सूत जी ने ऋषियों से कहा कि मैं आपको श्रीसत्यनारायण व्रत के प्रभाव की एक और कथा सुनाता हूँ।
यह कथा बताती है कि कैसे इस व्रत को करने से भगवान सत्यनारायण की कृपा से व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयाँ दूर होती हैं,
और कैसे उनके क्रोध से पीड़ाएँ भी प्राप्त होती हैं।
इस कथा में एक राजा और व्यापारी का उल्लेख है जिन्होंने इस व्रत के प्रभाव को अपने जीवन में अनुभव किया।
पुराने समय में उल्कामुख नामक एक राजा हुआ करते थे।
वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय थे, और हमेशा धर्म के मार्ग पर चलते थे।
राजा प्रतिदिन देव स्थानों पर जाकर पूजन करते और निर्धनों को धन देकर उनकी सहायता करते थे।
उनकी पत्नी भी कमल के समान सुंदर मुख वाली, सती और साध्वी थी।
दोनों ने भद्रशीला नदी के तट पर जाकर श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत किया।
उसी समय साधु नामक एक वैश्य वहाँ आया, जो व्यापार के लिए बहुत धन लेकर जा रहा था।
राजा को व्रत करते देख साधु ने विनम्रता से पूछा, “हे राजन! आप यह व्रत किसलिए कर रहे हैं?”
राजा ने कहा, “हे साधु! यह श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत है, जो सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है।
मैंने इसे पुत्र प्राप्ति के लिए किया है।
इस व्रत से मेरे जीवन में सुख-शांति और संतोष बना रहता है।
” राजा के वचन सुनकर साधु ने भी इस व्रत के विधान के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की और संकल्प लिया कि वह भी अपनी संतान की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करेगा।
राजा से व्रत का विधान सुनने के बाद, साधु अपने घर लौट गया और अपनी पत्नी लीलावती को इस व्रत के बारे में बताया।
उसने कहा कि जब मेरी संतान होगी, तब मैं इस व्रत को संपन्न करूंगा।
साधु ने अपनी पत्नी लीलावती को वचन दिया कि वह संतान प्राप्ति पर यह व्रत करेगा।
कुछ समय बाद, भगवान सत्यनारायण की कृपा से लीलावती गर्भवती हो गई और दसवें महीने में उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया,
जिसका नाम उन्होंने कलावती रखा।
कन्या दिनों-दिन बढ़ने लगी और परिवार में सुख-समृद्धि का वातावरण बन गया।
जब कन्या बड़ी हुई, तब लीलावती ने अपने पति को उनके संकल्प की याद दिलाई।
परंतु साधु ने कहा कि वह यह व्रत अपनी पुत्री के विवाह के अवसर पर करेगा।
जब कन्या विवाह योग्य हुई, तो साधु ने उसके लिए योग्य वर की खोज शुरू की।
उसने अपने एक दूत को भेजकर सुयोग्य वर ढूंढने का कार्य सौंपा।
दूत एक सुयोग्य वर को लेकर आया, जो एक प्रतिष्ठित व्यापारी का पुत्र था।
साधु ने अपनी पुत्री का विवाह उस युवक के साथ कर दिया।
लेकिन, दुर्भाग्यवश साधु ने अभी भी श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया।
इस कारण भगवान नाराज हो गए और साधु को दंड देने का विचार किया।
विवाह के बाद साधु अपने दामाद को लेकर रत्नासारपुर नगर में व्यापार करने गया।
वहाँ भगवान सत्यनारायण की माया से एक चोर राजा का धन चुराकर भाग रहा था।
उसने राजा के सैनिकों को आते देख वह धन वहीं छोड़ दिया, जहाँ साधु और उसका दामाद ठहरे हुए थे।
राजा के सैनिकों ने वहाँ राजा का धन पड़ा देखा तो उन्होंने साधु और उसके दामाद को चोर समझ लिया और उन्हें पकड़कर राजा के सामने पेश किया। राजा के आदेश पर उन दोनों को कारावास में डाल दिया गया और उनका सारा धन जब्त कर लिया गया।
भगवान सत्यनारायण के क्रोध के कारण साधु की पत्नी लीलावती और उसकी पुत्री कलावती भी दुखी हो गईं।
चोरों ने उनके घर से भी सारा धन चुरा लिया।
भूख-प्यास से पीड़ित कलावती एक दिन भोजन के लिए एक ब्राह्मण के घर गई।
वहाँ उसने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत देखा और कथा सुनी।
प्रसाद ग्रहण करने के बाद जब वह घर लौटी, तो उसकी माता ने उससे पूछा कि वह कहाँ थी।
कलावती ने अपनी माता को ब्राह्मण के घर पर देखे गए व्रत के बारे में बताया।
कलावती की बात सुनकर लीलावती ने व्रत की तैयारी की और परिवार सहित सत्यनारायण भगवान की पूजा की।
उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि उनके पति और दामाद सकुशल घर लौट आएँ और उनके सभी अपराध क्षमा हो जाएँ।
इस व्रत से भगवान संतुष्ट हुए और उन्होंने राजा चन्द्रकेतु को स्वप्न में दर्शन दिए।
भगवान ने कहा, “हे राजन! जिन दो व्यक्तियों को तुमने बंदी बनाया है, वे निर्दोष हैं।
उन्हें तुरंत मुक्त करो और जो धन उनसे लिया गया है, वह उन्हें वापिस कर दो।
यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम्हारे राज्य, संतान, और धन का नाश हो जाएगा।”
प्रातःकाल, राजा ने सभा में अपने स्वप्न के बारे में बताया और आदेश दिया कि दोनों वैश्यों को कारावास से मुक्त किया जाए।
राजा ने साधु और उसके दामाद से क्षमा माँगी और उन्हें नए वस्त्र तथा आभूषण भेंट किए।
साथ ही, जो धन उनसे लिया गया था, उसे दुगुना कर लौटा दिया।
साधु और उसका दामाद अपने घर लौट आए और उन्होंने सच्चे मन से भगवान सत्यनारायण का व्रत किया।
इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि भगवान के व्रत को संकल्प करने के बाद उसे निभाना अत्यंत आवश्यक है।
इस व्रत से सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है, और भगवान भक्तों पर कृपा करते हैं।
।। इति श्रीसत्यनारायण व्रत कथा का तृतीय अध्याय संपूर्ण।।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय!
Jai Mata Di I am Astro Himanshu Bhardwaj, son of Shri Astro Rajesh Bhardwaj, a young astrologer in the world of astrology.
I belong to a Brahmin family, hence since childhood I have had a distinct interest in astrology and our religious scriptures and the Vedas.
I got the company of my father and my guru Astro Rajesh Sharma ji right from my childhood and due to this,
my interest in astrology was awakened and I received education from him only.
In today's world, where many people say that things like astrology or astrology are superstitions,
I believe that scientific evidence of all these things is available in our religion and we should unite and support this golden age of our religion,
Sanatan and astrology. History should be taken forward and awareness should be spread among the people.
Through my studies and knowledge acquired over many years, I want to awaken the coming generation and always dedicate myself for the welfare of humanity.
Today, through ALLSO, I have got such an opportunity that today I am in front of you all and am present to help you all.
Please Vist Our Best Brand Astrologer's
Consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod
tempor incididuesdeentiut labore
etesde dolore magna aliquapspendisse and the gravida.
Here You Can See Daily Updates For Any Event, Astrology, Your Life
© Copyright 2022-2023 allso.in Designed by Ved Shastra Astro Pvt. Ltd.