घृष्णेश्वर मंदिर की कथा और ज्योतिर्लिंग का महत्व

घृष्णेश्वर मंदिर की कथा और ज्योतिर्लिंग  का महत्व

घृष्णेश्वर मंदिर का परिचय

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम (बारहवां) ज्योतिर्लिंग है**। यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है और प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं के पास स्थित है।

घृष्णेश्वर मंदिर को "कुंभी द्वीप" भी कहा जाता है, और इसका उल्लेख कई हिंदू धर्मग्रंथों में किया गया है। यह स्थान भगवान शिव और माता पार्वती के विशेष आशीर्वाद से पवित्र माना जाता है

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

1. घृष्मा और शिवलिंग की उत्पत्ति

प्राचीन समय में "घृष्मा" नामक एक परम शिवभक्त महिला अपने पति सुधर्मा के साथ यहाँ निवास करती थीं।

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घृष्मा माता ने गोदावरी नदी के पास एक शिवलिंग बनाकर नियमित रूप से पूजा और अभिषेक करना शुरू किया

उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए।

शिवजी ने उन्हें वरदान दिया कि वे इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान रहेंगे

तभी से इस ज्योतिर्लिंग को "घृष्णेश्वर" कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है "घृष्मा के भगवान शिव"

2. सुदेहा और घृष्मा की परीक्षा

घृष्मा की बहन सुदेहा को कोई संतान नहीं थी, इसलिए उसने अपने पति सुधर्मा से विवाह कर लिया।

सुदेहा को बाद में जलन होने लगी क्योंकि घृष्मा की एक संतान हुई थी।

ईर्ष्या के कारण, सुदेहा ने घृष्मा के पुत्र की हत्या कर दी और उसका शव गोदावरी नदी में बहा दिया।

लेकिन घृष्मा अपने नित्य नियम के अनुसार भगवान शिव की आराधना करती रहीं और अपने पुत्र को याद नहीं किया।

उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उनके पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया।

घृष्मा ने सुदेहा को क्षमा कर दिया और भगवान शिव से अनुरोध किया कि वे इस स्थान पर सदा के लिए निवास करें

तभी से भगवान शिव यहाँ घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाते हैं

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व

1. भक्ति और क्षमा का प्रतीक

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के क्षमा, करुणा और भक्ति के प्रतीक के रूप में पूजे जाते हैं।

यह स्थान उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो अहंकार और ईर्ष्या से मुक्ति चाहते हैं।

2. सबसे छोटा लेकिन शक्तिशाली ज्योतिर्लिंग

यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे छोटा है, लेकिन इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती है।

कहा जाता है कि यहाँ दर्शन करने मात्र से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है

3. विवाह और संतान प्राप्ति के लिए पूजन

जो दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं, वे यहाँ विशेष पूजा करवाते हैं।

यहाँ की पूजा विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने में भी सहायक मानी जाती है

घृष्णेश्वर मंदिर का इतिहास और निर्माण

1. प्राचीन हिंदू ग्रंथों में उल्लेख

घृष्णेश्वर मंदिर का उल्लेख शिव पुराण, स्कंद पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है

इसे भगवान शिव के अंतिम ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।

2. अहिल्याबाई होल्कर द्वारा पुनर्निर्माण

वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।

अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ, महाकालेश्वर और अन्य मंदिरों का भी पुनर्निर्माण कराया था

मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की नक्काशी की गई है

घृष्णेश्वर मंदिर का स्थान और यात्रा मार्ग

स्थान

राज्य – महाराष्ट्र

जिला – औरंगाबाद

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नजदीकी प्रसिद्ध स्थल – एलोरा की गुफाएँ (1 किमी दूरी पर)

कैसे पहुँचे?

हवाई मार्ग – निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद एयरपोर्ट (37 किमी दूर) है।

रेल मार्ग – निकटतम रेलवे स्टेशन औरंगाबाद रेलवे स्टेशन (30 किमी दूर) है।

सड़क मार्ग

औरंगाबाद से घृष्णेश्वर मंदिर बस, टैक्सी या निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है

एलोरा की गुफाएँ देखने के बाद ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना एक लोकप्रिय यात्रा क्रम है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

घृष्णेश्वर मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती पहनना अनिवार्य है।

यहाँ सावन, महाशिवरात्रि और श्रावण सोमवार विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं।

मंदिर में प्रतिदिन महाआरती और रुद्राभिषेक किया जाता है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की भक्ति, करुणा और क्षमा का प्रतीक है।

यह स्थान उन लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो विवाह, संतान प्राप्ति और आध्यात्मिक शांति की कामना रखते हैं

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि एलोरा की गुफाओं के ऐतिहासिक महत्व से भी जुड़ी हुई है

क्या आप इस पवित्र धाम की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं?