औघड तंत्र विज्ञान के रहस्य "भाग१"....
राजज्योतिषी पं. कृपाराम उपाध्याय "भोपाल" (वैदिक ज्योतिष तंत्र सम्राट)
तंत्र विज्ञान में वाम मार्ग की चर्चा आते ही सामान्यतः इस मार्ग से अज्ञात साधक या जिज्ञासु कर्णपिशाचिनी, कामपिशाचिनी, विप्रचंडलिनी, काममोहिनी स्वप्नेश्वरी आदि की सिद्धि एवं साधनाओं के बारे में सोचने लगता है परंतु यह सच नहीं है यह साधनाऐं ह वाम मार्ग से भी विवादास्पद बनी रहीं है। अनेक वाममार्गी साधक इनकी आलोचना करते रहे हैं, इसलिए नहीं कि यह साधना एवं सिद्धियां होती नहीं या यह शक्तियां नहीं होती बल्कि इसलिए कि यह प्राकृतिक और स्वभाविक रूप से ब्रह्मांड के सर्किट में उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक शक्तियां नहीं है बल्कि यह मनोभाव से आविष्कृत हैं और इनमें ऊर्जा समीकरणों को मानसिक भाव से बनाया जाता है।
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औघड़तंत्र के अद्भुत तकनीक एवं विस्मयकारी सिद्धांत
पं के.आर.उपाध्याय "भोपाल":
आम मनुष्य ही नहीं शायद भ्रमित साधक भी यह समझते हैं कि वाममार्गी तंत्र का अर्थ निष्कृष्ट साधनों एवं क्रियाओं द्वारा भयानक व डरावनी सी शक्तियों को सिद्ध करने का मार्ग है परंतु यह एक भ्रम है वाम मार्ग और दक्षिण मार्ग में अंतर यह है कि वाममार्ग की साधनाऐं नीचे से ऊपर की ओर सिद्ध की जाती हैं, और दक्षिण मार्ग की साधना है ऊपर से नीचे की ओर से सिद्ध की जातीं है। जो भी व्यक्ति यह कहकर बाम मार्ग की आलोचना करते हैं कि यह निश्चित मार्ग है, उन ज्ञानियों को यह ज्ञात ही नहीं है कि दुर्गा जी, काली जी, लक्ष्मी जी, सरस्वती जी, गणेश जी, पार्वती जी, रूद्र स्वयं देवाधिदेव सदाशिव भी वाम मार्ग के ही देवी देवता हैं, वैदिक ऋषि तो मूर्तिपूजक थे ही नहीं वल्कि निराकार ब्रह्म साधक थे।
वाममार्ग के कई संप्रदाय रहे हैं इनमें से प्रमुख और प्राचीन संप्रदाय मात्र ब्रह्मांड की वास्तविक परमात्मा द्वारा उत्पन्न प्राकृतिक शक्तियों की ही साधना करता था यह प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले ब्रह्मांड के पावर सर्किट के मुख्य ऊर्जा बिंदु हैं ब्रह्मांड में मात्र इन शक्तियों का ही मुलत: निवास होता है जैसे:-
१- भैरवी "आदिशक्ति"- (अस्तित्व निर्माण एवं स्थायित्व देने वाली ऊर्जा।) २- काली जी (मूलाधार की उर्जा) ३- दुर्गा जी ( स्वाधिष्ठान की ऊर्जा) ४-लक्ष्मी जी (मणिपुर की ऊर्जा) ५-प्राणेश्वरी जी (अनाहत की ऊर्जा) ६- सरस्वती जी (भावचक्र की ऊर्जा) ७-गणेश जी (आज्ञा चक्र की ऊर्जा) ८- रुद्र (त्रिनेत्र की उर्जा) ९- पार्वती जी (सहस्त्रार की ऊर्जा) १०- सती जी (शिखा दीप की ऊर्जा)
इन्हीं शक्तियों को वैदिक ऋषि देवताओं के नाम से, अघोर पंथ वाले अन्य नाम से, ओघड़ नाथ संप्रदाय में अन्य नाम से तथा अन्य विभिन्न संप्रदायों में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है यह 10 महाविद्याए हैं इन्हें ही नवशक्ति कहा जाता है यह वास्तविक और मुख्य उर्जाएं जो स्वभाविक रूप से इस प्रकृति में उत्पन्न होती हैं और प्रकृति संचालन में अपना कार्य करती हैं। पंकृऊ ।
समयांतर से वाममार्ग में सिद्धों एवं नाथों की परंपरा शुरू हुई और इन मूल शक्तियों को छोड़कर नए-नए मानसिक भावों की शक्तियों की सिद्धियां की जाने लगी, जैसे अगियाबेताल, कर्णपिशाचिनी, कर्णपिशाच, स्वप्नेश्वरीन, भुवनेश्वरी कामेश्वरी काममोहिनी, मधुमोहिनी, डाकिनी, दक्षिणी आदि अनेक हैं । इनकी सत्ता स्वभाविक रूप से तो नहीं है यह काल्पनिक देवियां एवं शक्तियां हैं जिन्हें मानसिक भाव के एकीकरण से विभिन्न ऊर्जा समीकरणों को उत्पन्न करके साधक अस्तित्व में लाता है। यह ब्रह्मांड में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली शक्तियां नहीं है।
आश्चर्यजनक सत्य है....
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आप सोच रहे होंगे कि यह कैसी बातें कर रहा हूं मैं ? जो है ही नहीं वह कहां से उत्पन्न हो सकता है? इन शक्तियों को सिद्ध करने वाले साधक शायद कुपित भी हो जाएं परंतु सत्य विचित्र और विस्मयकारी विषय है यह।* पंकृऊ ।
हम सभी ने सुना होगा के यह प्रकृति महामायाविनी है इसकी माया के कितने रूप हैं यह स्वयं भी नहीं जानती। वास्तव में इस महामाया की प्रकृति द्वारा प्रदत एक स्वाभाविक तकनीकी है। इस प्रकृति में उत्पन्न होने वाली 9 स्वभाविक शक्तियां 0 यानि सदाशिव से सहयोग करके उसी प्रकार असंख्य अनगिनत शक्तियों को उत्पन्न कर सकती है, जिस प्रकार 0 से 9 तक के अंको का संयोग से कोई भी संख्या बनाई जा सकती है इसी प्रकार इन शक्तियों के सम्मिश्रण से कोई भी शक्ति उत्पन्न की जा सकती है। इस गुण के कारण ही हमारे भावों में विभिन्न प्रकार की इच्छाओं को पूर्ति होती है शरीर इसी प्रकार अपनी आवश्यकताओं को पूर्ति करता है यह प्रतिक्षण अपना ऊर्जा समीकरण बदलता रहता है साधना एवं सिद्धि का एक अति गोपनीय रहस्यमय पक्ष है कि आप जिस भाव को मन में उत्पन्न करते हैं उसी भावव के अनुरूप ऊर्जा समीकरण बनता है उस भाव को स्थाई रखें तो वह समीकरण स्थाई हो जाएगा उसे गहन करें तो वह समीकरण गहरा होता जाएगा और एक समय ऐसा आएगा कि वही भाव साकार होकर साधक की अनुभूति में प्रत्यक्ष हो जाता है।
वास्तव में, यह साधक की अनुभूति का प्रत्यक्ष होता है तब वह उस ऊर्जा समीकरण को सिद्ध कर लेता है उसे जब चाहे उत्पन्न करके उसके गुणों व शक्ती का प्रयोग कर सकता है। पकऊ ।
ऊपर हम जिन काल्पनिक शक्तियों का वर्णन करते आए हैं उन सिद्धियों का अन्वेषण मुख्यतः नाथ एवं सिद्ध संप्रदाय की देन है। औघड तंत्र विज्ञान के क्षेत्र में इनका विशिष्ट योगदान है विशेषकर गोरखपन्थ, इस प्रकार की खोजों में गुरु गोरखनाथ का नाम सर्वप्रथम है और इस कारण ही सारी आलोचनाओं के बाद भी मैं व्यक्तिगत रूप से उनकी साधना तमक महानता का कायल हूं।
हालांकि इन काल्पनिक सिद्धियों और साधनाओं का अधिकांश संत - महात्माओं एवं दक्षिण मार्गी साधकों द्वारा सदैव आलोचनात्मक विवाद किया जाता रहा है। आलोचना इसलिए होती रही है कि इन काल्पनिक शक्तियों के समीकरण पवित्र व सामान्य नहीं है इन काल्पनिक शक्तियों का भाव भयानक, वीभत्स, निकृष्ट और रोद्र है इन सिद्धियों से साधक का मानसिक स्तर खतरनाक हो सकता है या मानसिक स्तर निम्न स्तर तक भी जा सकता है। तथापि यह सिद्धियां है और इन को नकारा नहीं जा सकता। पकऊ ।
Best Astrologer Prakash Vyas
हम सभी साधकों को बताना चाहते हैं कि यह सभी शक्तियां मानसिक समीकरणों से उत्पन्न होती हैं इनकी सिद्धि का एक ही सूत्र है मानसिक भाव को विशेष समीकरण में गहन करना। विधि में साधक अपने अनुसार विभिन्न परिवर्तन कर सकते हैं। प्राचीन विधियों में भी इस तरह की निम्न स्तरीय साधना के लिए दर्जनों विधियां हैं इसलिए विधियों का महत्व केवल समान भाव की वस्तुओं और क्रियाओं से ही होता है। "एक विशेष बात में यह बताना चाहता हूं कि जो भी साधक भैरवी गणेश यहां किनी या आज्ञा चक्र की सिद्धि कर लेता है उसे इस तरह की मानसिक शक्तियों को सिद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं होती वह बिना निम्न स्तरीय सिद्धियों को सिद्ध किए ही इन्हें बुला सकता है और इनके गुणों के आधार पर इनसे कार्य करवा सकता है।"
तो निश्चित है कि आप प्रकृति दत्त 10 शक्तियां यानी दंश महाविद्याओं एवं साधकों के गहन और एकीकृत भाव से उत्पन्न विभिन्न निम्न स्तरीय ऊर्जा समीकरण यानी शक्तियों का उत्पन्न होने का रहस्य और विज्ञान व स्वरूप क्या है।पकऊ।
फिर भी यदि कोई संदेह हो तो हमसे पर्सनली निशंकोच पूछ सकते हैं....
शक्ती उपासक:- राजज्योतिषी पं.कृपाराम उपाध्याय (ज्योतिष-तंत्र सम्राट व तत्ववेत्ता)
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