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Name Sangeeta Sharma. Shri Bhagya Mantra Astrology Research Centre. Where accurate assessment is possible only through new research and ancient practice, astrology is an important science of ancient knowledge. I Sangeeta Sharma have been a practitioner of this method for the last 30 years. During the practice of 3 decades, I found that the foundation pillar of this ancient method of reading time has been the principles espoused by many scholars including Maharishi Parashar, Maharishi Bhrugu, and Varamihir. And studying the formula is helpful for future calculations.
I am doing new research work every day for accurate and precise assessment of horoscope. This is the reason that while adopting the true respect for the knowledge tradition of our sages, the very modern times have also followed Krishnamurti method's Bhaskaran and Lal Kitab. Horoscope is a complex subject. To give accurate answers to a person's questions, new and old knowledge has to be combined. It is very important to adopt it equally, considering this need as a sadhna, I am engaged in astrologer's service. Jajman. Satisfaction of my major is due 20 / I am also working in social service.

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नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि

मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए।

पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए। पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
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नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का स्वरूप और पौराणिक कथा

मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत, दिव्य और सौम्य होता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं और उनके दाएं हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। त्रिशूल उनके शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि कमल का पुष्प पवित्रता शांति का संकेत देता है। मां शैलपुत्री के इस स्वरूप को देखकर यह समझा जा सकता है कि वह भक्तों को संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं, जिसमें शक्ति और करुणा का संतुलन हो।

मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा
मां शैलपुत्री के जन्म की कथा पुराणों में विस्तार से बताई गई है। उनके पूर्व जन्म की कहानी देवी सती से जुड़ी हुई है, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इस अपमान का पता चला, तो वह अत्यंत दुखी हुईं और अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के पहुंचीं। यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया। अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मीं और उन्हें शैलपुत्री कहा गया।

मां शैलपुत्री ने कठिन तपस्या के बाद पुनः भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। यह कथा दर्शाती है कि मां शैलपुत्री आत्मशक्ति, संकल्प और धैर्य की देवी हैं। उनके इस रूप की उपासना से साधक को जीवन में सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।

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मां शैलपुत्री: नवरात्रि के प्रथम दिन की पूजा विधि

नवरात्रि का प्रथम दिन मां शैलपुत्री की उपासना के लिए समर्पित होता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री प्रथम रूप हैं। उनका यह स्वरूप अत्यंत शांतिपूर्ण और दिव्य है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। यह दिन सभी शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि मां शैलपुत्री की उपासना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग खुलता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन क्या करना चाहिए?
नवरात्रि का आरंभ करने से पहले भक्तों को शुद्धता और पवित्रता का पालन करना चाहिए। दिन की शुरुआत प्रातःकाल स्नान और स्वच्छ वस्त्र धारण करके होती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करना अत्यंत आवश्यक होता है। यह कलश देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और इससे पूरे नवरात्रि की पूजा विधि शुरू होती है।

कलश स्थापना विधि:

सबसे पहले एक शुद्ध ताम्बे या मिट्टी के कलश को लें और उसमें गंगाजल भरें।
कलश के ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखें।
कलश को चावल के ढेर पर रखें और उसमें दूब, सिक्का और सुपारी डालें।
इस कलश की पूजा करें और दीपक जलाकर मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने स्थापित करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा विधि शुरू की जाती है। सफेद फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित कर मां की आराधना की जाती है।

 मां शैलपुत्री का पूजा मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

 

 

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नवरात्रि के नवम दिन की पूजा विधि

  • नवमी दिन (सिद्धिदात्री): अपने घर में सभी को आमंत्रित करें और प्रसाद का वितरण करें।
  • नए कार्यों की शुरुआत करें और प्रसाद का वितरण करें।
  • नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर नवम  दिन की पूजा विधि का से वर्णन किया गया है:

         नवमी दिन: सिद्धिदात्री (नवमी)

  • पूजा विधि:
  • देवी को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
  • शक्कर का भोग लगाएं और प्रसाद बांटें।
  • मंत्र: "ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः" का जाप करें।
  • नैवेद्य: काले तिल का भोग अर्पित करें और दान करें। 
  • सामान्य पूजा विधि
  • दीपक: प्रत्येक दिन देवी के समक्ष दीप जलाना न भूलें।
  • आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और मनोकामनाएं प्रकट करें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें।

इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!

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नवरात्रि के अष्टम दिन की पूजा विधि

  • अष्टमी दिन (महागौरी): विशेष रूप से नंदी के प्रतीक का पूजन करें।
  • अपने घर की सफाई करें और विशेष पूजा का आयोजन करें।
  • नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। अष्टम दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर अष्टम   दिन की पूजा विधि का  वर्णन किया गया है:

अष्टमी दिन: महागौरी (अष्टमी)

  • पूजा विधि:
  • देवी को नारियल और काले तिल का भोग अर्पित करें।
  • मंत्र: "ॐ ह्रीं वरदायै नमः" का जप करें।
  • नैवेद्य: नारियल का प्रसाद अर्पित करें।
  •  
  • सामान्य पूजा विधि

  • दीपक: प्रत्येक दिन देवी के समक्ष दीप जलाना न भूलें।
  • आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और मनोकामनाएं प्रकट करें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें।
  • इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!

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