन पवित्र नदी में स्नान और दान पुण्य करने से व्यक्ति को कभी भी खत्म होने वाले पुण्य प्राप्त होता है।

 

मकर संक्रांति का महत्व

58 दिन बाणों की शैया पर बिताने के बाद मकर संक्राति को भीष्म पितामह ने त्यागे थे प्राण, इच्छा मृत्यु का वरदान था प्राप्त

18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन तक लगातार भीष्म पितामह लड़े थे।

महर्षि वेदव्यास की महान रचना महाभारत ग्रंथ के प्रमुख पात्र भीष्म पितामह हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे एकमात्र ऐसे पात्र है जो महाभारत में शुरूआत से अंत तक बने रहे।

18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन तक लगातार भीष्म पितामह लड़े थे।

पितामह भीष्म के युद्ध कौशल से व्याकुल पाण्डवों को स्वयं पितामह ने अपनी मृत्यु का उपाय बताया।

भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे लेकिन अपना शरीर नहीं त्यागा क्योंकि वे चाहते थे कि जिस दिन सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे अपने प्राणों का त्याग करेंगे।

 

1.भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था इसलिए उन्होने स्वंय ही अपने प्राणों का सूर्य उत्तरायण यानी कि मकर संक्राति के दिन त्याग किया।

 

2.जिस समय महाभारत का युद्ध चला कहते हैं उस समय अर्जुन की उम्र 55 वर्ष, भगवान कृष्ण की उम्र 83 वर्ष और भीष्म पितामह की उम्र 150 वर्ष के लगभग थी।

 

3.भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान स्वयं उनके पिता राजा शांतनु द्वारा दिया गया था क्योंकि अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए भीष्म पितामह ने अखंड ब्रह्मचार्य की प्रतिज्ञा ली थी।

 

4.कहते हैं कि भीष्म पितामह के पिता राजा शांतनु एक कन्या से विवाह करना चाहते थे जिसका नाम सत्यवती था। लेकिन सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से अपनी पुत्री का विवाह तभी करने की शर्त रखी जब सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न शिशु को ही वे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करेंगे।

 

5.राजा शांतनु इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्होने तो पहले ही भीष्म पितामह को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।

 

6.सत्यवती के पिता की बात को अस्वीकार करने के बाद राजा शांतनु सत्यवती के वियोग में रहने लगे। भीष्म पितामह को अपने पिता की चिंता की जानकारी हुई तो उन्होने तुरंत अजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा ली।

 

7.भीष्म पितामह ने सत्यवती के पिता से उनका हाथ राजा शांतनु को देने को कहा और स्वयं के अाजीवन अविवहित रहने का बात कही जिससे उनकी कोई संतान राज्य पर अपना हक ना जता सके।

 

8.इसके बाद भीष्म पितामह ने सत्यवती को अपने पिता राजा शांतनु को सौंपा। राजा शांतनु अपने पुत्र की पितृभक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान दिया।

 

9.धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण यानी कि मकर संक्राति के दिन 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहने के बाद अपने वरदान स्वरूप इच्छा मृत्यु प्राप्त की

 

10.सूर्य उत्तरायण के दिन मृत्यु को प्राप्त होने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस दिन भगवान की पूजा का विशेष महत्व है।

 

इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है , भीष्म पितामह भी गंगा पुत्र थे

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💥 गयाजी धाम मोक्षतीर्थ विस्तृत जानकारी 💥 गयाजी में पिंडदान करने से मिलती है पितरों की मुक्ति

गयाजी, बिहार में स्थित एक अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है, जिसे मोक्षतीर्थ के रूप में जाना जाता है। यह स्थल भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ पिंडदान करने से पितरों की मुक्ति मिलती है, जिससे यह स्थल हर साल लाखों श्रद्धालुओं का केंद्र बनता है।

आचार्य सुबोध पाठक का योगदान
आचार्य सुबोध पाठक, जो गयाजी धाम के प्रमुख विद्वान हैं, का मानना है कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। उनका संपर्क नंबर 9576015726 और 9122360905 है, जबकि ऑफिस का संपर्क नंबर 6299064678 है।

अश्विनी नक्षत्र पेड़ पौधे

अश्विनी नक्षत्र जिनका है ऐसे जातक के लिए अश्वत्थ वृक्ष, जिसे पीपल वृक्ष भी कहा जाता है, अश्विनी नक्षत्र से सम्बंधित है..

ये पेड़ पौधे शारीरिक शक्ति और जीवन शक्ति को बढ़ाते हैं....

इस नक्षत्र के जातक इस पेड़ की पूजा करने से सुरक्षा और उपचार जरूर मिलता है....

प्रत्येक ग्रह के लिए निर्धारित पेड़ -पौधे :-का प्रयोग करने से अंतश्चेतना में सकारात्मक सोच का संचार होता है तत्पश्चात हमारी मनोकामनाये शनै शनै पूरी होने लगती है।आप सब सुखी रहे ,प्रसन्न रहे, मस्त रहें और स्वस्थ रहें ।

सूर्य –       अकोन ( एकवन) ,
चन्द्रमा – पलास, 
मंगल – खैर,
बुद्ध –     चिरचिरी, 
गुरु –      पीपल, 
शुक्र –     गुलड़, 
शनि –    शमी, 
राहु –      दुर्वा , 
केतु –     कुश 

बारह राशियों के लिए निर्धारित पेड़ पौध :- का प्रयोग करने से अंतश्चेतना में सकारात्मक सोच का संचार होता है तत्पश्चात हमारी मनोकामनाये शनै शनै पूरी होने लगती है। आप सब सुखी रहे ,प्रसन्न रहे, मस्त रहें और स्वस्थ रहें ।

राशि –      पेड़-पौधे 
मेष –        आंवला ,
वृष –         जामुन, 
मिथुन –    शीशम, 
कर्क –       नागकेश्वर, 
सिंह –       पलास, 
कन्या –     रिट्ठा, 
तुला –      अजरुन, 
वृश्चिक –  भालसरी, 
धनु –        जलवेतस, 
मकर –     अकोन, 
कुंभ –       कदम्ब 
मीन –       नीम

27 नक्षत्रो के लिए निर्धारित पेड़ पौधे :- का प्रयोग करने से अंतश्चेतना में सकारात्मक सोच का संचार होता है तत्पश्चात हमारी मनोकामनाये शनै शनै पूरी होने लगती है।आप सब सुखी रहे ,प्रसन्न रहे, मस्त रहें और स्वस्थ रहें ।

अश्विनी  –  कोचिला,
भरनी  –  आंवला ,
कृतका  –  गुल्लड़ ,
रोहिणी  –  जामुन ,
मृगशिरा  –   खैर ,
आद्रा  –   शीशम ,
पुनर्वसु  –  बांस ,
पुष्य  – पीपल ,
अश्लेषा  –   नागकेसर,
मघा  –  बट,
पूर्वा फाल्गुन  –  पलास,
उत्तरा फाल्गुन  –  पाकड़,
हस्त  –    रीठा,
चित्रा  –   बेल,
स्वाती -    अजरुन,
विशाखा  –   कटैया ,
अनुराधा  –   भालसरी ,
ज्योष्ठा  –    चीर,
मूला  –     शाल,
पूर्वाषाढ़  –    अशोक ,
उत्तराषाढ़  –    कटहल ,
श्रवण  –   अकौन,
धनिष्ठा  –  शमी,
शतभिषा  –  कदम्ब ,
पूर्व भाद्र  –  आम,
उत्तरभाद्र  –   नीम ,
रेवती  –   महुआ