मैं, प्रोफेसर कर्तिक रावल, इस लेख में "नवरात्रि पर्व" के महत्व और उसकी धार्मिक, सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में जानकारी साझा कर रहा हूं। नवरात्रि, जिसका शाब्दिक अर्थ है "नौ रातें", देवी दुर्गा की पूजा का एक प्रमुख उत्सव है। यह पर्व हर साल शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है और इसे माता दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित किया जाता है।
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। यह पर्व विशेष रूप से आध्यात्मिक शक्ति, नवीनीकरण और सकारात्मक ऊर्जा के लिए जाना जाता है। नवरात्रि के दौरान भक्त विशेष साधना और उपवास रखते हैं, जिससे वे अपनी आस्था को और भी मजबूत करते हैं।
नवरात्रि का समय
इस वर्ष, नवरात्रि का पर्व 3 अक्टूबर 2024 से शुरू होगा, जो गुरुवार को है। इस दिन से भक्तगण नवरात्रि की तैयारियों में जुट जाते हैं, जिसमें घरों में कलश स्थापना, पूजा सामग्री एकत्रित करना और अन्य आवश्यक तैयारियां शामिल हैं।
[01] आसो सूद 01, और गुरुवार घट स्थापना - 03/10/2024
[02] आसो सूद 02, और शुक्रवार तारीख़ - 04/10/2024
[03] आसो सूद 03, और शनिवार तारीख़ - 05/10/2024
[04] आसो सूद 03, और रविवार तारीख़ - 06/10/2024
[05] आसो सूद 04, और सोमवार तारीख़ - 07/10/2024
[06] आसो सूद 05, और मंगलवार तारीख़ - 08/10/2024
[07] आसो सूद 06, और बुधवार तारीख़ - 09/10/2024
[08] आसो सूद 07, और गुरुवार तारीख़ - 10/10/2024
[09] आसो सूद 08, और शुक्रवार दुर्गाष्टमी तारीख़ - 11/10/2024
[10] आसो सूद 09, और शनिवार महानवमी - विजयादशमी - दशहरा तारीख़ - 12/10/2024
कलश स्थापना
3 अक्टूबर 2024 को नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। यह कलश देवी मां की उपस्थिति का प्रतीक होता है और इसे पूरे नवरात्रि के दौरान पूजा जाता है। कलश के साथ आम के पत्ते और नारियल रखना शुभ माना जाता है। कलश को पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है, जहां भक्तगण सुबह से लेकर शाम तक उसकी आरती और पूजा करते हैं।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 03 अक्टूबर 2024 को 12:18 एएम बजे से।
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 04 अक्टूबर 2024 को 02:58 एएम बजे तक।
प्रतिपदा तिथि:
उदया तिथि के अनुसार कलश स्थापना 3 अक्टूबर को ही की जाएगी।
विशेष:
ब्रह्म मुहूर्त: 4:53 से 5:41 बजे तक
प्रातः संध्या: 5:17 से 6:30 बजे तक
अमृत काल: 8:45 से 10:33 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: 12:03 से 12:51 बजे तक
विजय मुहूर्त: 2:26 से 3:14 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त: 6:25 से 6:49 बजे तक
इन तिथियों और मुहूर्तों का ध्यान रखकर आप अपने धार्मिक अनुष्ठानों को सही समय पर शुभ कार्यों कर सकते हैं। शुभ कार्यों के लिए यह समय अत्यंत अनुकूल है।
कलश स्थापना के इस पर्व का उद्देश्य न केवल आध्यात्मिक उन्नति है, बल्कि यह समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक भी है। यह मान्यता है कि कलश में देवी मां का निवास होता है, जिससे भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
मां दुर्गा के नौ रूप
नवरात्रि के दौरान, भक्तगण देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। प्रत्येक रूप अपनी विशेषता और दिव्य शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है। आइए इन रूपों के बारे में विस्तार से जानते हैं:
1 शैलपुत्री शक्तिशाली, साहसी और जीवन की स्थिरता का प्रतीक।
यह देवी दुर्गा का पहला रूप है, जिसे पर्वतों की पुत्री कहा जाता है। यह साहस, शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है। भक्तों को जीवन में मजबूती और स्थिरता प्रदान करती हैं। उनकी पूजा से मन में धैर्य और आत्मविश्वास का संचार होता है।
2 ब्रह्मचारिणी ज्ञान, तपस्या और संयम का प्रतीक।
इस रूप में देवी तपस्या और ज्ञान की देवी हैं। ब्रह्मचारिणी संयम, साधना और तप का प्रतीक हैं। उनका पूजा करने से भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान और साधना के लिए प्रेरणा मिलती है। यह रूप मन की शांति और ध्यान में सहायता करता है।
3 चंद्रघंटा शांति और संतुलन का प्रतीक।
देवी चंद्रघंटा शांति और संतुलन का प्रतीक हैं। उनके मस्तक पर घंटे के आकार की चाँद की उपस्थिति होती है। यह भक्तों को मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करती हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति जीवन की परेशानियों से उबर सकता है।
4 कूष्मांडा - सुख और समृद्धि की देवी।
यह देवी सुख और समृद्धि की देवी हैं। उन्हें सृष्टि की उत्पत्ति का कारण माना जाता है। उनके आशीर्वाद से धन, ऐश्वर्य और सुख की प्राप्ति होती है। यह रूप विशेषकर समृद्धि की प्राप्ति के लिए पूजनीय है।
5 स्कंद माता मातृत्व और स्नेह का प्रतीक।
मातृत्व और स्नेह का प्रतीक, स्कंद माता अपनी गोद में भगवान स्कंद को लेकर पूजा जाती हैं। यह रूप मातृत्व की शक्ति और स्नेह का प्रतीक है। इस देवी की पूजा से भक्तों को भावनात्मक बल और परिवार में सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है।
6 कात्यायनी - निडरता और संकल्प का प्रतीक।
यह देवी निडरता और संकल्प का प्रतीक हैं। कात्यायनी का नाम ऋषि कात्यायन के नाम पर रखा गया है। उनका पूजा करने से भक्तों में साहस और संकल्प शक्ति का संचार होता है। यह रूप विशेष रूप से विजय और आत्मविश्वास के लिए पूजनीय है।
7 कालरात्रि संकट और भय का निवारण करने वाली।
संकट और भय को दूर करने वाली, कालरात्रि का रूप सबसे शक्तिशाली माना जाता है। यह रूप भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है। कालरात्रि की आराधना से भक्त भय और संकट से मुक्त होते हैं।
8 महागौरी पवित्रता और शुद्धता की देवी।
पवित्रता और शुद्धता की देवी, महागौरी का रूप भक्तों को मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता प्रदान करता है। उनकी कृपा से भक्तों को जीवन में शुभता और सकारात्मकता का अनुभव होता है। यह रूप विशेष रूप से आशीर्वाद और मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूजनीय है।
9 सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों और पूर्णताओं की देवी।
सभी सिद्धियों और पूर्णताओं की देवी हैं। उनका पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री की कृपा से व्यक्ति अपने जीवन के सभी लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।
इन नौ रूपों की पूजा नवरात्रि के दौरान की जाती है, जिससे भक्तों को शक्ति, ज्ञान, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। हर दिन एक रूप की आराधना करने से जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार होता है, जो भक्तों को उनके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता दिलाता है।
कन्या पूजन और दशहरा
नवरात्रि का समापन अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन के साथ होता है। इस दिन, भक्त कन्याओं का स्वागत करते हैं और उन्हें भोजन कराते हैं। यह परंपरा देवी मां के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। इसके बाद, दशहरा पर्व मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
देवी का आगमन और प्रस्थान
इस वर्ष, मां दुर्गा का आगमन 3 अक्टूबर को पालकी में हो रहा है। देवी पुराण के अनुसार, पालकी की सवारी को शुभ माना जाता है, हालांकि इसे आंशिक महामारी के कारण भी देखा जाता है। इस बार मां भगवती बड़े पंजे वाले मुर्गे पर सवार होकर आ रही हैं, जिसका समाज और राष्ट्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।
निष्कर्ष
नवरात्रि पर्व एक विशेष अवसर है, जो हमें अपने आस्था और भक्ति को और मजबूत करने का अवसर देता है। यह समय है आत्मा की शुद्धि, नवीनीकरण और सकारात्मकता का। इस पर्व के माध्यम से हम न केवल देवी दुर्गा की आराधना करते हैं, बल्कि समाज में एकता, भाईचारा और सकारात्मकता का संचार भी करते हैं। सभी भक्तों को नवरात्रि की शुभकामनाएँ!
Jai Mata Di I am Astro Himanshu Bhardwaj, son of Shri Astro Rajesh Bhardwaj, a young astrologer in the world of astrology.
I belong to a Brahmin family, hence since childhood I have had a distinct interest in astrology and our religious scriptures and the Vedas.
I got the company of my father and my guru Astro Rajesh Sharma ji right from my childhood and due to this,
my interest in astrology was awakened and I received education from him only.
In today's world, where many people say that things like astrology or astrology are superstitions,
I believe that scientific evidence of all these things is available in our religion and we should unite and support this golden age of our religion,
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