माघ पूर्णिमा 12/02/2024, बुधवार, सूर्योदय से 19:24 मिनट तक की व्रत कथा (Maghi Purnima Vrat Katha)

माघ पूर्णिमा 12/02/2024, बुधवार, सूर्योदय से 19:24 मिनट तक की व्रत कथा (Maghi Purnima Vrat Katha)

हिंदू धर्म में धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखने वाली माघ पूर्णिमा को बहुत ही पुण्यफल देने वाली माना जाता है। इस दिन स्नान-दान का जितना महत्व है, उतना ही महत्व विष्णुपूजा करने और कथा सुनने का भी है।

माघ पूर्णिमा व्रत विधि (Maghi Purnima Vrat Vidhi)

स्नान का महत्व:

इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा स्नान का विशेष महत्व है।

यदि नदी स्नान संभव न हो, तो घर पर ही स्नान करके उसमें गंगाजल मिलाना चाहिए।

संकल्प और पूजा:

स्नान के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।

धूप, दीप, पुष्प, चंदन, रोली, अक्षत, तुलसी दल आदि से पूजन करें।

भगवान विष्णु को पीले फूल और तुलसी अर्पित करें।

दान-पुण्य:

इस दिन ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, गुड़, तिल, आटा और दक्षिणा का दान करना अत्यंत शुभ होता है।

गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

व्रत का पालन:

इस दिन व्रत रखने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

फलाहार करें और एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करें।

कथा और भजन-कीर्तन का आयोजन करना चाहिए।

रात्रि जागरण और दीपदान:

रात्रि में भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें।

नदी, तालाब या घर के आंगन में दीपदान करें।

व्रत कथा (Vrat Katha)

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पौराणिक कथा में वर्णन मिलता है कि किसी नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी रूपवती, पतिव्रता और सर्वगुण संपन्न थी। बस दुख था तो सिर्फ़ इस बात का, कि उनकी कोई संतान नहीं थी। यही कारण था, कि वो दोनों बहुत चिंतित रहते थे। एक बार उस नगर में एक महात्मा आए। वो नगर के सभी लोगों से दान लेते थे, लेकिन धनेश्वर की पत्नी जब भी उन्हें दान देने जाती, तो वो उसे लेने से मना कर देते थे। एक दिन धनेश्वर ने उन महात्मा के पास जाकर पूछा- हे महात्मन्! आप नगर के सभी लोगों से दान लेते हैं, लेकिन मेरी पत्नी के हाथ का दान क्यों नहीं स्वीकार करते? हमसे अगर कोई भूल हुई हो तो हम ब्राह्मण दंपत्ति आपसे क्षमा याचना करते हैं।

महात्मा बोले- नहीं विप्र! तुम तो बहुत ही विनम्र और हमेशा आदर-सत्कार करने वाले ब्राह्मण हो! तुमसे भूल तो कदापि नहीं हो सकती। महात्मा की बात सुनकर, धनेश्वर हाथ जोड़कर बोला- हे मुनिवर! फिर आख़िर क्या कारण है? कृपया हमें उससे अवगत कराएं। इसपर महात्मा बोले- हे विप्र! तुम्हारे कोई संतान नहीं है। और जो दंपत्ति निःसंतान हो, उसके हाथ से भिक्षा लेना, अधम या पापी के हाथ से भिक्षा ग्रहण करने के समान है! तुम्हारे द्वारा दिया गया दान लेने के कारण मेरा पतन हो जायेगा! बस यही कारण है, कि मैं तुम दंपत्ति से दान स्वीकार नहीं करता।

महात्मा के ये वचन सुनकर, धनेश्वर उनके चरणों में गिर पड़ा, और विनती करते हुए बोला- हे महात्मन्! संतान ना होना ही तो हम पति-पत्नी के जीवन की सबसे बड़ी निराशा है। यदि संतान प्राप्ति का कोई उपाय हो, तो बताने की कृपा करें मुनिवर! ब्राह्मण का दुःख देखकर महात्मा बोले- हे विप्र! तुम्हारे इस कष्ट का एक निवारण अवश्य है! तुम 16 दिनों तक श्रद्धापूर्वक काली माता की पूजा करो! मां प्रसन्न होंगी, तो उनकी कृपा से अवश्य तुम्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी! इतना सुनकर धनेश्वर बहुत ख़ुश हुआ। उसने कृतज्ञतापूर्वक महात्मा का आभार प्रकट किया और घर आकर पत्नी को सारी बात बताई। पति-पत्नी को महात्मा के द्वारा बताए गए उपाय से आशा की एक किरण दिखाई दी, और धनेश्वर मां काली की उपासना के लिए वन चला गया।

ब्राह्मण ने पूरे 16 दिन तक काली माता की पूजा की और उपवास रखा। उसकी भक्ति देखकर और विनती सुनकर मां ब्राह्मण के सपने में आईं, और बोलीं- हे धनेश्वर! तू निराश मत हो! मैं तुझे संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति का वरदान देती हूं! लेकिन 16 साल की अल्पायु में ही तेरे पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। काली माता ने कहा- यदि तुम पति-पत्नी विधिपूर्वक 32 पूर्णिमासी का व्रत करोगे, तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो जायेगी। प्रातःकाल जब तुम उठोगे, तो तुम्हें यहां आम का एक वृक्ष दिखाई देगा। उस पेड़ से एक फल तोड़ना, और ले जाकर अपनी पत्नी को खिला देना। शिव जी की कृपा से तुम्हारी पत्नी गर्भवती हो जाएगी। इतना कहकर माता अंतर्ध्यान हो गईं।

प्रातःकाल जब धनेश्वर उठा, तो उसे आम का वृक्ष दिखा, जिसपर बहुत ही सुंदर फल लगे थे। वो काली मां के कहे अनुसार फल तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ने लगा। उसने कई बार प्रयास किया लेकिन फिर भी फल तोड़ने में असफल रहा। तभी उसने विघ्नहर्ता गणेश भगवान का सुमिरन किया, और गणपति की कृपा से इस बार वो वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़ लाया। धनेश्वर ने अपनी पत्नी को वो फल दिया, जिसे खाकर वो कुछ समय बाद गर्भवती हो गई।

दंपत्ति काली मां के निर्देश के अनुसार हर पूर्णिमा पर दीप जलाते रहे। कुछ दिन बाद भगवान शिव की कृपा हुई, और ब्राह्मण की पत्नी ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने देवीदास रखा। जब पुत्र 16 वर्ष का होने को हुआ, तो माता-पिता को चिंता होने लगी कि इस वर्ष उसकी मृत्यु निश्चित है। दंपत्ति ने देवीदास के मामा को बुलाया, और कहा- तुम देवीदास को विद्या अध्ययन के लिए काशी ले जाओ, और एक वर्ष बाद वापस आना। दंपत्ति पूरी आस्था के साथ पूर्णिमासी का व्रत कर पुत्र के दीर्घायु होने की कामना करते रहे।

माघ पूर्णिमा व्रत का लाभ:

इस व्रत के प्रभाव से संतान सुख प्राप्त होता है।

घर में सुख-शांति बनी रहती है।

पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

पौराणिक मान्यता है, कि जो स्त्रियां श्रद्धापूर्वक पूर्णिमा का व्रत रखती हैं, और कथा सुनती हैं, उन्हें संतान का सुख मिलता है, संकट से मुक्ति मिलती है, और समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है।