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2024-10-13

सूर्यादि नव ग्रहों का प्रथम भाव में फल

नवग्रहों का ज्योतिष में अत्यधिक महत्व है। जब ये ग्रह किसी विशेष भाव में होते हैं, तो वे व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। प्रथम भाव (लग्न) व्यक्ति के व्यक्तित्व, स्वास्थ्य और जीवन के शुरुआती हिस्से से संबंधित होता है। यह भाव व्यक्ति के शारीरिक स्वरूप, स्वभाव और मानसिक प्रवृत्तियों पर प्रभाव डालता है। आइए देखें कि जब सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु प्रथम भाव में होते हैं, तो उनका क्या प्रभाव होता है:
 

सूर्य (Sun) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में सूर्य हो तो:

जातक स्वाभिमानी, आत्मविश्वासी और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला होता है।

सूर्य के प्रभाव से जातक की निर्णय क्षमता मजबूत होती है, लेकिन वह क्रोधी भी हो सकता है।

शरीर में पित्त और वात से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं, जैसे गर्मी, जलन या अपच।

जातक का स्वभाव उग्र हो सकता है, और वह जल्दी गुस्सा कर सकता है।

प्रवासी जीवन व्यतीत करता है, यानी अपने जन्मस्थान से दूर रहना पसंद करता है या कार्य के लिए उसे दूर जाना पड़ सकता है।

धन की स्थिरता में कमी हो सकती है, यानी उसकी संपत्ति अस्थिर होती है।
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चंद्रमा (Moon) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में चंद्रमा हो तो:

जातक बलवान, सुखी और शांतिप्रिय होता है।

चंद्रमा के प्रभाव से जातक का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है, और वह मानसिक संतुलन बनाए रखता है।

व्यवसाय में सफलता मिलती है, और जातक व्यापार में अच्छा मुनाफा कमाता है।

चंद्रमा संगीत और कला का कारक होता है, इसलिए जातक को गायन, वाद्ययंत्र बजाने या किसी भी तरह की कलात्मक गतिविधि में रुचि होती है।

शारीरिक रूप से वह मजबूत और स्थूल शरीर वाला होता है।

ऐश्वर्य और समृद्धि का कारक चंद्रमा जातक को जीवन में सुख-सुविधाएं प्रदान करता है।

मंगल (Mars) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में मंगल हो तो:

जातक साहसी, ऊर्जावान और लड़ाकू स्वभाव का होता है।

मंगल की उपस्थिति से व्यक्ति में साहस, आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता बढ़ती है।

ऐसे जातक महत्वाकांक्षी होते हैं, लेकिन कभी-कभी जल्दबाजी या आक्रामकता के कारण उन्हें समस्याएं झेलनी पड़ती हैं।

व्यापार या व्यवसाय में नुकसान की संभावना होती है।

शारीरिक रूप से चोट या दुर्घटना का सामना करना पड़ सकता है।

मंगल से जातक क्रूरता और चपलता का मिश्रण होता है, और वह आवेश में आकर कई बार गलत निर्णय ले सकता है।

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बुध (Mercury) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में बुध हो तो:

जातक बुद्धिमान, चतुर और प्रसन्नचित्त होता है।

बुध के कारण जातक का दिमाग तेज होता है, और वह अपने जीवन को व्यवस्थित तरीके से जीने की कला जानता है।

उसकी संवाद शैली आकर्षक होती है, और वह बोलने में निपुण होता है। उसकी वाणी से लोग प्रभावित होते हैं।

बुध की उपस्थिति जातक को गणितज्ञ, लेखाकार, या किसी भी मानसिक काम में सफलता दिलाती है।

शरीर में स्वर्ण जैसी कांति होती है, यानी उसकी त्वचा की चमक विशेष होती है।

जातक मितभाषी और उदार स्वभाव का होता है, और दूसरों की मदद करने में आनंदित होता है।

दीर्घायु और सफल जीवन जीने के योग होते हैं।

गुरु (Jupiter) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में गुरु हो तो:

गुरु या बृहस्पति की स्थिति जातक को ज्ञान, सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाती है।

गुरु की उपस्थिति से जातक नैतिक और धार्मिक प्रवृत्तियों वाला होता है। उसके कार्य और आचरण से लोग प्रभावित होते हैं।

व्यक्ति का स्वभाव दयालु और परोपकारी होता है। वह दूसरों की मदद करने में विश्वास रखता है।

गुरु के कारण जातक को समाज में सम्मान मिलता है, और वह अपने गुणों के कारण प्रतिष्ठित होता है।

जातक जीवन में सफल और उच्च पदों पर आसीन होता है।

शुक्र (Venus) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में शुक्र हो तो:

शुक्र की उपस्थिति से जातक सुंदर, आकर्षक और ऐश्वर्यशाली होता है।

जातक को भौतिक सुख-सुविधाओं का आनंद प्राप्त होता है, और वह जीवन में विलासिता का आनंद लेता है।

शुक्र प्रेम, कला और सौंदर्य का ग्रह है, इसलिए जातक का स्वभाव प्रेममय और सौम्य होता है।

मधुर भाषी और भोगी स्वभाव के कारण लोग उससे आकर्षित होते हैं।

शुक्र जातक को संगीत, नृत्य, चित्रकला या किसी अन्य कला में रुचि प्रदान करता है।

वह विद्वान होता है और जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति प्राप्त करता है।

शनि (Saturn) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में शनि हो तो:

अगर शनि मकर या तुला राशि में हो, तो जातक धनाढ्य और सुखी होता है।

लेकिन अन्य राशियों में शनि दरिद्रता और कठिनाइयों का कारण बन सकता है।

शनि की उपस्थिति से जातक का जीवन संघर्षपूर्ण होता है, और उसे जीवन में कड़ी मेहनत से ही सफलता प्राप्त होती है।

शारीरिक रूप से जातक दुबला और कमजोर हो सकता है, और शनि के कारण उसे समय-समय पर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

शनि का प्रभाव जातक को दीर्घायु और गंभीर स्वभाव का बनाता है। वह अनुशासनप्रिय और मेहनती होता है।

अगर शनि का प्रभाव नकारात्मक हो, तो जातक आलसी, निराशावादी और उदासीन हो सकता है।

राहु (Rahu) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में राहु हो तो:

राहु की उपस्थिति से जातक चतुर, छलिया और स्वार्थी हो सकता है।

जातक मानसिक रूप से अशांत रह सकता है, और उसे मस्तिष्क से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है।

राहु की स्थिति जातक को कुटिल और द्वेषपूर्ण स्वभाव का बनाती है। उसे उच्च पदस्थ व्यक्तियों से ईर्ष्या हो सकती है।

कामुक प्रवृत्ति का होता है, और वह अल्प संतानवाला हो सकता है।

राहु का जातक जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करता है, और उसे सफलता प्राप्त करने में बाधाएं आती हैं।

जातक अज्ञात शक्तियों, तंत्र-मंत्र, या गुप्त विज्ञान में रुचि रख सकता है।

केतु (Ketu) का प्रथम भाव में फल:

लग्न में केतु हो तो:

केतु की उपस्थिति से जातक चंचल और अस्थिर स्वभाव का होता है।

जातक को भयभीत और भीरू प्रवृत्ति का सामना करना पड़ता है, और वह छोटी-छोटी बातों से डर सकता है।

केतु का प्रभाव जातक को दुराचारी बना सकता है, और वह सामाजिक नियमों का उल्लंघन कर सकता है।

लेकिन अगर केतु वृश्चिक राशि में हो, तो वह जातक के लिए सुख, धन और परिश्रम से सफलता दिलाने वाला होता है।

केतु की उपस्थिति से जातक को मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक मार्ग पर चलना पड़ सकता है।

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नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि

मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए।

पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए। पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।


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नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का स्वरूप और पौराणिक कथा

मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत, दिव्य और सौम्य होता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं और उनके दाएं हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। त्रिशूल उनके शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि कमल का पुष्प पवित्रता शांति का संकेत देता है। मां शैलपुत्री के इस स्वरूप को देखकर यह समझा जा सकता है कि वह भक्तों को संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं, जिसमें शक्ति और करुणा का संतुलन हो।

मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा
मां शैलपुत्री के जन्म की कथा पुराणों में विस्तार से बताई गई है। उनके पूर्व जन्म की कहानी देवी सती से जुड़ी हुई है, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इस अपमान का पता चला, तो वह अत्यंत दुखी हुईं और अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के पहुंचीं। यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया। अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मीं और उन्हें शैलपुत्री कहा गया।

मां शैलपुत्री ने कठिन तपस्या के बाद पुनः भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। यह कथा दर्शाती है कि मां शैलपुत्री आत्मशक्ति, संकल्प और धैर्य की देवी हैं। उनके इस रूप की उपासना से साधक को जीवन में सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।

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मां शैलपुत्री: नवरात्रि के प्रथम दिन की पूजा विधि

नवरात्रि का प्रथम दिन मां शैलपुत्री की उपासना के लिए समर्पित होता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री प्रथम रूप हैं। उनका यह स्वरूप अत्यंत शांतिपूर्ण और दिव्य है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। यह दिन सभी शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि मां शैलपुत्री की उपासना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग खुलता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन क्या करना चाहिए?
नवरात्रि का आरंभ करने से पहले भक्तों को शुद्धता और पवित्रता का पालन करना चाहिए। दिन की शुरुआत प्रातःकाल स्नान और स्वच्छ वस्त्र धारण करके होती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करना अत्यंत आवश्यक होता है। यह कलश देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और इससे पूरे नवरात्रि की पूजा विधि शुरू होती है।

कलश स्थापना विधि:

सबसे पहले एक शुद्ध ताम्बे या मिट्टी के कलश को लें और उसमें गंगाजल भरें।
कलश के ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखें।
कलश को चावल के ढेर पर रखें और उसमें दूब, सिक्का और सुपारी डालें।
इस कलश की पूजा करें और दीपक जलाकर मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने स्थापित करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा विधि शुरू की जाती है। सफेद फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित कर मां की आराधना की जाती है।

 मां शैलपुत्री का पूजा मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

 

 

नवरात्रि के नवम दिन की पूजा विधि

  • नवमी दिन (सिद्धिदात्री): अपने घर में सभी को आमंत्रित करें और प्रसाद का वितरण करें।
  • नए कार्यों की शुरुआत करें और प्रसाद का वितरण करें।
  • नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर नवम  दिन की पूजा विधि का से वर्णन किया गया है:

         नवमी दिन: सिद्धिदात्री (नवमी)

  • पूजा विधि:
  • देवी को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
  • शक्कर का भोग लगाएं और प्रसाद बांटें।
  • मंत्र: "ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः" का जाप करें।
  • नैवेद्य: काले तिल का भोग अर्पित करें और दान करें। 
  • सामान्य पूजा विधि
  • दीपक: प्रत्येक दिन देवी के समक्ष दीप जलाना न भूलें।
  • आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और मनोकामनाएं प्रकट करें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें।

इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!

नवरात्रि के अष्टम दिन की पूजा विधि

  • अष्टमी दिन (महागौरी): विशेष रूप से नंदी के प्रतीक का पूजन करें।
  • अपने घर की सफाई करें और विशेष पूजा का आयोजन करें।
  • नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। अष्टम दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर अष्टम   दिन की पूजा विधि का  वर्णन किया गया है:

अष्टमी दिन: महागौरी (अष्टमी)

  • पूजा विधि:
  • देवी को नारियल और काले तिल का भोग अर्पित करें।
  • मंत्र: "ॐ ह्रीं वरदायै नमः" का जप करें।
  • नैवेद्य: नारियल का प्रसाद अर्पित करें।
  •  
  • सामान्य पूजा विधि

  • दीपक: प्रत्येक दिन देवी के समक्ष दीप जलाना न भूलें।
  • आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और मनोकामनाएं प्रकट करें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें।
  • इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!