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2024-06-11

खगोल विज्ञान में अद्वितीय योगदान के लिए विद्या वाचस्पति से सम्मानित किया ज्योतिषी प्रवीण कुमार को

अहमदाबाद, मई 2024: ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम, ज्योतिषी प्रवीण कुमार, को भारतीय प्राच्य विद्या संस्थान द्वारा "विद्या वाचस्पति सम्मान" से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उनके अद्वितीय योगदान, ज्ञान और दशकों के अनुभव को मान्यता देने के लिए अहमदाबाद के YMCA क्लब में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया।

प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
प्रवीण कुमार का जन्म 21 अगस्त 1992 को हुआ था। उनके पिता ज्योतिष प्रकाश भाईऔर दादा जी ज्योतिषाचार्य अंबालाल जी भी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अनुभवी और प्रतिष्ठित ज्योतिषी थे। इस प्रकार, ज्योतिष विद्या का गहन ज्ञान और अनुभव उन्हें पारिवारिक विरासत में मिला। पारिवारिक पृष्ठभूमि का प्रभाव उनके जीवन और करियर पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

शिक्षा और प्रारंभिक करियर
प्रवीण कुमार ने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है, और उनके पास ज्योतिष विद्या में 10 वर्षों का व्यापक अनुभव है। शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने अपने पारिवारिक व्यवसाय में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। अपने पिता और दादा जी के मार्गदर्शन में, उन्होंने ज्योतिष विद्या के विविध पहलुओं को गहराई से समझा और इस क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई।

अद्वितीय योगदान और अनुभव
ज्योतिषी प्रवीण कुमार ने अपने करियर में अनेक महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। उन्होंने 140 से अधिक बॉलीवुड अभिनेत्रियों और अभिनेताओं को अपनी ज्योतिषीय सेवाएं प्रदान की हैं। उनकी सटीक भविष्यवाणियों और परामर्श ने उन्हें फिल्म उद्योग में एक विश्वसनीय नाम बना दिया है। उन्होंने कई बार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए हैं, जो उनके कौशल और विशेषज्ञता का प्रमाण हैं।

विद्या वाचस्पति सम्मान
मई 2024 में, भारतीय प्राच्य विद्या संस्थान ने अहमदाबाद के YMCA क्लब में एक विशेष समारोह के दौरान ज्योतिषी प्रवीण कुमार को "विद्या वाचस्पति सम्मान" से सम्मानित किया। यह पुरस्कार उनकी विद्वत्ता, ज्ञान और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान को सम्मानित करने के लिए दिया गया है। यह सम्मान उनके करियर की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है और उनके योगदान की मान्यता को और भी बढ़ाता है।


ज्योतिष विद्या में प्रवीण कुमार का दृष्टिकोण
प्रवीण कुमार का दृष्टिकोण हमेशा से ही वैज्ञानिक और तर्कसंगत रहा है। वह अपने ग्राहकों को सिर्फ भविष्यवाणियां ही नहीं बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में संतुलन बनाए रखने के उपाय भी सुझाते हैं। उनके अनुसार, ज्योतिष विद्या केवल भविष्य जानने का साधन नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली है जो हमें हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और सुधारने में मदद करती है।


ग्राहकों की संतुष्टि
प्रवीण कुमार के ग्राहकों की संतुष्टि ही उनके काम की सबसे बड़ी पहचान है। उनके पास आने वाले लोग उनकी सटीक भविष्यवाणियों और उपयोगी परामर्श से बेहद संतुष्ट होते हैं। कई ग्राहकों ने उनके परामर्श के बाद अपने जीवन में सकारात्मक बदलावों का अनुभव किया है।

भावी योजनाएं
प्रवीण कुमार भविष्य में भी अपनी सेवाएं और ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने के लिए तत्पर हैं। वह अपने अनुभवों और ज्ञान को नई पीढ़ी के ज्योतिषियों के साथ साझा करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने कई कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन भी किया है, जहां वह अपने ज्ञान और अनुभव को विस्तार से समझाते हैं।

निष्कर्ष
ज्योतिषी प्रवीण कुमार का जीवन और करियर एक प्रेरणादायक कहानी है। उनके अद्वितीय योगदान, व्यापक अनुभव और गहन ज्ञान ने उन्हें ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम बना दिया है। भारतीय प्राच्य विद्या संस्थान द्वारा अहमदाबाद के YMCA क्लब में प्रदान किया गया "विद्या वाचस्पति सम्मान" उनके प्रयासों और उपलब्धियों की मान्यता है। भविष्य में भी, प्रवीण कुमार अपनी सेवाओं और ज्ञान से लोगों को मार्गदर्शन देते रहेंगे और ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेंगे।

About - Nilesh

From 1982, I started learning astrology from my grandfather Navalshankar Bhai,
and took the knowledge of rituals from father Lalitchandra,
1990 Received degree in Astrology Rituals from Saurashtra University,
in which he received Jyotish Ratna,
Received Jyotish Shiromani Gold Medal in 2005.
After that he received the award of Jyotish Pandit,
Jyotish Visharad, Jyotish Alankar and has been 
associated with Kartik Bhai's
organization for the last 10 years and went to
 Egypt in 2019 and received 
the award of World Record Vastu Shastri.
Received Gold Master Vastu Award by Dr. 
Jitendra Bhatt and Best Astrologer Award of 2023.
For 20 years, on the new moon day of every month, 
the problem of Kaal Sarp is being rectified along with Graha Shanti,
 Nakshatra Shanti Vidhan, 
Vaastu Pyramid installation and Vaastu worship, Bhagwat Week, Vaastu,
Vishnu Yag, Maha Rudra Abhishek, Group Lagan,
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Ashta Lakshmi Puja is being conducted since 2011.  
Along with it, they are making birth chart, year chart,
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नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि

मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए।

पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा के लिए भक्त को शुद्धता और नियम का पालन करना चाहिए। पूजा विधि में निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र पहनाएं, क्योंकि यह रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
मां को सफेद पुष्प, विशेष रूप से चमेली या मोगरे के फूल अर्पित करें।
धूप, दीपक जलाएं और मां को घी से बनी मिठाई या खीर का भोग अर्पित करें।
मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें:
मंत्र:

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।


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नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का स्वरूप और पौराणिक कथा

मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत शांत, दिव्य और सौम्य होता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं और उनके दाएं हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है। त्रिशूल उनके शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि कमल का पुष्प पवित्रता शांति का संकेत देता है। मां शैलपुत्री के इस स्वरूप को देखकर यह समझा जा सकता है कि वह भक्तों को संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं, जिसमें शक्ति और करुणा का संतुलन हो।

मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा
मां शैलपुत्री के जन्म की कथा पुराणों में विस्तार से बताई गई है। उनके पूर्व जन्म की कहानी देवी सती से जुड़ी हुई है, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इस अपमान का पता चला, तो वह अत्यंत दुखी हुईं और अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के पहुंचीं। यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया। अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्मीं और उन्हें शैलपुत्री कहा गया।

मां शैलपुत्री ने कठिन तपस्या के बाद पुनः भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। यह कथा दर्शाती है कि मां शैलपुत्री आत्मशक्ति, संकल्प और धैर्य की देवी हैं। उनके इस रूप की उपासना से साधक को जीवन में सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।

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मां शैलपुत्री: नवरात्रि के प्रथम दिन की पूजा विधि

नवरात्रि का प्रथम दिन मां शैलपुत्री की उपासना के लिए समर्पित होता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री प्रथम रूप हैं। उनका यह स्वरूप अत्यंत शांतिपूर्ण और दिव्य है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। यह दिन सभी शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि मां शैलपुत्री की उपासना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग खुलता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन क्या करना चाहिए?
नवरात्रि का आरंभ करने से पहले भक्तों को शुद्धता और पवित्रता का पालन करना चाहिए। दिन की शुरुआत प्रातःकाल स्नान और स्वच्छ वस्त्र धारण करके होती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करना अत्यंत आवश्यक होता है। यह कलश देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और इससे पूरे नवरात्रि की पूजा विधि शुरू होती है।

कलश स्थापना विधि:

सबसे पहले एक शुद्ध ताम्बे या मिट्टी के कलश को लें और उसमें गंगाजल भरें।
कलश के ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखें।
कलश को चावल के ढेर पर रखें और उसमें दूब, सिक्का और सुपारी डालें।
इस कलश की पूजा करें और दीपक जलाकर मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने स्थापित करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा विधि शुरू की जाती है। सफेद फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित कर मां की आराधना की जाती है।

 मां शैलपुत्री का पूजा मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में शांति और स्थिरता आती है और जीवन के कठिन दौर में भी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

 

 

नवरात्रि के नवम दिन की पूजा विधि

  • नवमी दिन (सिद्धिदात्री): अपने घर में सभी को आमंत्रित करें और प्रसाद का वितरण करें।
  • नए कार्यों की शुरुआत करें और प्रसाद का वितरण करें।
  • नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर नवम  दिन की पूजा विधि का से वर्णन किया गया है:

         नवमी दिन: सिद्धिदात्री (नवमी)

  • पूजा विधि:
  • देवी को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
  • शक्कर का भोग लगाएं और प्रसाद बांटें।
  • मंत्र: "ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः" का जाप करें।
  • नैवेद्य: काले तिल का भोग अर्पित करें और दान करें। 
  • सामान्य पूजा विधि
  • दीपक: प्रत्येक दिन देवी के समक्ष दीप जलाना न भूलें।
  • आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और मनोकामनाएं प्रकट करें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें।

इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!

नवरात्रि के अष्टम दिन की पूजा विधि

  • अष्टमी दिन (महागौरी): विशेष रूप से नंदी के प्रतीक का पूजन करें।
  • अपने घर की सफाई करें और विशेष पूजा का आयोजन करें।
  • नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। अष्टम दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है। यहाँ पर अष्टम   दिन की पूजा विधि का  वर्णन किया गया है:

अष्टमी दिन: महागौरी (अष्टमी)

  • पूजा विधि:
  • देवी को नारियल और काले तिल का भोग अर्पित करें।
  • मंत्र: "ॐ ह्रीं वरदायै नमः" का जप करें।
  • नैवेद्य: नारियल का प्रसाद अर्पित करें।
  •  
  • सामान्य पूजा विधि

  • दीपक: प्रत्येक दिन देवी के समक्ष दीप जलाना न भूलें।
  • आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और मनोकामनाएं प्रकट करें।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को परिवार और मित्रों में बांटें।
  • इन विधियों का पालन करने से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। जय माता दी!