दशहरा पर्व पर शस्त्र पूजन: महत्व,ज्योतिषीय लाभ

दशहरा पर्व पर शस्त्र पूजन: महत्व,ज्योतिषीय लाभ

दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। इस दिन का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। दशहरे के दिन रावण का वध करके भगवान श्रीराम ने धर्म की स्थापना की और यही दिन देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में भी मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान शस्त्र पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसे कई धर्मिक, सांस्कृतिक और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है।

शस्त्र पूजन का महत्व

शस्त्र पूजन की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है, जब योद्धा और राजाओं के लिए शस्त्र (हथियार) पूजनीय थे क्योंकि उन्हें शक्ति, सुरक्षा और विजय का प्रतीक माना जाता था। शस्त्र न केवल शारीरिक सुरक्षा प्रदान करते हैं बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का भी प्रतीक होते हैं। दशहरे के दिन, योद्धा और आम नागरिक दोनों ही अपने शस्त्रों की पूजा करके यह कामना करते हैं कि उनका जीवन समृद्ध, सुरक्षित और विजयपूर्ण हो।

शस्त्र पूजन के प्रमुख कारण:

1. धर्म और शास्त्रों का सम्मान: दशहरे के दिन शस्त्रों की पूजा करना धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान श्रीराम और देवी दुर्गा दोनों ही युद्ध के प्रतीक हैं, जिन्होंने अपने शस्त्रों से अधर्म का नाश किया। शस्त्र पूजन के माध्यम से हम उन दिव्य शक्तियों का आह्वान करते हैं।

2. आत्मरक्षा का प्रतीक: शस्त्र का उपयोग केवल हिंसा के लिए नहीं बल्कि आत्मरक्षा और न्याय की स्थापना के लिए किया जाता है। शस्त्र पूजन के द्वारा हम यह संकल्प लेते हैं कि शस्त्रों का उपयोग हमेशा धर्म और न्याय के लिए करेंगे।

3. शक्ति का प्रतीक: शस्त्र शक्ति का प्रतीक हैं और शक्ति की पूजा करने से हमें आत्मविश्वास और साहस प्राप्त होता है। दशहरे के दिन शस्त्र पूजन करने से व्यक्ति अपने अंदर छिपी हुई शक्ति को पहचानता है और जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा पाता है।

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 शस्त्र पूजन की विधि

दशहरे के दिन शस्त्र पूजन का एक विशेष महत्व है, और इसे विधिपूर्वक करने से सकारात्मक ऊर्जा और विजय का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यहां शस्त्र पूजन की विधि विस्तार से दी जा रही है:

पूजन के लिए आवश्यक सामग्री:

 शस्त्र (जिन्हें पूजना है, जैसे तलवार, धनुष, बाण, गदा, त्रिशूल, आदि)

 ताजे फूल (गेंदे, गुलाब आदि)

 हल्दी, कुमकुम और चावल (अक्षत)

 दीपक, धूप और अगरबत्ती

 मिठाई या नैवेद्य (पकवान)

 नारियल

 पान, सुपारी और लौंग

 शुद्ध जल या गंगा जल

 एक साफ कपड़ा (शस्त्रों को साफ करने के लिए)

शस्त्र पूजन विधि:

1. शुद्धिकरण: सबसे पहले शस्त्रों को साफ और शुद्ध किया जाता है। शुद्ध जल से उन्हें धोया जाता है या साफ कपड़े से पोंछा जाता है।

2. स्वस्तिक का चिह्न: शस्त्र पर हल्दी और कुमकुम से स्वस्तिक का चिह्न बनाया जाता है, जो शुभता और सौभाग्य का प्रतीक है।

3. शस्त्रों की स्थापना: शस्त्रों को एक साफ स्थान पर रखा जाता है, और उनके चारों ओर रंगोली या अल्पना बनाई जाती है।

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4. पुष्प अर्पण: शस्त्रों पर फूलों की माला चढ़ाई जाती है और ताजे फूल अर्पण किए जाते हैं।

5. दीप और धूप जलाना: शस्त्रों के सामने दीपक जलाया जाता है और धूप या अगरबत्ती से पूजा की जाती है।

6. नैवेद्य अर्पण: शस्त्रों को मिठाई या पकवान का भोग लगाया जाता है।

7. शस्त्रों का स्पर्श: पूजा के बाद, शस्त्रों का स्पर्श करते हुए श्रद्धा और सम्मान के साथ प्रणाम किया जाता है।

8. आरती: अंत में शस्त्रों की आरती की जाती है और उन्हें प्रणाम किया जाता है।

मंत्र:

पूजन के समय निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण किया जा सकता है:

"ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे नमः।"

या

"ओम जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।  

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।"

यह मंत्र शक्ति का आह्वान करते हैं और शस्त्रों में दैवीय ऊर्जा का संचार करते हैं।

विजयदशमी से मिलने वाले लाभ

विजयदशमी का पर्व कई दृष्टियों से लाभकारी माना जाता है। इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल शीघ्र प्राप्त होता है, और यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन किया गया शस्त्र पूजन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और विजय का संचार करते हैं।
 


विजयदशमी से मिलने वाले प्रमुख लाभ:

1. अधर्म पर धर्म की विजय: विजयदशमी हमें यह संदेश देती है कि चाहे कितनी भी कठिनाई हो, अंततः सत्य और धर्म की ही जीत होती है। यह दिन हमें अपने जीवन में सच्चाई और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

2. साहस और आत्मविश्वास: शस्त्र पूजन से साहस और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। व्यक्ति अपने जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होता है।

3. नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: इस दिन किए गए पूजन और अनुष्ठानों से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

4. कार्य में सफलता: विजयदशमी के दिन शस्त्र पूजन या किसी भी नए कार्य की शुरुआत करना शुभ माना जाता है। इस दिन आरंभ किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

5. रक्षा और सुरक्षा: शस्त्र पूजन करने से शस्त्रों की रक्षा और सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है। यह व्यक्ति को हर प्रकार के भय और संकट से बचाने में सहायक होता है।

6. धन और समृद्धि: इस दिन देवी लक्ष्मी की भी विशेष पूजा की जाती है, जिससे धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

विजयदशमी और ज्योतिषीय लाभ

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विजयदशमी का दिन अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन किए गए कार्य विशेष फलदायी होते हैं। विशेष रूप से शस्त्र पूजन से मंगल ग्रह की कृपा प्राप्त होती है, जो साहस, शक्ति और ऊर्जा का कारक है।

ज्योतिषीय लाभ:

मंगल ग्रह की अनुकूलता: शस्त्र पूजन करने से व्यक्ति की कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति मजबूत होती है, जिससे साहस, उत्साह और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

शत्रु नाश: विजयदशमी के दिन शस्त्र पूजन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में आने वाले संघर्षों से मुक्ति मिलती है।

धन और समृद्धि: शस्त्र पूजन के साथ ही लक्ष्मी पूजन करने से धन संबंधी समस्याओं का समाधान होता है और व्यक्ति के जीवन में धन की वृद्धि होती है।

नकारात्मक प्रभावों का नाश: विजयदशमी के दिन पूजाअर्चना करने से जीवन में आने वाली नकारात्मक शक्तियों और बाधाओं का नाश होता है।

दशहरा का पर्व केवल बुराई पर अच्छाई की विजय का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आत्मसंयम, शक्ति और सामर्थ्य को जागृत करने का भी पर्व है। शस्त्र पूजन के माध्यम से हम अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानते हैं और जीवन में आने वाली चुनौतियों का साहस के साथ सामना करते हैं।