
वैदिक ज्योतिष में सभी नौ ग्रहों में राहु को विशेष स्थान प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र में वैसे तो राहु को एक क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है, पर माना जाता है कि जिस भी जातक पर राहु की कृपा हो जाए वो उसे रंक से राजा बना सकते हैं। आइए जानते हैं कुंडली के प्रथम भाव में राहु के फल। Best astrologer website:- https://allso.in/ , best matrimonial website :- https://vivahallso.com/
कुंडली का पहला भाव जिसे लग्न भी कहा जाता है यहां पर राहु विराजमान होने पर जातक को मिले जुले परिणामों की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक जिनके लग्न में राहु हो वो परोपकारी और धैयर्वान होते हैं। कुंडली के पहले भाव में स्थित राहु जातक के कद को ऊंचा बनाता है। ऐसा व्यक्ति कभी रोगी तो कभी निरोगी बना रहता है। rahu ka 12 bhavo may fal
माना जाता है कि जिन भी जातकों की कुंडली के प्रथम भाव में राहु देव विराजमान होते हैं ऐसे जातकों को अपने जीवनकाल में धन की कमी नहीं होती। उन्हें किसी न किसी प्रकार से धन की प्राप्ति होती रहती है। ऐसे लोग समय समय पर दुसरों के धन का प्रयोग अपने लिए करते हैं और उसी धन से अन्य लोगों को भी लाभ पहुंचाते हैं।
वैदिक ज्योतिष में माना जाता है कि लग्न में राहु होने पर व्यक्ति की वेशभूषा प्रभावशाली होती है। ऐसे जातक छोटे से स्तर से शुरुआत कर जीवन में बड़ी ऊंचाइयों को प्राप्त करते हैं और अपने जीवन काल में विभिन्न प्रकार के भोगों का उपभोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने से बड़ों से विनम्रता पूर्वक व्यवहार करते हैं। पहले घर में स्थित राहु व्यक्ति को साहसिक बनाता है और ऐसा व्यक्ति लोगों से अपना काम निकलवाने में निपुण होता है। kundli may rahu konsa stan par hai janiye
प्रथम भाव में स्थित राहु शिक्षा में तो कुछ व्यवधान उत्पन्न करता है लेकिन ऐसा व्यक्ति अपने जीवन काल में कई प्रकार का ज्ञान प्राप्त करता है। यहां स्थित राहु व्यक्ति को बुद्धिमान और व्यवहार कुशल बनाता है और व्यक्ति अपने वादे को पूरा करने में विश्वास रखता है।
प्रथम भाव में स्थित राहु के कुछ अशुभ परिणाम भी बताए जाते हैं जैसे लग्न में स्थित राहु व्यक्ति को अति साहसी या कहना चाहिए कि कई बार दुस्साहसी बनाता है। व्यक्ति में बेवजह शक करने की आदत होती है और वो कई बार गलत को सही और सही को गलत समझता रहता है। ऐसे व्यक्ति चाहते हैं कि लोग उनके दिशा निर्देशों के अनुसार कार्य करें जिससे कई बार इनके संबंध लोगों से अत्याधिक खराब भी हो सकते हैं। प्रथम भाव में स्थित राहु को वैवाहिक जीवन और साझेदारी के लिहाज से भी अच्छा नहीं माना जा kya hota hai rahu ka jab bo first second ya third four stan par ho ya koi or stan par ho
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के द्वितीय भाव को धन भाव भी कहा जाता है। इस भाव से जातक की आर्थिक स्थिति, उसे प्राप्त होने वाले परिवार का सुख, वाणी, जीभी, खाना पीना और संपत्ति के बारे में भी जाना जा सकता है। आइए जानते हैं राहू के दूसरे भाव में होने के प्रभाव।
कुंडली के दूसरे भाव में राहु जातक को शुभ और अशुभ दोनों तरह के फल प्रदान करते हैं। माना जाता है कि ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है और उन्हें राजा या सरकार के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। धन भाव में स्थित राहु जातक को व्यवहार कुशल भी बनाता है और लोग ऐसे जातकों पर आराम से भरोसा कर लेते हैं ये अलग बात है कि ये किसी के विश्वास पर खरे उतरे या न उतरे। ऐसे जातकों की ठोड़ी पर किसी न किसी प्रकार का निशान होता है और ऐसे जातकों की नाक सामन्यता लम्बी होती है।
द्वितीय भाव में स्थित राहु जातक को सभी प्रकार का सुख प्रदान करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में गौरव और आदर प्राप्त करते हैं और उन्हें विदेशों से भी धन की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि यहां स्थित राहु जातक को विदेशों से धन कमाने के बहुत मौके प्रदान करता है और जातक को जीवनकाल में देश और विदेशों में घूमने के बहुत मौके प्राप्त होते हैं। ऐसे जातक अपने शत्रुओं को आराम से परास्त कर लेते हैं।
दूसरे भाव में राहु होने से जातक की संतान की संख्या सामान्यता कम ही होती है और यहां स्थित राहु व्यक्ति के कामों में किसी न किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न करता रहता है। ऐसे जातकों की वाणी में किसी न किसी प्रकार के दोष होने की भी संभावना होती है। ऐसे जातक मांस मदिरा या किसी प्रकार के नशे के शौकीन भी हो सकते हैं। माना जाता है द्वितीय भाव में अशुभ राहु कई बार पैतृक संपदा का विनाश का कारण भी हो सकते हैं।
द्वितीय भाव में राहु कई बार जातक को बहुत खर्चीला भी बनाता है और व्यक्ति बेमतलब के कार्यों पर धन को बरबाद करता है।
वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के तीसरे भाव को सहज भाव या पराक्रम भाव भी कहा जाता है। इस भाव से किसी भी जातक के छोटे भाई बन, नौकर चाकर, धैर्य, साहस, बल कंधे और हाथ आदि का विचार किया जाता है। जानिए राहु के तीसरे भाव में होने के फल।
कुंडली के तीसरे भाव में स्थित राहु को अरिष्टनाशक और दुखों का नाश करने वाला बताया गया है। वैदिक ज्योतिष में जाता है कि इस भाव में स्थित राहु जातक को निरोगी काया और बल प्रदान करते हैं। ऐसे जातक अत्याधिक बलशाली होने के साथ साथ पराक्रमी और साहसी होते हैं।
तृतीय भाव में राहु जातक को चंचल स्वभाव तो प्रदान करते हैं लेकिन साथ साथ जातक विद्यवान और भाग्यशाली होता है। ऐसे जातक अपने जीवन काल में कई प्रकार की यात्राएं करता है जिससे उसे खुश मान सम्मान और यश की प्राप्ति होती है।
तीसरे भाव में राहु होने पर जातक की कीर्ति देश विदेशों मे फैलती है और वह अपने जीवन काल में खूब मान सम्मान प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति को दान पुण्य पर बहुत विश्वास होता है और वह सबके साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करते हैं। ऐसे जातक किसी के साथ भी भेदभाव पूर्ण व्यवहार नहीं करते और जो भी कार्य करते हैं पूरी निष्ठा और लगन के साथ करते हैं।
तृतीय भाव में स्थित राहु व्यक्ति को सभी प्रकार के सुख साधन, नौकर चाकर और वाहन इत्यादि सभी प्रकार विलासिता प्रदान करता है। व्यक्ति को बिना बहुत से प्रयत्न के जीवन में सबकुछ आराम से प्राप्त हो जाता है। तीसरे भाव में राहु व्यक्ति के भाग्योदय में सहायक होते हैं और व्यक्ति को जीवन में हर प्रकार की सफलता और वैभव प्रदान करते हैं।
इस भाव में स्थित राहु के अशुभ होने पर जातक कई बार अभिमानी या अत्याधिक आलसी भी हो जाता है। ऐसे जातक अपने आस पास के लोगों पर शक करने लगता है और अपनी रातों की नींद खराब करता है। तृतीय भाव में खराब राहु कई बार भाइयों के बीच में बेमतलब का विरोध भी पैदा करता है और उनमें जीवनभर किसी न किसी बात को लेकर मनमुटाव बना रहता है।
चतुर्थ भाव में स्थित राहु का फल
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के चौथे घर को मातृस्थान कहा जाता है। इस भाव से जातक को प्राप्त होने वाले मातृसुख, गृह सुख, वाहन का सुख, मित्र, पेट के रोग और मानसिक स्थिति का विचार किया जाता है। आइये जानते हैं राहु के चौथे भाव में होने के फल।
जन्मकुंडली के चौथे भाव में स्थित राहु आमतौर पर जातक को शुभ परिणाम देता है। यहां स्थित राहु जहां एक ओर जातक को साहसी बनाता है वहीं उसे राजसत्ता के माध्यम से सुख प्रदान करता है। चौथे भाव में स्थित राहु जातक को राजा का प्रिय पात्र भी बना सकता है। ऐसे जातकों को माता का पूर्ण सुख प्राप्त होता है और जातक के पास विभिन्न प्रकार के वस्त्र और आभूषण होते हैं। यहां स्थित राहु जातक को प्रशासनिक व्यक्तियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के लाभ कराने में सहायक होता है।
कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु स्थित होने पर जातक सैर सपाटे का शौकीन होता है और देश विदेश में घूमने के अवसर दिलाता है। ऐसे जातकों को अपनी जन्मभूमि में रहने के अवसर सामान्यता कम ही प्राप्त होते हैं। चौथे भाव का राहु वयक्ति की उन्नति में विभिन्न प्रकार की रुकावटें उत्पन्न करता है और कठिन परिश्रम और मेहनत के बाद ही जातक को सफलता प्राप्त हो पाती है। वैदिक ज्योतिष में चतुर्थ भाव के राहु को सरकारी नौकरी और साझेदारी के कामों के लिए अच्छा परिणाम देने वाला बताया गया है।
कुंडली के चौथे भाव का राहु कई बार जातक के दो या ज्यादा विवाह का कारण भी हो सकता है। ऐसे जातक का कई लोगों से आंतरिक लगाव भी हो सकता है। ऐसे जातकों का जीवनसाथी विपरीत स्थितियों में उसका पूरा सहयोग करता है। इस भाव में स्थिति राहु होने से जातक के पुत्रों की संभावना कम ही होती है। 36वें वर्ष से लेकर 56 वें तक जातक का भाग्य उसका पूरा साथ देता है।
कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु अगर अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो यह जातक को कई प्रकार की मानसिक परेशानियां भी देता है। ऐसे जातकों के पास हर प्रकार की सुख सुविधा होने के बाद भी जातक किसी न किसी बात को लेकर अशांत बना रहता है और बेमतलब की चिंताओं में अपनी रातों की नींद खराब करता है।
जन्मकुंडली के पांचवे भाव को संतान भाव भी कहा जाता है। इस भाव से बच्चों से मिलने वाले सुख, विद्या्, बुद्धि और उच्चशिक्षा, पाचन शक्ति और अचानक धन लाभ और नौकरी परिवर्तन का विचार किया जाता है। आपको बताते हैं राहु देव यदि किसी जातक की कुंडली के पांचवे भाव में हो तो क्या होता है।
वैदिक ज्योतिष में माना जाता है कि कुंडली के पांचवे भाव में स्थित राहु जातक को तीक्ष्ण बुद्धि प्रदान करता है। ऐसे जातकों को विभिन्न प्रकार के शास्त्रों का ज्ञान होता है। ऐसे जातक स्वभव से कर्मठ और दयालु होतें हैं। पांचवे भाव में राहु होने पर जातक भाग्यशाली होता है। ये अलग बात है कि जातक को पहली संतान के रूप में कन्या की ही प्राप्ति होती हैँ आप कई प्रकार के व्यवसाय कर अपनी जीवका चलाने में कामयाब हो सकते हैं। ऐसे जातकों को पुत्र प्राप्ति में कई प्रकार के व्यवधान आ सकते हैं।
पांचवे भाव में स्थित राहु व्यक्ति को रचनात्मकता प्रदान करता है। ऐसे जातक लेखन कला में प्रवीण होते हैं ओर जातक को जीवन काल में खूब मानसम्मान और यश की प्राप्ति होती है।
कुंडली के पंचम भाव में स्थित राहु के कुछ दुष्पिरणाम भी बताए जाते हैं। अशुभता की स्थिति में यहा स्थति राहु व्यक्ति को मतिभ्रम का शिकार बना देता है। जातक को संतान को लेकर किसी न किसी प्रकार का कष्ट बना रहता है। यहां स्थित राहु जातक का धन बेकार के कामों में खर्च कराता रहता है जब तक कि जातक पूर्ण रूप से निर्धन हो जाए। पंचम में भाव राहु जातक को काला रंग प्रदान करते हैं, अधिकतर देखा गया है कि ऐसे जातकों का रंग काला ही होता है।
पंचम भाव में स्थित राहु जातक को गलत मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे जातकों को मन पढ़ाई लिखाई में कम ही रहता है। ऐसे लोगों को पेट संबंधी किसी न किसी प्रकार की परेशानी लगी रहती है। पेट में शूल, गैस और मंदाग्नि रोग की संभावना अधिक होती है। अत्याधिक प्रयास के बाद ही धन की प्रापति होती है। जीवनसाथी से भी मनमुटाव की संभावना बनी रहती है।
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के छठे भाव को रोग स्थान या शत्रु स्थान भी कहा जाता है। कुंडली के इस भाव से किसी भी व्यक्ति के दुश्मनों, बिमारी, भय और तनाव का पता चलता है। कुंडली का छटा भाव गृह कलह, मुकदमें, मामा मौसी का सुख, घर में नौकर चाकरों की उपलब्धता और जननांगों के रोग के बारे में भी बताता है। जानिए राहु के छटे भाव में होने के प्रभाव।
जन्मकुंडली के छठे भाव में स्थित राहु जातक के अनिष्टों का निवारण करता है। माना जाता है कि यदि किसी जातक की कुंडली के छटे भाव में राहु देव विराजमान हो तो उसके जीवन के कष्ट अपने आप समाप्त हो जाते हैं। ऐसे जातकों का हृदय उदार होता है और वे हर कार्य बड़ी धैर्यपूर्वक करते हैं। छटे भाव में राहु जातक को बहुत साहसिक बनाता है और वह अपने जीवन में बड़े बड़े कामों को आसानी से कर लेते हैं। ऐसे जातक शारीरिक रूप से निरोगी और दीर्घायु होते हैं।
कुंडली के छटे भाव में राहु विराजमान हो तो जातक अपने सभी प्रकार के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है और उसकी प्रतिष्ठा किसी राजा की तरह होती है। ऐसे जातकों पर सरकार या सरकारी अधिकारियों की कृपा बनी रहती है। अन्य धर्मों के लोगों के द्वारा ऐसे जातकों को लाभ और धन की प्राप्ति होती है। छटे भाव में स्थित राहु जातक को एक अमीर व्यक्ति बनाता है।
कुंडली के षठ भाव में स्थित राहु जहां जातक को अनेक प्रकार के वाहनों का सुख देता है वहीं जातक को सुंदर वस्त्र और विभिन्न प्रकार के आभूषण भी प्रदान करवाता है। ऐसे जातकों को बहुत अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है जो जीवन के सभी अच्छे और बुरे समय में जातक का साथ देता है।
कुंडली के छठे भाव में राहु यदि खराब प्रभाव दे तो ऐसे जातकों की संगति खराब रहती है। उन्हें किसी न किसी प्रकार की ऊपरी बाधाएं सताती रहती हैं, कई बार जातक को कोई रहस्यमयी बीमारी हो सकती है जो काफी समय तक चिकित्सकों की समझ में भी नहीं आती। ऐसे जातकों की नौकरी में भी किसी न किसी प्रकार की बाधा बनी रहती है। मामा, मौसी या चाचा पक्ष से सुख में कमी ही बनी रहती है।
वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के सप्तम भाव को विवाह स्थान कहा जाता है। इस भाव से किसी जातक के वैवाहिक सुख, शैयया सुख, साझेदारी, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार और विदेश में प्रवास के योग, कोर्ट कचहरी के मामले को देखा जाता है। जन्म कुंडली का सप्तम भाव किसी जातक को जीवन में प्राप्त होने वाले यश और अपयश को भी दर्शाता है। जानिए राहु के सप्तम भाव मे&
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