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2024-10-18

बुधादित्य योग सप्तम भाव

सप्तम भाव को ज्योतिष में विवाह, साझेदारी, जीवनसाथी, और व्यवसायिक संबंधों का भाव माना जाता है। जब सूर्य और बुध सप्तम भाव में एक साथ होते हैं, तो बुधादित्य योग बनता है, जो जातक के जीवन में इन क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव डालता है। यह योग जहां जातक को बुद्धिमान और आत्मविश्वासी बनाता है, वहीं संबंधों और साझेदारी के मामलों में कुछ चुनौतियाँ भी उत्पन्न कर सकता है। आइए इस योग को विस्तार से समझते हैं:

शत्रुओं से मिथ्या विरोध और आत्मविश्वास:

शत्रुओं की मिथ्या विरोधी क्रियाएँ:

सप्तम भाव शत्रुओं और विरोधियों के साथ साझेदारी और संबंधों को दर्शाता है। बुधादित्य योग के कारण जातक को अपने विरोधियों और शत्रुओं से मिथ्या आरोपों या विरोध का सामना करना पड़ सकता है। ये शत्रु जातक के खिलाफ नकारात्मक प्रचार या चालें चलाने की कोशिश करते हैं।

बावजूद इसके, जातक का आत्मविश्वास कभी कम नहीं होता। बुध की बुद्धिमत्ता और सूर्य की आत्म-सम्मान और आत्म-शक्ति जातक को शत्रुओं के खिलाफ मजबूती से खड़ा रखती है। वह शत्रुओं की चालों का सफलतापूर्वक मुकाबला करता है और अपने आत्मविश्वास को बनाए रखता है।

मामा पक्ष से लाभ और सहयोग की कमी:

बचपन में मामा पक्ष से लाभ:

बुधादित्य योग के जातक को बचपन में मामा पक्ष से विशेष लाभ मिलता है। मामा या मामा पक्ष के लोग जातक की प्रारंभिक जीवन में सहायता करते हैं, चाहे वह आर्थिक हो या भावनात्मक।

यह लाभ जातक के जीवन के शुरुआती समय में स्थिरता और विकास में मदद करता है, और वह अपने प्रारंभिक विकास में आसानी से आगे बढ़ता है।

आवश्यकता पड़ने पर सहयोग की कमी:

हालाँकि बचपन में मामा पक्ष से लाभ मिलता है, लेकिन जैसे-जैसे जातक की उम्र बढ़ती है, मामा पक्ष से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता है। जब जातक को जीवन में कठिनाइयों या चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, तब मामा पक्ष से सहयोग की कमी होती है, जिससे जातक को अपने दम पर संघर्ष करना पड़ता है।

यौन रोगों और कामी स्वभाव:

यौन रोगों की संभावना:

सप्तम भाव जीवनसाथी, यौन संबंधों और यौन स्वास्थ्य से संबंधित होता है। बुधादित्य योग के प्रभाव से जातक को यौन रोगों का सामना करना पड़ सकता है। यह योग कभी-कभी जातक को यौन स्वास्थ्य में समस्याएँ देता है, और उसे अपने यौन स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।

बुध और सूर्य का संयोग जातक के यौन जीवन में असंतोष या समस्याओं का कारण बन सकता है, जिससे वह यौन स्वास्थ्य में परेशानियों का सामना करता है।

अत्यंत कामी स्वभाव:

बुधादित्य योग के कारण जातक का स्वभाव अत्यधिक कामी हो सकता है, लेकिन यह कामी स्वभाव परिस्थिति और समय के अनुसार बदलता रहता है। जातक का आकर्षण अपने जीवनसाथी के प्रति कम और दूसरों के प्रति ज्यादा हो सकता है। वह दूसरों के प्रति आकर्षित हो सकता है, लेकिन यह आकर्षण हमेशा अंतरंग संबंधों तक नहीं पहुँचता।

बुध की चतुराई और सूर्य की आत्म-शक्ति के कारण जातक अन्य लोगों के साथ निकटता चाहता है, लेकिन यह निकटता हमेशा संबंधों में परिणत नहीं होती। इसका असर उसके वैवाहिक जीवन पर पड़ सकता है, जिससे जीवनसाथी के साथ दूरियाँ बनती हैं।

विवाह और साझेदारी में समस्याएँ:

जीवनसाथी की उपेक्षा:

बुधादित्य योग के जातक अपने जीवनसाथी के प्रति अनदेखी कर सकते हैं। उनका ध्यान और आकर्षण अपने जीवनसाथी से हटकर दूसरों की ओर होता है। हालांकि, यह आकर्षण अस्थायी होता है और गहरे संबंधों में नहीं बदलता।

यह योग विवाह और साझेदारी में असंतोष और समस्याएँ पैदा कर सकता है। जातक और उसके जीवनसाथी के बीच विश्वास और निकटता की कमी हो सकती है, जिससे वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा होता है।

शुभ ग्रहों का प्रभाव:

यदि सप्तम भाव में शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या शुभ ग्रह बुधादित्य योग के समीप हों, तो इस योग के नकारात्मक प्रभावों में कमी आ सकती है। शुभ ग्रहों के प्रभाव से जातक के विवाह और साझेदारी में स्थिरता और सुधार आ सकता है। जातक अपने जीवनसाथी के प्रति निष्ठावान और समर्पित हो सकता है।

व्यवसायिक जीवन और कैरियर:

कैरियर में सफलता:

बुधादित्य योग सप्तम भाव में जातक को व्यवसायिक जीवन में सफलता दिला सकता है। सप्तम भाव साझेदारी और व्यवसाय से संबंधित होता है, और बुधादित्य योग जातक को व्यापारिक चतुराई और आत्म-विश्वास प्रदान करता है।

जातक चिकित्सा, अभिनय, रत्न व्यवसाय, समाजसेवा, या स्वयंसेवी संगठनों से संबंधित कामों में सफलता प्राप्त कर सकता है। बुध की तर्कशक्ति और सूर्य की नेतृत्व क्षमता उसे इन क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने में मदद करती है।

विशेष पेशेवर गुण:

सप्तम भाव का बुधादित्य योग जातक को अच्छा चिकित्सक, अभिनेता, निजी सहायक, या रत्न व्यवसायी बना सकता है। बुध की व्यापारिक कुशाग्रता और सूर्य की आत्म-शक्ति जातक को इन पेशों में सफल होने के लिए आवश्यक गुण प्रदान करती है। जातक अपने पेशे में सफल रहता है और अपनी तर्कशक्ति और आत्म-विश्वास से ऊँचाइयों तक पहुँचता है।

राशियों का प्रभाव:

सिंह और मेष राशि में एकनिष्ठता:

यदि सप्तम भाव में सिंह या मेष राशि हो, तो जातक अपने जीवनसाथी के प्रति एकनिष्ठ रहता है। सिंह और मेष राशि जातक को आत्म-सम्मान और निष्ठा का गुण प्रदान करती है, जिससे वह अपने वैवाहिक जीवन में स्थिरता और संतुलन बनाए रखता है।

सिंह और मेष राशि जातक को साहसी और आत्म-निर्भर बनाती है, जिससे वह अपने संबंधों में विश्वास और सम्मान बनाए रखता है।

सप्तम भाव में बुधादित्य योग जातक को बुद्धिमान और आत्मविश्वासी बनाता है, लेकिन उसे शत्रुओं से मिथ्या विरोध का सामना करना पड़ता है। मामा पक्ष से बचपन में लाभ मिलता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर सहयोग की कमी रहती है। यह योग यौन रोगों और अत्यधिक कामी स्वभाव को उत्पन्न कर सकता है, जिससे जातक अपने जीवनसाथी से दूरियाँ बना सकता है। हालाँकि, शुभ ग्रहों के प्रभाव से इन नकारात्मक प्रभावों में कमी आ सकती है और जातक अपने वैवाहिक जीवन में स्थिरता पा सकता है। जातक व्यवसायिक जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है, विशेषकर चिकित्सा, अभिनय, समाजसेवा, या रत्न व्यवसाय में।

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नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि

मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए।

पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए। पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।


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नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का स्वरूप और पौराणिक कथा

मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत, दिव्य और सौम्य होता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं और उनके दाएं हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। त्रिशूल उनके शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि कमल का पुष्प पवित्रता शांति का संकेत देता है। मां शैलपुत्री के इस स्वरूप को देखकर यह समझा जा सकता है कि वह भक्तों को संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं, जिसमें शक्ति और करुणा का संतुलन हो।

मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा
मां शैलपुत्री के जन्म की कथा पुराणों में विस्तार से बताई गई है। उनके पूर्व जन्म की कहानी देवी सती से जुड़ी हुई है, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इस अपमान का पता चला, तो वह अत्यंत दुखी हुईं और अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के पहुंचीं। यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया। अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मीं और उन्हें शैलपुत्री कहा गया।

मां शैलपुत्री ने कठिन तपस्या के बाद पुनः भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। यह कथा दर्शाती है कि मां शैलपुत्री आत्मशक्ति, संकल्प और धैर्य की देवी हैं। उनके इस रूप की उपासना से साधक को जीवन में सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।

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मां शैलपुत्री: नवरात्रि के प्रथम दिन की पूजा विधि

नवरात्रि का प्रथम दिन मां शैलपुत्री की उपासना के लिए समर्पित होता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री प्रथम रूप हैं। उनका यह स्वरूप अत्यंत शांतिपूर्ण और दिव्य है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। यह दिन सभी शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि मां शैलपुत्री की उपासना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग खुलता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन क्या करना चाहिए?
नवरात्रि का आरंभ करने से पहले भक्तों को शुद्धता और पवित्रता का पालन करना चाहिए। दिन की शुरुआत प्रातःकाल स्नान और स्वच्छ वस्त्र धारण करके होती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करना अत्यंत आवश्यक होता है। यह कलश देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और इससे पूरे नवरात्रि की पूजा विधि शुरू होती है।

कलश स्थापना विधि:

सबसे पहले एक शुद्ध ताम्बे या मिट्टी के कलश को लें और उसमें गंगाजल भरें।
कलश के ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखें।
कलश को चावल के ढेर पर रखें और उसमें दूब, सिक्का और सुपारी डालें।
इस कलश की पूजा करें और दीपक जलाकर मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने स्थापित करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा विधि शुरू की जाती है। सफेद फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित कर मां की आराधना की जाती है।

 मां शैलपुत्री का पूजा मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

 

 

नवरात्रि के नवम दिन की पूजा विधि

  • नवमी दिन (सिद्धिदात्री): अपने घर में सभी को आमंत्रित करें और प्रसाद का वितरण करें।
  • नए कार्यों की शुरुआत करें और प्रसाद का वितरण करें।
  • नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर नवम  दिन की पूजा विधि का से वर्णन किया गया है:

         नवमी दिन: सिद्धिदात्री (नवमी)

  • पूजा विधि:
  • देवी को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
  • शक्कर का भोग लगाएं और प्रसाद बांटें।
  • मंत्र: "ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः" का जाप करें।
  • नैवेद्य: काले तिल का भोग अर्पित करें और दान करें। 
  • सामान्य पूजा विधि
  • दीपक: प्रत्येक दिन देवी के समक्ष दीप जलाना न भूलें।
  • आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और मनोकामनाएं प्रकट करें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें।

इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!

नवरात्रि के अष्टम दिन की पूजा विधि

  • अष्टमी दिन (महागौरी): विशेष रूप से नंदी के प्रतीक का पूजन करें।
  • अपने घर की सफाई करें और विशेष पूजा का आयोजन करें।
  • नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। अष्टम दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर अष्टम   दिन की पूजा विधि का  वर्णन किया गया है:

अष्टमी दिन: महागौरी (अष्टमी)

  • पूजा विधि:
  • देवी को नारियल और काले तिल का भोग अर्पित करें।
  • मंत्र: "ॐ ह्रीं वरदायै नमः" का जप करें।
  • नैवेद्य: नारियल का प्रसाद अर्पित करें।
  •  
  • सामान्य पूजा विधि

  • दीपक: प्रत्येक दिन देवी के समक्ष दीप जलाना न भूलें।
  • आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और मनोकामनाएं प्रकट करें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें।
  • इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!