कुंडली में षोडश वर्ग को समझे फिर देखें फलादेश की सटीकता व सफलता प.कृ.उ. आजकल चलन सा हो गया है चलते-चलते फलादेश करने का, नामराशी या सिर्फ लग्नचक्र ही देखकर फलित के नाम पर कुछ भी तीर-तुक्के बता देने का मगर इस तरह फलित करने वाले नाम के ज्योतिषियों ने कभी सोचा है..... कि मात्र लग्नचक्र या राशीचक्र देखकर ही सही फलादेश संभव होता तो.... हमारे आदि ऋषी-मनीषी कभी भी "षोडश वर्गीय कुंडली" अथवा "प्राण-दशा" जैसी अति शूक्ष्म एवं जटिल गणनाऔं को खोजने पर अपना बहुमूल्य समय कदापि व्यय नहीं करते ।।
अतः "वैदिक ज्योतिष" में पूर्व सुनिश्चित है कि षोडश वर्गीय कुंंडली को अध्यन किऐ बिना सही भविष्य फल जानना कदापि सम्भव नहीं है।।
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पहले ये समझें षोडश वर्गीय कुंंडली क्या होती है:-
षोडश अर्थात 16 वर्ग का फलित ज्योतिष में विशेष महत्व है, क्यों की कुंडली का सूक्ष्म अध्ययन करने में उनकी ही विशेष भूमिका होती है। आईये सबसे पहले जानें शोडश वर्ग क्या है...... प.कृ.उ. तो पहले गणितीय समझ लीजिए :- कुंडली के सभी 12 भाव 360 अंश परिधि के होते हैं, यानि आकास मंडल के 360 अंश के 12 भाग ही कुंडली के 12 भाव हैं। अत: कुंडली का कोई भी एक भाव 30 अंश परिधि का माना जाता है। इन 12 भावों में प्रथम भाव "लग्न" कहलाता है। इस "लग्न" भाव के 30 अंशों के विस्त्रत क्षेत्र को यदि 2 से भाग किया जाये तो प्रत्येक भाग 15-15 अंश का होगा इस डिवीजन की लग्न भाग को होरा लग्न कहते हैं, इसी प्रकार यदि इस 30 अंश के 3 भाग किये जायें तो प्रत्येक भाग 10 अंश का होगा, इसे द्रेष्कांण और इस के लग्न भाग को द्रेष्कांण लग्न कहते हैं। चार भाग किसे जायेंगे तो इसके लग्न को चतुर्थांश कहेंगे। इसी प्रकार 7 भाग करने पर सप्तमांश लग्न, 9 भाग करने पर नवमांश लग्न, 10 भाग करने पर दशमांश लग्न, 12 भाग करने पर द्वादशांश लग्न, तथा 16, 20, 24, 30 और 60 भाग करने पर क्रमशः षोडशांश, विंशांश, चतुर्विंशांश तथा त्रिशांश लग्न आदि कहते हैं।
इस तरह "वैदिक ज्योतिष" में 16 कुंडली बनती है जिसे "षोड़श वर्ग" कहते हैं और ये षोडश चक्र ही जीवन के बिभिन्न पहलुओं के सटीकतम फलादेश करने में सहायक होते हैं।
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या ऐसे भी कह सकते हैं कि इन वर्गों के अध्ययन के बिना जन्म कुंडली का विश्लेषण सटीक होता ही नहीं है। प.कृ.उ. क्योंकि लग्न कुंडली या राशि कुंडली से मात्र जातक के शरीर, उसकी शूक्ष्म संरचना एवं प्रवृत्ति के बारे में ही जानकारी मिलती है।
षोडश वर्ग कुंडली का प्रत्येक चक्र जातक के जीवन के एक विशिष्ट कारकत्व या घटना के अध्ययन में सहायक होता है। प.कृ.उ. जातक के जीवन के जिस पहलू के बारे में हम जानना चाहते हैं, उस पहलू के वर्ग का जब तक हम अध्ययन न करें तो, विश्लेषण अधूरा ही रहता है।
जैसे :- यदि जातक की संपत्ति, संपन्नता या प्रतिष्ठा आदि के विषय में जानना हो, तो जरूरी है कि होरा वर्ग का अध्ययन किया जाए। इसी प्रकार व्यवसाय के बारे में पूर्ण जानकारी के लिए दशमांश चक्र की सहायता ली जाती है। जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानने के लिए षोड़श चक्र कुंडली में से किसी विशेष चक्र का अध्ययन किए बिना फलित गणना में चूक हो सकती है। प.कृ.उ. षोडश वर्गीय कुंडली में सोलह चक्र बनते हैं, जो जातक के जीवन के विभिन्न पहलुओं की जानकरी देते हैं। परंतु आजकल रोड़ चलते फलादेश करने वाले अधकचरे ज्योतिषी सिर्फ लग्न या राशि देखकर ही सुरू हो जाते है.... अंधेरे में तीर चलाने जैसा है.... और बदनाम होता है "वैदिक ज्योतिष" ।। जबकि वैदिक ज्योतिष- जीवन की किसी भी समस्या का सटीक समय और समाधान खोजने में पूर्ण सक्षम है।।
जैसे :-
होरा से संपत्ति , समृद्धि एवं मान प्रतिष्ठा। प.कृ.उ.
द्रेष्काण से भाई-बहन व पराक्रम।
चतुर्थांश से भाग्य, चल एवं अचल संपत्ति। प.कृ.उ.
सप्तांश से संतान एवं उनकी प्रकृति।
नवमांश से वैवाहिक जीवन व जीवन साथी। प.कृ.उ.
दशमांश से व्यवसाय व जीवन की उपलब्धियां।
द्वादशांश से माता-पिता। प.कृ.उ.
षोडशांश से सवारी एवं सामान्य खुशियां।
विंशांश से पूजा-उपासना और आशीर्वाद। प.कृ.उ.
चतुर्विंशांश से विद्या, शिक्षा, दीक्षा, ज्ञान आदि।
सप्तविंशांश से बल एवं दुर्बलता। प.कृ.उ.
त्रिशांश से दुःख, तकलीफ, दुर्घटना, अनिष्ट।
खवेदांश से शुभ या अशुभ फल। प.कृ.उ.
अक्षवेदांश से जातक का चरित्र।
षष्ट्यांश से जीवन के सामान्य शुभ-अशुभ फल आदि अनेक पहलुओं का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है। प.कृ.उ. षोडश वर्ग में सोलह वर्ग ही होते हैं, लेकिन इनके अतिरिक्त और चार वर्ग पंचमांश, षष्ट्यांश, अष्टमांश, और एकादशांश भी होते हैं।
पंचमांश से जातक की आध्यात्मिक प्रवृत्ति, पूर्व जन्मो के पुण्य एवं संचित कर्मों की जानकारी प्राप्त होता है। प.कृ.उ. षष्ट्यांश से जातक के स्वास्थ्य, रोग के प्रति अवरोधक शक्ति, ऋण, झगड़े आदि का विवेचन किया जाता है।
एकादशांश जातक के बिना प्रयास के धन लाभ को दर्शाता है। यह वर्ग पैतृक संपत्ति, शेयर, सट्टे आदि के द्वारा स्थायी धन की प्राप्ति की जानकारी देता है। प.कृ.उ.
अष्टमांश से जातक की आयु एवं आयुर्दाय के विषय में जानकारी मिलती है।
षोडश वर्ग में सभी वर्ग महत्वपूर्ण हैं, लेकिन आज के युग में जातक धन, पराक्रम, भाई-बहनों से विवाद, रोग, संतान वैवाहिक जीवन, साझेदारी, व्यवसाय, माता-पिता और जीवन में आने वाले संकटों के बारे में अधिक प्रश्न करता है। इन प्रश्नों के विश्लेषण के लिए सात वर्ग होरा, द्रेष्काण, सप्तांश, नवांश, दशमांश, द्वादशांश और त्रिशांश ही पर्याप्त हैं।
अतः ज्योतिषी "वैदिक ज्योतिष" के आधारभूत सिद्धांत... षोडशवर्गीय कुंंडली का गहन अध्यन किऐ बिना कदापि फलादेश ना करें । प.कृ.उ. और फलित पूछने वाले भी... (सिर्फ नाम-राशी और लग्न को ही फलित का आधार मानने वाले) अल्पज्ञानी फलित कर्ताओं से सावधान ही रहैं । तथा योग्य और शूक्ष्म ज्योतिषीय गणनात्मक ज्ञान रखने वाले आचार्यों से ही परामर्श लें।।
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