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2024-11-08

देवप्रबोधिनी एकादशी तुलसी शालिग्राम विवाह

भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की उदयव्यापिनी एकादशी तिथि तथा कुछ प्रान्तों में कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन भी मनाया जाता है। इस वर्ष 15 नवम्बर बृहस्पति वार के दिन तुलसी शालिग्राम विवाह कराया जाएगा।

तुलसी विवाह की पौराणिक कथा और महत्व

तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जिसे विशेष रूप से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह पवित्र आयोजन भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह के रूप में होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पद्मपुराण में वर्णित है कि राजा जलंधर की पत्नी वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था, जिसके कारण भगवान विष्णु शालिग्राम के रूप में पत्थर बन गए। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को तुलसी से विवाह करना पड़ा, और तभी से तुलसी विवाह की परंपरा शुरू हुई।

पद्मपुराण में तुलसी विवाह की कथा

पद्मपुराण के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी विवाह रचाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाकर उनका विवाह तुलसी से किया जाता है। विवाह के बाद नवमी, दशमी और एकादशी को व्रत रखा जाता है, और द्वादशी तिथि को व्रत का समापन होता है। कई प्राचीन ग्रंथों में इस दिन को विशेष रूप से तुलसी की स्थापना और विवाह के लिए निर्धारित किया गया है। कुछ भक्त इस दिन से लेकर पूर्णिमा तक तुलसी पूजन करते हैं और पांचवे दिन तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं।

देवोत्थान एकादशी और तुलसी विवाह

तुलसी विवाह का आयोजन देवोत्थान एकादशी के दिन किया जाता है, जो एक मांगलिक और आध्यात्मिक उत्सव है। इस दिन भक्त घरों की सफाई करके रंगोली सजाते हैं और तुलसी चौरा के पास गन्ने का मंडप बनाते हैं, जिसमें शालिग्राम की मूर्ति रखी जाती है। इसके बाद विधि-विधान से भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह की रस्में पूरी की जाती हैं। इस दौरान मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और प्रीतिभोज जैसी पारंपरिक क्रियाएं की जाती हैं। इस विवाह में शालिग्राम भगवान विष्णु के रूप में वर और तुलसी के पौधे को कन्या के रूप में पूजा जाता है।

तुलसी विवाह और उसका महत्व

तुलसी विवाह का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करने का एक उपाय भी माना जाता है। इस दिन का आयोजन घरों में सुख-समृद्धि, पापों से मुक्ति और पुण्य फल की प्राप्ति के लिए किया जाता है। तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है और यह माना जाता है कि देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना तुलसी की ही होती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ तुलसी के विवाह से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

व्रत और पूजन की विधि

तुलसी विवाह के दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है। आस्थावान भक्त इस दिन श्रद्धा और भक्ति से व्रत करते हैं, जिससे उनके जन्मों के पाप समाप्त होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी के पौधे को लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है और उसे शालिग्राम के साथ विवाह के रस्मों के अनुसार पूजा जाता है। शालिग्राम और तुलसी का यह विवाह परम पवित्र माना जाता है और इसे विधिपूर्वक संपन्न करना शुभ माना जाता है।

तुलसी विवाह से प्राप्त लाभ

तुलसी विवाह के दिन व्रत करने और तुलसी की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति, पुण्य की प्राप्ति, सुख-समृद्धि और मानसिक शांति मिलती है। तुलसी को हर घर में पूजनीय माना गया है, और इसके पौधे को घर के वातावरण को शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक बनाने वाला माना जाता है। प्रतिदिन तुलसी में जल चढ़ाने और उसकी पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति के जीवन में समृद्धि आती है।

तुलसी विवाह और संतान प्राप्ति का संबंध

शास्त्रों के अनुसार, जिन दंपत्तियों को संतान नहीं होती, वे एक बार तुलसी विवाह करके कन्यादान के पुण्य का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। तुलसी विवाह करने से संतान सुख की प्राप्ति और जीवन में खुशहाली आती है। इस दिन की पूजा से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और सभी प्रकार के शुभ कार्यों का आरंभ होता है।

तुलसी विवाह का आयोजन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है। इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह का आयोजन करके भक्त अपने जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से परिपूर्ण बना सकते हैं। तुलसी की पूजा और विवाह का यह पर्व भक्तों के लिए विशेष पुण्य और आशीर्वाद का मार्ग खोलता है।

तुलसी विवाह की विधि

तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे विशेष रूप से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह की रस्में होती हैं। तुलसी विवाह के आयोजन में कुछ महत्वपूर्ण विधियों का पालन किया जाता है, जिनसे यह पूजा विशेष पुण्य और आशीर्वाद प्रदान करती है।

तुलसी विवाह की विधि:

तुलसी का गमला सजाना: सबसे पहले तुलसी के पौधे का गमला साफ-सुथरा करके गेरू और चूने से रंगकर सजाना चाहिए। यह न केवल पूजा स्थल को सुंदर बनाता है, बल्कि यह पौधे के पवित्रता और महत्व को भी दर्शाता है।

मंडप सजाना: विवाह के लिए सुंदर मंडप तैयार करें। इसके लिए गन्ने और फूलों का उपयोग करें। साड़ी या अन्य पारंपरिक वस्त्रों से मंडप को सजाकर उसे भव्य बनाना चाहिए। यह मंडप विवाह के इस पवित्र अवसर को और भी शुभ बना देता है।

परिवार के सदस्य तैयार हों: इस दिन परिवार के सभी सदस्य नए कपड़े पहनकर तुलसी विवाह में शामिल होने के लिए तैयार हो जाएं। यह एक पारंपरिक अवसर है, और इसमें सबका योगदान महत्वपूर्ण होता है।

शालिग्राम जी की मूर्ति या चित्र: तुलसी विवाह के लिए भगवान विष्णु की काली मूर्ति या शालिग्राम की मूर्ति की आवश्यकता होती है। यदि यह मूर्ति उपलब्ध न हो, तो आप अपनी श्रद्धा अनुसार सोने, पीतल या मिश्रित धातु की मूर्ति का उपयोग कर सकते हैं, या फिर भगवान विष्णु की तस्वीर भी ले सकते हैं। यदि किसी कारण से मूर्ति प्राप्त करना संभव न हो, तो आप पंडित जी से अनुरोध करके वे मंदिर से शालिग्राम की मूर्ति प्राप्त कर सकते हैं।

गणेश पूजन: सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। भगवान गणेश को पहले पूजने से सभी विघ्न दूर होते हैं और पूजा का मार्ग प्रशस्त होता है।

भगवान विष्णु का पूजन: गणेश पूजन के बाद, भगवान विष्णु की प्रतिमा को तुलसी के पौधे के पास लाकर रखें। फिर, मंत्रों का उच्चारण करते हुए गाजे-बाजे के साथ भगवान विष्णु की पूजा करें। इस समय आप परिवार के सभी सदस्य मिलकर इस शुभ अवसर को और भी पवित्र बना सकते हैं।

तुलसी विवाह की विधि बहुत सरल है, लेकिन इसे श्रद्धा और भक्ति से करना चाहिए। इस दिन के अनुष्ठान से घर में सुख-समृद्धि आती है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह पवित्र अवसर न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि परिवार में प्यार, सद्भावना और आशीर्वाद का संदेश भी देता है।

भगवान विष्णु का आवाहन इस मन्त्र के साथ करें –

” आगच्छ भगवन देव अर्चयिष्यामि केशव। तुभ्यं दास्यामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव  “

( यानि हे भगवान केशव , आइये देव मैं आपकी पूजा करूँगा , आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करूँगा। आप मेरे सभी मनोरथ पूर्ण करना )

फिर इस मंत्र से तुलसी जी का ध्यान करें

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

तुलसा जी व भगवान विष्णु की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करके निम्नस्तुति आदि के द्वारा भगवान को निद्रा से जगाये।

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।

त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।

गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥

शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।

विष्णु जी को पीले वस्त्र धारण करवाये ,पीला रंग विष्णु जी का प्रिय है।

कांसे के पात्र में दही, घी, शहद रखकर भगवान् को अर्पित करें।

फिर पुरुष सूक्त हरी ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात् |

स भूमि सर्वत: स्पृत्वाSत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम् || आदि 16 मंत्रो से या सामर्थ्य हो तो षोडशोपचार से पूजा करें।

इस मंत्र को बोलकर तुलसी जी का पूजन करें।

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

तुलसी विवाह की विस्तृत विधि

तुलसी विवाह हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र धार्मिक अनुष्ठान है, जो विशेष रूप से कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह के साथ-साथ घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है। तुलसी विवाह के दौरान कुछ विशेष विधियों का पालन करना चाहिए, जो पूजा को पूर्ण और शुभ बनाते हैं।

तुलसी विवाह की विधि:

तुलसी माता को ओढ़नी पहनाना: तुलसी के पौधे को लाल रंग की ओढ़नी पहनानी चाहिए, ताकि यह विधि और भी अधिक शुभ हो और तुलसी माता की पूजा का महत्व बढ़े।

शालिग्राम जी की पूजा: शालिग्राम जी को चावल नहीं चढ़ाए जाते हैं। इसीलिए उन्हें तिल चढ़ाएं। साथ ही, शालिग्राम जी और तुलसी माता को दूध और हल्दी का लेप भी चढ़ाएं। गन्ने से बनाए गए मंडप की भी दूध और हल्दी से पूजा करनी चाहिए, ताकि पूजा स्थल की पवित्रता बनी रहे।

विवाह की रस्में निभाना: तुलसी विवाह के दौरान सभी पारंपरिक विवाह रस्मों का पालन करें। तुलसी और शालिग्राम जी के फेरे भी करवाने चाहिए, जैसे एक सामान्य विवाह में होते हैं। इस समय “ओम तुलस्यै नमः” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए, जो पूजा को और भी प्रभावशाली बनाता है।

सुहाग का सामान चढ़ाना: तुलसी माता की शादी के लिए साड़ी, ब्लाउज, मेहंदी, काजल, बिंदी, सिंदूर, चूड़ा आदि सुहाग का सामान और बर्तन चढ़ाएं। यह विवाह की रस्मों को पूर्णता प्रदान करता है और भगवान विष्णु के साथ तुलसी के संबंध को और भी शुभ बनाता है।

भोजन का भोग अर्पित करना: जो भी भोजन तैयार किया गया हो, उसे एक थाली में दो व्यक्तियों के लिए रखकर फेरों के समय भगवान विष्णु और तुलसी को भोग लगाने के लिए रखें। यह भोजन उन्हें समर्पित करने का एक पवित्र तरीका है।

कन्यादान का संकल्प: कन्यादान का संकल्प करें और भगवान से प्रार्थना करें:

"हे परमेश्वर! इस तुलसी को आप विवाह की विधि से ग्रहण कीजिये। यह पार्वती के बीज से प्रकट हुई है, वृन्दावन की भस्म में स्थित रही है। आपको तुलसी अत्यंत प्रिय है, अतः इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैंने इसे पुत्री की तरह पाल पोस कर बड़ा किया है। और आपकी तुलसी आपको ही दे रहा हूँ। हे प्रभु, इसे स्वीकार करने की कृपा करें।"

तुलसी और विष्णु की पूजा: इसके बाद तुलसी और विष्णु दोनों की पूजा करें और तुलसी माता की कथा सुनें। यह कथा इस पूजा के महत्व को और अधिक बढ़ा देती है।

आरती और मंत्रोच्चारण: अंत में कपूर से तुलसी माता की आरती करें और नामाष्टक मंत्र का यथा सामर्थ्य जप करें। यह पूजा का समापन करता है और भक्तों को पुण्य फल प्रदान करता है।

तुलसी विवाह एक अत्यंत शुभ और पुण्यकारी अनुष्ठान है, जो घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है। इसे श्रद्धा और भक्ति से किया जाता है। तुलसी विवाह की विधियों का पालन करके व्यक्ति जीवन में समस्त शुभ फल प्राप्त कर सकता है। यह पूजा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि समाज में प्रेम और सामंजस्य को बढ़ावा देती है।

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।

य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।

तुलसी विवाह के बाद की विधि

तुलसी विवाह एक पूर्ण और पवित्र अनुष्ठान है, जो कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को विधिपूर्वक संपन्न किया जाता है। विवाह के बाद कुछ विशेष विधियों और अनुष्ठानों का पालन किया जाता है, जो इस दिन की पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली और पुण्यकारी बनाते हैं।

1. आरती और भोग का वितरण:

तुलसी विवाह के बाद, सबसे पहले भगवान विष्णु और तुलसी माता की आरती करें। कपूर से उनकी आरती करते समय, श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान को अर्पित किए गए भोग का प्रसाद भक्तों के बीच वितरित करें। यह प्रसाद भगवान की कृपा का प्रतीक होता है, और यह पूरे परिवार के लिए शुभ और पुण्यकारी है।

2. हवन और पूर्णाहुति:

तुलसी विवाह के बाद, सुबह के समय हवन करें और उसमें पूर्णाहुति अर्पित करें। इसके लिए खीर, घी, शहद और तिल के मिश्रण का उपयोग किया जाता है। हवन में 108 आहुति दें, जो हवन के अनुष्ठान को संपन्न और सफल बनाता है।

3. महिलाएं तुलसी माता के गीत गाती हैं:

हवन के दौरान महिलाएं तुलसी माता के गीत गाती हैं, जो इस पवित्र अनुष्ठान को और भी शुभ बनाता है। इसी दौरान, व्रत करने वाली महिला के पीहर वाले कपड़े पहनाए जाते हैं, जिससे यह संस्कार और भी पवित्र और उत्सवपूर्ण हो जाता है।

4. शालीग्राम और तुलसी को भोग अर्पित करें:

हवन और गीतों के साथ-साथ, शालीग्राम और तुलसी माता को श्रद्धा के अनुसार भोजन परोसकर भोग अर्पित करें। इसके साथ ही, श्रद्धानुसार दक्षिणा भी अर्पित की जानी चाहिए। यह पूजा के पूर्णता का संकेत है और भगवान की कृपा की प्राप्ति का एक माध्यम है।

5. भगवान से प्रार्थना:

हवन और भोग अर्पण के बाद, भगवान से प्रार्थना करें:

"प्रभु! इस व्रत को आपकी प्रसन्नता के लिए मैंने पूरी श्रद्धा से किया है। यदि इस व्रत में कोई कमी रह गई हो तो कृपया मुझे क्षमा करें। अब आप तुलसी को लेकर बैकुंठ धाम पधारें। आप मेरी पूजा से सदा संतुष्ट रहकर मुझे आशीर्वाद प्रदान करें।"

6. तुलसी विवाह का परायण और भोजन:

इसके बाद तुलसी विवाह का परायण (समापन) करें और भोजन का आयोजन करें। इस दिन भोजन में आँवला, गन्ना और बैर अवश्य शामिल करें। यह आहार स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।

7. तुलसी के पत्ते का सेवन:

विवाह के बाद, जो तुलसी के पत्ते गिर जाएं, उन्हें स्वयं खाएं। यह बहुत शुभ माना जाता है और इस कार्य से व्यक्ति को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।


तुलसी और शालिग्राम का विवाह करना न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भगवान विष्णु की भक्ति का एक महत्वपूर्ण रूप भी है। इसे करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। इस पूजा का पालन विधिपूर्वक करने से न केवल इस जन्म के, बल्कि पूर्वजन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं और भक्तों को भगवान की कृपा प्राप्त होती है।


तुलसी शालिग्राम विवाह कथा

वृंदा और भगवान विष्णु की कथा: तुलसी विवाह का पवित्र महत्व

प्राचीन काल की एक महत्वपूर्ण कथा के अनुसार, एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था। उसका जन्म राक्षसों के कुल में हुआ था, लेकिन उसका दिल सच्चे भक्तिमार्ग पर था। बचपन से ही वह भगवान विष्णु की बड़ी श्रद्धा से पूजा करती थी और भगवान के प्रति उसकी भक्ति अतुलनीय थी।

जब वृंदा बड़ी हुई, तो उसका विवाह राक्षसों के राजा जलंधर से हुआ। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था और वह एक अत्यंत शक्तिशाली और पराक्रमी दैत्य था। वृंदा ने अपने पति जलंधर को अत्यधिक प्रेम और श्रद्धा से सेवा की, और एक आदर्श पतिव्रता बनकर हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करती रही।

देवताओं और दानवों का युद्ध

एक समय देवताओं और दानवों के बीच घमासान युद्ध छिड़ा। जलंधर को देवताओं से लड़ने के लिए भेजा गया। युद्ध के दौरान वृंदा ने अपने पति जलंधर से कहा, "स्वामी, आप युद्ध में जा रहे हैं। मैं तब तक पूजा में बैठी रहूँगी और आपके विजय के लिए अनुष्ठान करूंगी। जब तक आप वापस नहीं लौटते, मैं अपना संकल्प नहीं तोड़ूंगी।"

वृंदा का संकल्प बहुत मजबूत था और भगवान विष्णु की भक्ति में वह पूरी तरह से समर्पित थी। इसके प्रभाव से देवता भी जलंधर को पराजित नहीं कर सके। देवताओं ने जब देखा कि वे युद्ध में हार रहे हैं, तो वे भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सहायता की प्रार्थना की।

भगवान विष्णु का छल और जलंधर का वध

भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा, "वृंदा मेरी परम भक्त है, मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता।" लेकिन देवताओं ने कहा, "भगवान, अब हमारे पास कोई और उपाय नहीं है। आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।"

भगवान विष्णु ने तब जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के महल में पहुंचे। जब वृंदा ने देखा कि उसके पति जलंधर लौटे हैं, तो वह तुरंत पूजा से उठ गई और उनके चरणों में झुकी। जैसे ही उसने अपने संकल्प को तोड़ा, देवताओं ने जलंधर को पराजित कर दिया और युद्ध में उसे मार डाला। जलंधर का सिर काटकर पृथ्वी पर गिरा और वह वृंदा के महल में गिरा।

वृंदा ने देखा कि उसका पति जलंधर का सिर कट चुका है, तो उसने भगवान विष्णु से पूछा, "आप कौन हैं?" भगवान विष्णु ने तब अपना असली रूप प्रकट किया। वृंदा ने सब कुछ समझ लिया और उन्हें श्राप दिया, "आपने मेरे साथ छल किया है, इसलिए आप पत्थर के रूप में बदल जाएं।"

तुलसी और शालिग्राम की उत्पत्ति

वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु तुरंत पत्थर के रूप में बदल गए। देवता और लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की इस स्थिति से बहुत दुखी हुए और भगवान विष्णु से वापस अपनी असली रूप में आने की प्रार्थना की। भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और वृंदा के श्राप के प्रभाव से उन्हें अपने वास्तविक रूप में वापस लौटा दिया।

वृंदा ने अपने पति जलंधर का सिर लेकर सती हो गई और उसकी राख से एक पौधा उगा। भगवान विष्णु ने कहा, "आज से इस पौधे का नाम तुलसी होगा। इस पौधे से उत्पन्न शालिग्राम पत्थर के साथ ही पूजा की जाएगी। मैं बिना तुलसी के भोग स्वीकार नहीं करूंगा।"

तब से भगवान विष्णु और तुलसी का संबंध विशेष रूप से जुड़ गया। तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कार्तिक माह में किया जाता है। इसे विशेष रूप से देवउठनी एकादशी के दिन मनाया जाता है, जो तुलसी विवाह के रूप में प्रसिद्ध है।

तुलसी पूजा का महत्व

तुलसी पूजा का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह पूजा भगवान विष्णु के साथ तुलसी के अटूट संबंध को दर्शाती है। तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ एक धार्मिक अनुष्ठान बन गया है, जिसमें भगवान विष्णु की कृपा और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

कथा - 2

देवप्रबोधिनी एकादशी और भगवान विष्णु का जागरण

देवप्रबोधिनी एकादशी विशेष रूप से भगवान विष्णु के चार माह की नींद के बाद जागने के दिन के रूप में प्रसिद्ध है। यह एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है, जो इस दिन भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस को पराजित किया, तब इस युद्ध में भगवान अत्यंत थक गए थे। शंखासुर एक बहुत शक्तिशाली दैत्य था, और भगवान विष्णु को उसे पराजित करने में लंबा समय लगा। भाद्रपद माह की शुक्ल एकादशी को इस युद्ध का समापन हुआ, और भगवान विष्णु ने शंखासुर को मारा। युद्ध के इस कठिन परिश्रम के कारण भगवान विष्णु क्षीरसागर लौटकर विश्राम करने लगे।

भगवान विष्णु ने चार माह तक विश्राम किया और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे। इस दिन सभी देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु का पूजन किया और उनके जागने की खुशी में उत्सव मनाया। इस कारण, कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को 'देवप्रबोधिनी एकादशी' कहा जाता है।

देवप्रबोधिनी एकादशी का महत्व न केवल भगवान विष्णु के जागने के प्रतीक के रूप में है, बल्कि इस दिन व्रत और उपवास करने का भी विशेष महत्व है। इसे मनाने से भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

कथा - 3

भगवान विष्णु की अल्पनिद्रा और भक्तों के लिए उसका महत्व

एक बार, भगवान विष्णु की प्रिय देवी लक्ष्मी जी ने भगवान से एक आग्रह किया। उन्होंने कहा, "हे भगवान, आप दिन-रात जागते रहते हैं, लेकिन जब आप सोते हैं, तो लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए आपकी निद्रा का आरंभ होता है। इस समय समस्त सृष्टि का नाश हो जाता है। ऐसे में, कृपया आप नियमित रूप से विश्राम लिया करें, ताकि मुझे भी कुछ समय आराम का मिल सके। आपके इस विश्राम से मुझे आपकी सेवा करने का भी अवसर मिलेगा।"

लक्ष्मी जी की यह बात भगवान विष्णु को सही लगी। उन्होंने उत्तर दिया, "तुम ठीक कहती हो, लक्ष्मी। मेरी जागरूकता से सभी देवताओं और विशेष रूप से तुम्हें कठिनाइयाँ होती हैं। तुम्हें मेरी सेवा करने का समय नहीं मिलता। इसलिए, मैं यह निर्णय लेता हूँ कि मैं प्रत्येक वर्ष चार महीने वर्षा ऋतु में शयन करूंगा। मेरी यह निद्रा 'अल्पनिद्रा' और 'प्रलयकालीन महानिद्रा' के रूप में प्रसिद्ध होगी।"

भगवान विष्णु ने आगे कहा, "मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए अत्यधिक मंगलकारी होगी। इस समय, जो भी भक्त मेरे शयन की भावना से मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर लक्ष्मी के साथ निवास करूंगा और उन्हें अपनी कृपा प्रदान करूंगा।"

यह कथा हमें यह संदेश देती है कि भगवान की उपासना के सही समय पर सेवा और भक्ति का महत्व बढ़ जाता है, और उनका आशीर्वाद हमारे जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।

तुलसी विवाह व्रत कथा

तुलसी विवाह व्रत की कथा प्राचीन ग्रंथों में विशेष रूप से वर्णित है। यह कथा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके माध्यम से जीवन में सत्य, ईमानदारी और भगवान की कृपा की महिमा भी समझाई जाती है। आइए जानें तुलसी विवाह व्रत की एक महत्वपूर्ण कथा:

कथा का प्रारंभ:

एक कुटुंब में ननद और भाभी साथ रहती थीं। ननद का विवाह नहीं हुआ था, और वह तुलसी के पौधे की बहुत सेवा करती थी। तुलसी के पौधे के प्रति उसकी श्रद्धा और भक्ति अनमोल थी। लेकिन उसकी भाभी को यह सब बिल्कुल भी पसंद नहीं था। वह ननद को ताने देते हुए कहती कि "जब तुम्हारा विवाह होगा, तब मैं तुलसी के पौधे से बारातियों को खिलाऊँगी और तुम्हारे दहेज में भी तुलसी ही दूंगी।"

ननद का विवाह और भाभी का छल:

कुछ समय बाद ननद का विवाह पक्का हो गया। विवाह के दिन, भाभी ने अपनी बात को साकार करते हुए बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ दिया और कह दिया कि वही तुलसी के पौधे से बारातियों को भोजन मिलेगा। लेकिन तुलसी की कृपा से वह फूटा हुआ गमला अनेकों स्वादिष्ट पकवानों में बदल गया। इसके बाद, भाभी ने गहनों के नाम पर तुलसी की मंजरी से बने गहनों को पहनाया, और वे भी सोने और जवाहरात में बदल गए। तुलसी के जनेऊ को भी रेशमी और सुंदर वस्त्रों में बदलते देखा गया। ननद की ससुराल में उसकी समृद्धि की बहुत प्रशंसा हुई।

भाभी का आश्चर्य और तुलसी की महिमा का ज्ञान:

यह सब देख भाभी को बहुत आश्चर्य हुआ और उसने अब तुलसी माता की पूजा का महत्व समझा। उसे एहसास हुआ कि तुलसी माता की सेवा से ही यह सब हुआ था। भाभी की एक बेटी थी, और वह अपनी बेटी से कहती थी, "तुम भी तुलसी की सेवा करो, तुम्हें भी बुआ की तरह फल मिलेगा।" हालांकि, बेटी का मन तुलसी सेवा में नहीं लगता था।

लड़की का विवाह और भाभी का पुनः प्रयास:

समय के साथ लड़की का विवाह भी तय हो गया। भाभी सोचती है कि जैसा उसने अपनी ननद के साथ किया था, वैसा ही अपनी बेटी के साथ भी करेगी। वह फिर से बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ देती है, लेकिन इस बार गमला वही मिट्टी का ही रह जाता है, मंजरी और पत्ते भी वैसे ही रहते हैं, और जनेऊ भी अपना रूप नहीं बदलता। बारातियों और परिवार वालों की आलोचना होती है। लड़की के ससुराल वाले भी उसकी बुराई करते हैं।

भाभी का पश्चाताप और भाई का संघर्ष:

भाभी ने अपनी ननद को कभी घर बुलाया नहीं था, लेकिन अब भाभी का भाई सोचता है कि वह अपनी बहन से मिलकर आएगा। वह अपनी पत्नी से कहता है कि वह कुछ उपहार अपनी बहन के घर ले जाएगा। भाभी ने थैले में ज्वार भरकर उसे कहा कि "यही भेजो, और कुछ नहीं है।" भाई दुखी होकर अपनी बहन के घर चला गया। रास्ते में वह गौशाला के पास रुकता है और ज्वार का थैला गाय के सामने पलट देता है। तभी गौशाला के मालिक ने कहा, "आप गाय के सामने हीरे-मोती और सोना क्यों डाल रहे हैं?" भाई ने सारी बात बताई, और गाय वाले ने उसे धन से भरा थैला दे दिया। खुशी-खुशी भाई अपनी बहन के घर पहुंचता है।

कथा का संदेश:

यह कथा हमें यह सिखाती है कि तुलसी माता की सेवा और पूजा से जीवन में सुख, समृद्धि और श्रद्धा की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति तुलसी के प्रति श्रद्धा रखते हुए उसकी सेवा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में खुशहाली आती है। भाभी ने अपने कृत्य से यह समझा कि ईश्वर की भक्ति और प्रेम में ही सच्चा फल निहित होता है।

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Discover the Future of Virgo (Kanya) Zodiac Signs This Kartik Amavasya!

Astrological, Numerological, Vastu, and Tarot Insights

Kartik Amavasya is considered auspicious for energy renewal, tradition, and new beginnings. Based on astrological, numerological, Vastu, and tarot insights, this day holds the potential to shape the future for all zodiac signs. Let’s delve into what this special day brings for you!

Virgo (Kanya)

Prediction:
Take care of your health. Align well with family members.
Remedy:
Offer laddoos to Lord Ganesha.
Tarot Insight:
The Hermit encourages introspection and personal growth.

Discover the Future of Leo (Simha) Zodiac Signs This Kartik Amavasya!

Astrological, Numerological, Vastu, and Tarot Insights

Kartik Amavasya is considered auspicious for energy renewal, tradition, and new beginnings. Based on astrological, numerological, Vastu, and tarot insights, this day holds the potential to shape the future for all zodiac signs. Let’s delve into what this special day brings for you!

Leo (Simha)

Prediction:
Career progress is on the horizon. Showcase your leadership abilities.
Remedy:
Offer water to the Sun (Surya Arghya).
Tarot Insight:
Strength reflects the need for courage and self-control.

Discover the Future of Cancer (Karka) Zodiac Signs This Kartik Amavasya!

Astrological, Numerological, Vastu, and Tarot Insights

Kartik Amavasya is considered auspicious for energy renewal, tradition, and new beginnings. Based on astrological, numerological, Vastu, and tarot insights, this day holds the potential to shape the future for all zodiac signs. Let’s delve into what this special day brings for you!

Cancer (Karka)

Prediction:
Focus on meditation for mental peace. Make important family decisions.
Remedy:
Donate rice and milk.
Tarot Insight:
The Chariot symbolizes embarking on a new journey in life.

Discover the Future of Gemini (Mithuna) Zodiac Signs This Kartik Amavasya

Astrological, Numerological, Vastu, and Tarot Insights

Kartik Amavasya is considered auspicious for energy renewal, tradition, and new beginnings. Based on astrological, numerological, Vastu, and tarot insights, this day holds the potential to shape the future for all zodiac signs. Let’s delve into what this special day brings for you!

 

Gemini (Mithuna)

Prediction:
Begin work on new plans. Communication skills will lead to great success.
Remedy:
Worship Goddess Durga.
Tarot Insight:
The Lovers card indicates strengthening bonds in love and partnerships.

Discover the Future of Taurus Zodiac Signs This Kartik Amavasya!

Discover the Future of All 12 Zodiac Signs This Kartik Amavasya!
Astrological, Numerological, Vastu, and Tarot Insights

Kartik Amavasya is considered auspicious for energy renewal, tradition, and new beginnings. Based on astrological, numerological, Vastu, and tarot insights, this day holds the potential to shape the future for all zodiac signs. Let’s delve into what this special day brings for you!

Taurus (Vrishabha)

Prediction:
Financial gains and sweetness in relationships. Spend quality time with family.
Remedy:
Offer milk to a Shivling.
Tarot Insight:
The Hierophant suggests following traditions to achieve balance and harmony.