अपस्मार रोग क्या है?
अपस्मार एक जटिल रोग है, जो मुख्य रूप से मानसिक और शारीरिक असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है। ज्योतिषीय दृष्टि से यह रोग तब उत्पन्न होता है, जब कुंडली में सूर्य, मंगल, चंद्र और बुध जैसे ग्रहों का बलाबल कमजोर हो या उनकी स्थिति अशुभ हो। इसके अलावा, लग्नेश के पीड़ित होने, षष्ठम (छठे) या अष्टम (आठवें) भाव में राहु से संबंध होने पर भी इस रोग के योग बनते हैं।
ज्योतिषीय कारण:
सूर्य, चंद्र और मंगल का प्रभाव: यदि ये ग्रह लग्न या अष्टम भाव में हों और क्रूर ग्रहों से दृष्ट हों, तो जातक को अपस्मार के दौरे पड़ सकते हैं।
राहु और चंद्रमा का संबंध: यदि राहु और चंद्रमा की युति पहले या आठवें भाव में हो, तो यह रोग संभावित है।
षष्ठम/अष्टम में अशुभ योग: यदि षष्ठम या अष्टम भाव में शनि और मंगल हों, राहु लग्न में हो, और चंद्र छठे भाव में हो, तो सूर्य या चंद्र ग्रहण के दौरान दौरे पड़ने की संभावना रहती है।
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छाया ग्रहों का प्रभाव: मंगल और बुध छाया ग्रहों (राहु-केतु) से दृष्ट या युत हों और लग्न से संबंध हो, तो जातक इस रोग से प्रभावित हो सकता है।
त्रिदोष के अनुसार रोग का वर्गीकरण: आयुर्वेद के अनुसार, अपस्मार रोग वायु, कफ, पित्त और सन्निपात दोष के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
वातजन्य अपस्मार: रोगी के मुख से झाग निकलना। दांत भींचना और कंपकपी आना।
कफजन्य अपस्मार: त्वचा का रंग श्वेत। सफेद झाग निकलना।
पित्तजन्य अपस्मार: मुख से पीला झाग निकलना। शरीर का रंग पीला होना।
सन्निपातजन्य अपस्मार: तीनों दोषों का मिश्रण। अक्सर यह गंभीर चोट या पक्षाघात से उत्पन्न होता है।
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उपचार और समाधान:
आयुर्वेदिक उपाय: कंटकारी औषधि का उपयोग रोगी को राहत देता है।
त्रिकर्म (औषध, अनुशासन, और अनुष्ठान) के माध्यम से उपचार।
ज्योतिषीय उपाय: विशेष रुद्राक्ष धारण करना। भगवान शिव के मंत्रों और यंत्रों का अनुष्ठान। मंत्रों से युक्त कवच तैयार कर रोगी को प्रदान करना।
आध्यात्मिक उपाय: रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय जाप। ग्रहों की शांति के लिए विशेष पूजा।
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