सूर्य ग्रह का महत्व और पूजा
सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है। (सूर्य ग्रहों का राजा है।) सूर्य कश्यप गौत्र के क्षत्रिय हैं। वह कलिंग देश के स्वामी हैं। उनका रक्तवर्ण रंग जपा कुसुम के समान है। कमल दोनों हाथों में धारण किया हुआ है। उन्होंने सिंदूरी रंग का कपड़ा, आभूषण और माला पहना हुआ है। यह चमकते हुए हीरों के समान है जो अग्नि और चन्द्रमा को प्रकाशित करता है जो तीनों लोकों के अंधकार को दूर करता है।
सात घोड़ों के एक चक्र रथ पर सवार होकर और सुमेरु की परिक्रमा करते हुए, भगवान सूर्य का ध्यान करता हूँ सूर्य के अधिदेवता शिव है और प्रत्यधिदेवता अग्नि हैपुरुष जाती, रक्तवर्ण, स्थिर पित्त प्रकृति और पूर्व दिशा का अधिष्ठात्री देव है। सूर्य आत्मा का कारण है। स्वास्थ्य, स्वभाव, राज्य और देवालयों का सूचक है। इसके देवता अग्नि हैं और ऋतु ग्रीष्म ऋतु है। सूर्य से अरुचि, मानसिक रोग, नेत्र विकार, अपमान, कलह आदि के विषय में विचार किया जा सकता है। यह रीढ़ की हड्डी, मांसपेशियों, आंखों आदि को प्रभावित करता है। सूर्य के द्वारा पिता सम्बन्धी विचार किया जा सकता है । सूर्य को क्रूर ग्रह माना जाता है। जो जपा पुष्प के समान अरुणिम आभा संम्पन्न महँ तेज से अंधकार दूर करने वाल।, पापों को दूर करने वाले और महर्षि कश्यप के पुत्र सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ ।
सूर्य मेष राशि में उच्च और तुला राशि में नीच का होता है। सूर्य एक राशि में एक माह रहता है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तब उसे मकर संक्रांति कहते है। चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति सूर्य ग्रह के मित्र हैं जबकि शुक्र, शनि शत्रु हैं और बुध सम हैं। सोना, तांबा, माणिक, गाय, रक्त चंदन, गेहूं, गुड़, लाल कमल, लाल कपड़ा सूर्य का दान माना जाता है। आकाशमण्डल में असंख्य ज्योतिपिंडो में जो पिंड पृथ्वी के जड़-चेतन को अपने प्रभाव से प्रभावित करते है उनकी गिनती ग्रहो में की जाती है । सूर्य का रत्न माणिक्य है। कुंडली का पहला, नौवां और दसवां स्थान (भाव) का कारक है। सूर्य की अष्टोत्तरी महादशा और विशोत्तरी महादशा 5 वर्ष की होती है। सूर्य के शुभ चरागाह स्थान ३, ६, १०, ११ हैं। सूर्य के गोचर के अशुभ स्थान ४, ८ और १२ भाव है। सूर्य गृह का भाग्योदय वर्ष २२ माना जाता है।
सूर्य ग्रह के समानार्थी शब्द - भानुमान, भास्कर, हेली, तपन, अरुण, अर्क, पूषा, मार्तण्ड, रवि वगेरे है। सूर्य का तीखे (कटु) रस के साथ सम्बन्ध है। सूर्य गृह का रत्न माणिक्य है जिसे पहली या तीसरी अंगुली में धारण करना चाहिए। सूर्य गृह की जप संख्या ७,००० है। सूर्य गृह के नाम मंत्र ॐ सूर्याय नमः। सूर्य गृह का स्थान देवस्थान है। सूर्य गृह ग्रहों का राजा है। सत्ता और सत्ताधीशों का सूचक है। सूर्य पिता का कारक है। वैदिक शास्त्र के साथ उसका सम्बन्ध है। सूर्य की शुभ असरो में नियमितता, धीरगंभीर आचरण, सत्ता का शौख, प्रमाणिकता, न्यायी, गौरवशाली, विचार के बोलने वाला, उदार, शिस्तता में मानने वाला और जवाबदारी समझने वाला। सूर्य की अशुभ असरो :- मिथ्याभिमानी, त्रासदायक, तिरस्कार करने वाला, उद्यत, पिता को तंग करने वाला, खर्चीला, परावलम्बी, बिना गंभीरता वाला ।
सूर्य तत्व ज्ञान
तत्व | अग्नि | स्वभाव | स्थिर |
गुण | सत्त्व | संज्ञा | क्रूर, अशुभ |
लिंग | पुरुष | वर्णजाति | क्षत्रिय |
प्रकृति | पित्त, उष्ण | कारक | पिता |
धातुसार | हड्डी | अधिष्ठाता | आत्मा |
पदवी | राजा | शरीर-चिह्न | सिर, मुख |
दिशा | पूर्व | धातु | ताँबा |
रत्न | माणिक्य | धारण-समय | सूर्योदय |
स्वामी | अग्नि | सजल-शुष्क | शुष्क |
शुभ भाव | नवम भाव | भाव के कारक | प्रथम नवम दशम |
स्थान | देवस्थान | ऋतु | ग्रीष्म |
मित्र ग्रह | चन्द्र मंगल गुरु | सम ग्रह | बुध |
शत्रु ग्रह | शुक्र शनि | उच्च राशि | मेष |
नीच राशि | तुला | मू.त्रि. राशि | सिंह |
महादशा | ६ वर्ष | वक्री-मार्गी | मार्गी |
वृक्ष | मदार | दृष्टि | सप्तम |