सूत जी ने कहा, "हे मुनियों! आप सभी ने प्राणियों के हित के लिए एक श्रेष्ठ प्रश्न किया है। मैं आप लोगों को एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली व्रत की जानकारी दूँगा जिसे नारद जी ने स्वयं लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था।"
एक बार नारद जी लोकों के कल्याण की कामना से भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में पहुँचे। यहाँ उन्होंने देखा कि सभी मनुष्य अपने कर्मों के कारण अनेक कष्टों से पीड़ित हैं। यह देखकर नारद जी सोचने लगे कि ऐसा कौन-सा उपाय हो सकता है जिससे मनुष्यों के कष्टों का अंत हो सके। इसी विचार से प्रेरित होकर वे विष्णुलोक की ओर गए और वहाँ भगवान नारायण की स्तुति करने लगे।
नारद जी ने भगवान विष्णु की भक्ति और शक्ति की महिमा गाते हुए प्रार्थना की। उनकी स्तुति सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और पूछा, "हे मुनिश्रेष्ठ! आपके आने का कारण क्या है?" नारद जी ने बताया कि मृत्युलोक के मनुष्य अपने कर्मों के कारण अनेक प्रकार के कष्टों से जूझ रहे हैं।
भगवान विष्णु ने कहा, "हे नारद! तुमने मनुष्यों के कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है। उनके दुखों को दूर करने के लिए एक सरल उपाय है, जो स्वर्ग और मृत्युलोक दोनों में पुण्य फल देने वाला है।"
भगवान विष्णु ने नारद जी को सत्यनारायण व्रत का विधान बताया। उन्होंने कहा कि यह व्रत भक्तिपूर्वक करने पर मनुष्य को तुरंत सुख की प्राप्ति होती है और अंत में मोक्ष भी प्राप्त होता है। इस व्रत में श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा का विशेष महत्व है, जिसे भक्तजन भक्तिभाव से सायंकाल को ब्राह्मणों और अपने बंधु-बांधवों के साथ कर सकते हैं। पूजा में केले का फल, घी, दूध, गेहूँ का आटा और अन्य भक्षण योग्य पदार्थ भगवान को नैवेद्य स्वरूप अर्पित किए जाते हैं।
भगवान विष्णु ने कहा, "सत्यनारायण व्रत कलियुग में मोक्ष प्राप्त करने का सरल उपाय है। इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ करने पर मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।" इस प्रकार से व्रत की महिमा का वर्णन करते हुए भगवान विष्णु ने नारद जी को इसे संसार में प्रचारित करने का आदेश दिया।
सत्यनारायण व्रत, विशेष रूप से कलियुग में, मनुष्य को भक्ति और मोक्ष के पथ पर अग्रसर करता है। भगवान विष्णु की कृपा से नारद जी ने इस व्रत की महिमा का प्रचार किया ताकि संसार के सभी मनुष्य इसका लाभ प्राप्त कर सकें और अपने कष्टों से मुक्ति पा सकें।
।। इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय समाप्त।।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय!
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