
जय गुरूदेव॥ वास्तु शास्त्र दसों दिशाओं का महत्व हमारे ब्रह्मांड पुर्वादि 8 दिशाओं अंतरिक्ष तथा पाताल भूगर्भीय ऊर्जाओं के दबाव में है इन दिशाओं के घनत्व व गुरुत्वाकर्षण केंद्र के स्वामियों को भारतीय संस्कृति में लोकपाल कहाँ है ॥ आचार्य डाॅ. नरहरि प्रसाद यह इंद्र अग्न यम नैरूति वरुण वायु कुबेर ईशान ब्रह्मा तथा अनंत के नाम से जाने जाते हैं॥ इनकी ऊर्जा शक्ति के प्रभाव को इन देवताओं के स्वभाव अनुसार दर्शाया है ॥ आचार्य डाॅ. नरहरि प्रसाद पूर्व दिशा - पूर्व दिशा का स्वामी इंद्र है यह देवताओं का राजा है पीला वर्ण है इस कारण इसके स्थान - पूर्व दिशा को कम करना, छोटा करना, ऊंचा अधिक करना, बाहर बढ़ाना इस देवता का अपमान माना जाता है - जो कि राज्य की हानि करता है तथा वंश की हानि करता है और धन की हानि होती है इसे पितरों काभी भाग कहते हैं॥ आचार्य डाॅ. नरहरि प्रसाद पुरुष संतान का फल भी इस स्थान के शुभ होने पर हैं अर्थात पूर्व दिशा दूषित होने पर घर में पुत्र संतान की प्राप्ति में भी बाधा हो सकती है पूर्व दिशा के अशुभ होने की अवस्था में इस दिशा में पर्दे पीले रंग के हो तो शुभ माना जाता है और इस दिशा की ऊर्जा को बढ़ाने के लिए सूर्य की स्थापना विधि से की जाए और लाल वस्त्र की स्थापना विधि से की जाए तो इस दिशा में उपस्थित दोष का निवारण किया जा सकता है ॥ अग्नि कोण पूर्व - दक्षिण के बीच का भाग को अग्नि कोण कहा जाता है॥ 2 दिशाओं के मिलने से अधिक शक्ति प्रभा रहती है पूर्व दिशा का मालिक इंद्रदेव तथा दक्षिण में दंड का अधिकार इन दोनों की शक्ति का मिलान विशेष प्रभाव में ऊर्जा कारक है जो शक्ति का प्रतीक है स्वास्थ्य का प्रदायक है इसी कारण प्राचीन शास्त्रों में शिलान्यास मकान के चारों कोणों में इस तरह पंच शिलान्यास कहा गया है उसमें प्रथम शिलान्यास सदैव अग्नि कोण में करने का लिखा हुआ है दूसरी नैॠत्य तीसरी वायव्य चौथी ईशान पांचवी शीला ब्रह्म स्थान के मध्य में स्थित की जाती है इस दिशा में अग्नि यंत्र, रसोई, चूल्हा, इलेक्ट्रिक बोर्ड, इनवर्टर रखना अच्छा रहता है इस दिशा में पर्दों का रंग लाल वर्ण का शुभ माना जाता है॥ दक्षिण दिशा दक्षिण दिशा का स्वामी यम है कृष्ण वर्ण है अर्थात काले रंग का है इसका अस्त्र है हाथ में दंड धारण किए हुए हैं अतः इसको न्यायाधिपति भी कहते हैं इसे सूर्य का पुत्र कहा गया है अतः धन धान्य समृद्धि व शक्ति की दिशा मानी गई है क्योंकि इसकी प्रकृति क्रूर है अतः इसको अधिक सम्मान देना अर्थात इसके भाग दक्षिण भाग को ऊंचा रखने में ही भलाई है ॥ इसका वर्ण कृष्ण है अर्थात श्याम वर्ण का है अतः इस दिशा के ग्लास कांच पर्दे इत्यादि कृष्ण वर्ण के शुभ कहे गए हैं॥ नैऋत्य- यह दक्षिण-पश्चिम दिशाओं का मिला हुआ भाग है पश्चिम भाग वरुण का शीतल स्वभाव दक्षिण भाग यम का जिसका क्रूर स्वभाव दोनों शक्तियों का समन्वय इस कोण में बड़ा लचीला योग एक तरह से ज्वाभाटा योग बनाता है॥ इसका अधिपति निरुती राक्षस प्रकृति का एवं संहार का अधिपति है अतः इस दिशा में निर्माण सोच समझकर वास्तु विधि के अनुसार करना चाहिए इस दिशा का सम्मान करना करना शत्रु भय से रक्षा करता है शस्त्र इत्यादि रखना शुभ है इस दिशा में कृष्ण नीले वर्ण के कांच और पर्दे शुभ माने जाते हैं यह राहु का स्थान भी कहा गया है इसके कारण इस भाग को ऊंचा रखना और इस भाग में ध्वजा की स्थापना करके इसके दिशा दोष को भी एक हद तक कम किया जा सकता है॥ आचार्य डाॅ. नरहरि प्रसाद