सप्तम स्थान में मंगल की स्थिति का ज्योतिषीय प्रभाव

सप्तम स्थान में  मंगल की स्थिति का ज्योतिषीय प्रभाव

सप्तम भाव ज्योतिष में विवाह, साझेदारी, और दांपत्य जीवन का भाव है। यह केंद्र स्थान होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। सप्तम भाव में मंगल की स्थिति का ज्योतिषीय प्रभाव गहराई से समझने की आवश्यकता है, क्योंकि यह भाव न केवल वैवाहिक संबंधों को प्रभावित करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी प्रभाव डालता है।

मंगल की सप्तम स्थान में स्थिति:  वैवाहिक जीवन पर प्रभाव:

सप्तम भावगत मंगल को ज्योतिष में अशुभ माना गया है, विशेषकर विवाह के संदर्भ में।

यह स्थिति जातक के वैवाहिक जीवन में कलह, असहमति, और अस्थिरता ला सकती है।

मंगल की यह स्थिति जीवनसाथी के साथ मतभेद और संघर्ष का कारण बन सकती है।

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विवाह का विलंब या हतभाग्य विवाह:

मंगल सप्तम भाव में होने से विवाह में देरी हो सकती है।

अगर मंगल स्वग्रही है या लग्नेश है, तो इसके अशुभ प्रभाव कुछ कम हो सकते हैं।

कर्म और सुख पर प्रभाव:

सप्तम भाव दशम भाव का दशम और चतुर्थ भाव का चतुर्थ स्थान है।

यह व्यक्ति के सुख और कर्मों को प्रभावित करता है।

मंगल की स्थिति व्यक्ति को अपने कर्मों द्वारा सुख प्राप्ति में बाधा पहुंचा सकती है।

संतान पर प्रभाव:

सप्तम भावगत मंगल संतानों के मामले में चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

संतान में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, विशेषकर ज्येष्ठ पुत्र के साथ।

राजयोग और धन योग:

अगर मंगल सप्तम भाव में शनि या बृहस्पति के साथ स्वराशि में युति करता है, तो यह राजयोग का निर्माण करता है।

शुक्र के साथ युति धन योग उत्पन्न करती है।

सूर्य और चंद्र के साथ युति विपरीत राजयोग का निर्माण करती है।

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आध्यात्मिक संकेत:

सप्तम स्थान में मंगल भगवान शिव और तीर्थ यात्रा का संकेत देता है।

यह स्थिति जातक को आध्यात्मिकता और धार्मिक स्थलों की ओर आकर्षित कर सकती है।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य:

मंगल की यह स्थिति शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्थिरता के लिए अनुकूल नहीं मानी जाती।

जातक को अत्यधिक यात्राएं करनी पड़ सकती हैं, जिससे स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।

उपाय:

भगवान हनुमान जी की आराधना और मंगल के लिए उपाय करना लाभकारी रहेगा।

मंगलवार का व्रत और लाल वस्त्रों का दान करना।

मंगल के दोष निवारण हेतु मंत्र जाप जैसे "ॐ अंगारकाय नमः"।