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Ring Ceremony

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Mayank JoshiMayank Joshi

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सगाई समारोह: एक महत्त्वपूर्ण रस्म

सगाई एक विशेष अनुष्ठान होता है, जिसमें दो लोगों के विवाह का संकल्प लिया जाता है और इस बात की घोषणा समाज में की जाती है। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि सगाई, अंगूठी समारोह (रिंग सेरेमनी), रोका, या मंगनी। भारतीय संस्कृति में सगाई का आयोजन शादी के पहले होता है और इसे दो परिवारों के बीच संबंधों को मजबूत करने का प्रतीक माना जाता है। सगाई के दौरान अंगूठी के आदान-प्रदान के साथ-साथ विशेष पूजा की जाती है, जिसे "सगाई पूजा" कहा जाता है।

सगाई का महत्व

सगाई विवाह की शुरुआत होती है और इसे दो परिवारों के बीच का आधिकारिक संबंध माना जाता है। इस अवसर पर वर और वधु दोनों एक-दूसरे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को स्वीकार करते हैं। सगाई केवल एक सामाजिक परंपरा नहीं है, बल्कि इसमें धार्मिक पूजा और अनुष्ठानों का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह पूजा उन सभी अशुभ प्रभावों को दूर करती है, जो नवयुगल के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं, और उन्हें सौभाग्य, समृद्धि, और खुशहाली का आशीर्वाद देती है।

सगाई समारोह की पूजा

सगाई पूजा के दौरान, विभिन्न प्रकार की पूजा सामग्री और अनुष्ठानिक क्रियाओं का आयोजन किया जाता है। इन क्रियाओं के दौरान भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, और नवग्रहों का आह्वान किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वर-वधु के विवाह में कोई बाधा न आए और उनके जीवन में सुख, शांति और संपन्नता बनी रहे।

  1. भगवान गणेश की पूजा: किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से होती है, क्योंकि वे सभी बाधाओं को दूर करने वाले देवता माने जाते हैं।
  2. नवग्रह पूजा: नवग्रहों की शांति के लिए विशेष पूजा की जाती है, ताकि वर और वधु का वैवाहिक जीवन ग्रह दोषों से मुक्त हो और उन्हें सुख-समृद्धि प्राप्त हो।
  3. अंगूठी का आदान-प्रदान: पूजा के बाद वर-वधु के बीच अंगूठी का आदान-प्रदान होता है, जो उनके रिश्ते को आधिकारिक बनाता है।

सगाई पूजा की विधि

सगाई पूजा को करने के लिए शुभ मुहूर्त का चयन किया जाता है, जो कि ज्योतिषाचार्य द्वारा वर और वधु की कुंडली देखकर निर्धारित किया जाता है। यह पूजा मुख्य रूप से निम्नलिखित चरणों में की जाती है:

  1. मंत्रोच्चार: सबसे पहले, ब्राह्मण द्वारा मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और देवताओं का आह्वान किया जाता है।
  2. कलश स्थापना: शुभता का प्रतीक माने जाने वाले कलश की स्थापना की जाती है, जो देवताओं का निवास स्थान माना जाता है।
  3. अर्चना और आरती: भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा की जाती है, इसके साथ-साथ वर और वधु की कुंडली के आधार पर विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है।
  4. फूल और अक्षत का अर्पण: पूजा के दौरान फूल, अक्षत और कुमकुम का अर्पण किया जाता है, ताकि वर-वधु को देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो।
  5. अंगूठी का आदान-प्रदान: पूजा के समापन पर वर-वधु के बीच अंगूठी का आदान-प्रदान होता है, जो सगाई की मुख्य रस्म होती है।

सगाई पूजा के लाभ

सगाई पूजा के कई लाभ होते हैं, जो वर-वधु के वैवाहिक जीवन को शुभ और समृद्ध बनाने में सहायक होते हैं:

  1. सुख-शांति: पूजा के बाद वर-वधु के जीवन में सुख और शांति का वास होता है।
  2. समृद्धि: पूजा के द्वारा वर-वधु को धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  3. बाधाओं का निवारण: यह पूजा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करती है, चाहे वह ग्रह दोषों से हो या अन्य नकारात्मक ऊर्जा से।
  4. पारिवारिक संबंधों में मजबूती: सगाई पूजा के द्वारा दो परिवारों के बीच संबंध और भी मजबूत होते हैं।
  5. दीर्घायु और संतान सुख: इस पूजा के माध्यम से वर-वधु को दीर्घायु और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

सगाई के बाद दान का महत्व

सगाई पूजा के बाद दान का विशेष महत्व होता है। भारतीय धर्मशास्त्रों के अनुसार, पूजा के बाद गरीबों और असहायों को दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है और व्यक्ति को दैवीय कृपा प्राप्त होती है।

  1. रत्न: पूजा के बाद रत्नों का दान करना शुभ माना जाता है, क्योंकि रत्न जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता लाते हैं।
  2. अन्न और फल: अन्न और फल का दान करने से जीवन में समृद्धि और धन का आगमन होता है।
  3. वस्त्र: गरीबों और जरूरतमंदों को वस्त्र दान करने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  4. दक्षिणा: पूजा के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा देना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। इससे व्यक्ति के जीवन में शुभता और शांति का वास होता है।
  5. भोजन: ब्राह्मण भोजन का आयोजन करना और गरीबों को भोजन कराना सगाई पूजा का महत्वपूर्ण भाग होता है, जो पुण्य प्राप्ति का स्रोत है।

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