पंचम अध्याय में सूतजी द्वारा एक और कथा का वर्णन किया गया है, जो राजा तुंगध्वज के अनुभवों पर आधारित है।
यह कथा हमें यह सिखाती है कि अभिमान और भगवान के प्रसाद का अपमान कभी भी मानव जीवन के लिए सुखद नहीं होता और भगवान की कृपा केवल सच्चे हृदय से किए गए भक्ति-भाव से प्राप्त होती है।
इस अध्याय में भगवान सत्यनारायण के प्रति निष्ठा, विनम्रता, और प्रसाद की महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन है।
एक बार की बात है, राजा तुंगध्वज अपने कर्तव्यों में लीन रहते हुए वन में गए, जहाँ उन्होंने वन्य पशुओं का शिकार किया।
वन में विचरण करते हुए राजा एक बड़ के पेड़ के नीचे पहुँचे, जहाँ ग्वालों को उन्होंने सत्यनारायण भगवान की पूजा करते देखा।
उन ग्वालों ने अपने बंधु-बांधवों के साथ भगवान सत्यनारायण का भक्ति-भाव से पूजन किया और भगवान की कृपा प्राप्त की।
राजा तुंगध्वज ने ग्वालों के पूजन को देखा, परंतु अपने अहंकार के कारण पूजा स्थल में प्रवेश नहीं किया और न ही भगवान को नमन किया।
ग्वालों ने जब प्रसाद राजा को दिया, तो उसने उसे खाने से इनकार कर दिया और प्रसाद को छोड़कर अपने नगर लौट गए।
राजा जब नगर लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनके राज्य में सब कुछ तहस-नहस हो चुका है।
नगर में हर ओर अव्यवस्था, दुःख, और हानि का माहौल था।
यह देखकर राजा को शीघ्र ही समझ में आ गया कि यह भगवान सत्यनारायण का कोप है, जो उनकी पूजा का अपमान करने और प्रसाद का अनादर करने के कारण उन्हें भुगतना पड़ा।
राजा का अभिमान चूर-चूर हो गया, और उन्हें अपनी गलती का आभास हुआ।
अपनी भूल को सुधारने और भगवान से क्षमा मांगने के उद्देश्य से राजा फिर से ग्वालों के पास पहुँचे।
उन्होंने भगवान सत्यनारायण का विधिपूर्वक पूजन किया और प्रसाद ग्रहण किया।
राजा की भक्ति और पश्चाताप को देखकर भगवान सत्यनारायण प्रसन्न हुए और उनकी कृपा से राज्य में सब कुछ पूर्ववत हो गया।
नगर की समृद्धि, शांति, और सुख-शांति लौट आई।
इस घटना के बाद राजा दीर्घकाल तक सुखपूर्वक जीवन बिताने लगे।
मरणोपरांत उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई और वे सदा के लिए सुखमय स्थान पर चले गए।
यह कथा हमें सिखाती है कि सत्यनारायण भगवान का व्रत करने से व्यक्ति को हर प्रकार का सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
यह व्रत अत्यंत दुर्लभ माना गया है, और जो भी व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करता है, उसे भगवान की अनुकंपा से धन-धान्य, संतान, और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
संतानहीन को संतान की प्राप्ति होती है, निर्धन व्यक्ति को धन-धान्य का आशीर्वाद मिलता है, और भयमुक्त होकर जीवन जीने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
भगवान सत्यनारायण के इस व्रत से जीवन में सभी प्रकार की इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
इस व्रत के प्रभाव से अंत समय में व्यक्ति बैकुंठधाम जाता है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त करता है।
सूतजी आगे यह भी बताते हैं कि इस व्रत को करने वालों के अगले जन्म में भी शुभ फल प्राप्त होते हैं।
इस व्रत से मिलने वाले आशीर्वाद और पुण्य के फल अगले जन्मों में मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होते हैं।
।।इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण ।।
कथा का श्रवण समाप्त होने के बाद श्रीसत्यनारायण भगवान की आरती करनी चाहिए।
आरती के बाद तीन बार प्रदक्षिणा करके आटे की पंजीरी, विभिन्न फलों, और दही से बना चरणामृत प्रसाद के रूप में सभी को बांटना चाहिए और स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए।
इस प्रकार, इस व्रत का संपूर्ण विधान पूर्ण होता है और भगवान सत्यनारायण की कृपा से सभी कष्ट समाप्त होते हैं।
इस अध्याय से यह शिक्षा मिलती है कि भगवान सत्यनारायण के प्रति आस्था और श्रद्धा रखने से ही जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और व्यक्ति को हर प्रकार का सुख प्राप्त होता है।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय!
Jai Mata Di I am Astro Himanshu Bhardwaj, son of Shri Astro Rajesh Bhardwaj, a young astrologer in the world of astrology.
I belong to a Brahmin family, hence since childhood I have had a distinct interest in astrology and our religious scriptures and the Vedas.
I got the company of my father and my guru Astro Rajesh Sharma ji right from my childhood and due to this,
my interest in astrology was awakened and I received education from him only.
In today's world, where many people say that things like astrology or astrology are superstitions,
I believe that scientific evidence of all these things is available in our religion and we should unite and support this golden age of our religion,
Sanatan and astrology. History should be taken forward and awareness should be spread among the people.
Through my studies and knowledge acquired over many years, I want to awaken the coming generation and always dedicate myself for the welfare of humanity.
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