
धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है? आप विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम वरुथिनीहै। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है। best astrologer website:- allso.in , best matrimonial website:- vivahallso.com, best astrologer website:- allso.in, ashish lodhi web designer web site:-http://adweb.rf.gd/,
इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करे तो उसको सौभाग्य मिलता है। इसी वरुथिनी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को गया था। वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है। वरूथिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। varuthini ekadashi
भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से एक भगवान वराह का अवतार है जिन्हें विष्णु के अवतारों में तीसरा माना जाता है। पद्मपुराण में बताया गया है कि वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान के वराह अवतार की पूजा की जानी चाहिए। इसे वरूथिनी ग्यारस भी कहा जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान वराह के अवतार की कथा पढना और सुनना भी शुभ और पुण्यदायक माना गया है। best astrologer website:- allso.in , best matrimonial website:- vivahallso.com, best astrologer website:- allso.in, ashish lodhi web designer web site:-http://adweb.rf.gd/,
पौराणिक कथा के अनुसार, बैकुंठ लोक के द्वारपाल जय और विजय ने बैकुंठ लोक जाते हुए सप्त ऋषियों को द्वार पर रोका था जिस कारण उन्हें शाप मिला कि दोनों को तीन जन्मों तक पृथ्वी पर दैत्य बनकर रहना पड़ेगा। पहले जन्म में दोनों ने कश्यप और दिति के पुत्रों के रूप में जन्म लिया और हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष कहलाए। दोनों ने पृथ्वीवासियों को परेशान करना शुरू कर दिया। धरती पर हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। हिरण्याक्ष ने यज्ञ आदि कर्म करने पर लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
हिरण्याक्ष एक दिन घूमते हुए वरुण की नगरी में जा पहुंचा। पाताल लोक में जाकर हिरण्याक्ष ने वरुण देव को युद्ध के लिए ललकारा। वरुण देव बोले कि ‘अब मुझमें लड़ने का चाव नहीं रहा है तुम जैसे बलशाली वीर से लड़ने के योग्य अब मैं नहीं हूं तुम्हें विष्णु जी से युद्ध करना चाहिए।’ तब देवतओं ने ब्रह्माजी और विष्णुजी से हिरण्याक्ष से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए नासिका से वराह नारायण को जन्म दिया। इस तरह हरि के वराह अवतार का जन्म हुआ। janiye keasha prakat hua bhagwan bharah
वराह अवतार ने किया दानव का अंत
वरुणदेव की बात सुनकर हिरण्याक्ष ने देवर्षि नारद से नारायण का पता पूछा। देवर्षि नारद ने उन्हें बताया कि नारायण इस समय वराह का रूप धारण करके पृथ्वी को समुद्र से निकालने के लिए गए हुए हैं। हिरण्याक्ष तुरंत उसी स्थान के लिए प्रस्थान कर गया क्योंकि उसी ने ही पृथ्वी को समुद्र में रखा था। पहुंचने पर हिरण्याक्ष ने देखा कि भगवान हरि वराह अवतार में पृथ्वी को ले जा रहे हैं। हिरण्याक्ष ने भगवान वराह को युद्ध के लिए ललकारा और महायुद्ध आरंभ हो गया। भगवान विष्णु ने अपने दांतों और जबड़ों से हिरण्याक्ष का पेट फाड़ दिया और पृथ्वी को फिर से अपने स्थान पर स्थापित कर दिया। janiye barah avtar na kiya danav ka end
शास्त्रों में कहा गया है कि हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है। अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में इसको कन्यादान के बराबर माना है। shastro may khah gaya ki hathi ka daan ghode ka daan say bda hota hai
वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। जो मनुष्य लोभ के वश होकर कन्या का धन लेते हैं वे प्रलयकाल तक नरक में वास करते हैं या उनको अगले जन्म में बिलाव का जन्म लेना पड़ता है। जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, उनके पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हैं, उनको कन्यादान का फल मिलता है।
हे राजन्! जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी को करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक होता है।
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