नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा विधि, मंत्र और महत्व

नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा  विधि, मंत्र और महत्व

नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। यह दिन विशेष रूप से मां कूष्मांडा की आराधना और साधना के लिए समर्पित होता है। माना जाता है कि मां कूष्मांडा के इस स्वरूप ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति की है, और उनके हल्के से मुस्कान मात्र से पूरे ब्रह्मांड का सृजन हुआ। मां कूष्मांडा अष्टभुजाधारी हैं, और वे सात्विक और मंगलकारी शक्तियों की दात्री हैं। 

इस दिन मां की पूजा करने से साधकों को बल, विद्या, धन, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रगति होती है। जो भक्त मां की श्रद्धा से उपासना करते हैं, उन्हें हर प्रकार के भय और दुखों से मुक्ति मिलती है।

नवरात्रि के चौथे दिन क्या करना चाहिए? (Navratri Ke Chauthe Din Kya Karna Hoga)

1. स्नान और शुद्धिकरण: नवरात्रि के चौथे दिन सूर्योदय के समय स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और मां कूष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को वहां स्थापित करें।

2. मां का आवाहन: मां कूष्मांडा का आवाहन करने के लिए धूप, दीप और फूलों का उपयोग करें। मां को प्रसन्न करने के लिए सफेद या नारंगी रंग के फूल अर्पित करें, क्योंकि यह रंग उनके प्रिय माने जाते हैं।

3. व्रत और उपवास: इस दिन उपवास करने का भी विशेष महत्व है। यदि आप व्रत नहीं कर सकते, तो फलाहार करें और सात्विक आहार ग्रहण करें।

4. मां कूष्मांडा का पूजन और आराधना: मां की पूजा के दौरान दीप जलाएं, धूप दिखाएं और उन्हें पुष्प, फल, और नारियल अर्पित करें। पूजा के दौरान मां के मंत्र का जाप अवश्य करें।

5. मंत्र जाप: मां कूष्मांडा का विशेष मंत्र इस प्रकार है:

   ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडा देव्यै नमः।

   इस मंत्र का जाप करते हुए मां की आराधना करें और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

6. आरती और प्रसाद: पूजा के बाद मां की आरती करें और सभी उपस्थित लोगों को प्रसाद वितरित करें। प्रसाद के रूप में गुड़ और नारियल का उपयोग शुभ माना जाता है।

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मां कूष्मांडा का स्वरूप (Maa Kushmanda Ka Swaroop)

मां कूष्मांडा अष्टभुजाधारी हैं, अर्थात उनके आठ हाथ होते हैं। उनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा, और जप माला होती है। उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। मां का यह स्वरूप साधकों को मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। 

उनका शरीर तेजोमय है, और उनके मुख पर हमेशा हल्की मुस्कान रहती है। मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की सृजक कहा जाता है, और वे पूरे जगत की उत्पत्ति और पालनहार हैं। उनकी पूजा करने से साधक को हर प्रकार की नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।

मां कूष्मांडा की पूजा विधि (Maa Kushmanda Ki Puja Vidhi)

मां कूष्मांडा की पूजा विधि सरल और प्रभावी है। नीचे दिए गए चरणों का पालन कर आप इस दिन मां की कृपा प्राप्त कर सकते हैं:

1. स्नान और शुद्धिकरण: सबसे पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को साफ करें और मां कूष्मांडा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

2. दीप जलाएं: मां की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं। साथ ही धूप और अगरबत्ती अर्पित करें।

3. पुष्प अर्पण: मां को उनके प्रिय पुष्प अर्पित करें। विशेषकर नारंगी और सफेद फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है।

4. मंत्र जाप: मां कूष्मांडा के विशेष मंत्र का जाप करें:

   ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः।

   यह मंत्र साधक के मन को शांति और संतुलन प्रदान करता है।

5. फल, मिष्ठान्न और नारियल: मां को फल, मिष्ठान्न और नारियल का भोग लगाएं। मां को गुड़ का भोग भी अर्पित कर सकते हैं, क्योंकि यह उनका प्रिय है।

6. आरती और स्तोत्र पाठ: मां कूष्मांडा की आरती करें और उनके स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र से मां की महिमा और गुणों का वर्णन होता है, जिससे साधक को मां की कृपा प्राप्त होती है।

7. प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद सभी भक्तों में वितरित करें और मां का आशीर्वाद प्राप्त करें।

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मां कूष्मांडा का महत्व (Maa Kushmanda Ka Mahatva)

मां कूष्मांडा का विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि उनके मुस्कान मात्र से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी। वे समस्त संसार की पालनहार हैं और उनकी कृपा से साधक को धन, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। उनकी पूजा से साधक के जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं।

मां कूष्मांडा की उपासना से साधक को मानसिक और आत्मिक बल प्राप्त होता है। उनकी कृपा से साधक को कठिन परिस्थितियों में भी विजय प्राप्त होती है। 

मां कूष्मांडा की पौराणिक कथा (Maa Kushmanda Ki Pauranik Katha)

मां कूष्मांडा की पौराणिक कथा के अनुसार, जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी और चारों ओर अंधकार का साम्राज्य था, तब देवी कूष्मांडा ने अपनी हल्की मुस्कान से इस अंधकार को दूर कर ब्रह्मांड की रचना की। इसी कारण उन्हें ब्रह्मांड की सृजनकर्ता भी कहा जाता है। "कूष्मांडा" शब्द का अर्थ है "कुम्हड़ा", जिसे हिंदी में "पुष्प" भी कहते हैं, और मां को यह फल अति प्रिय है।

मां की इस कथा से यह संदेश मिलता है कि भले ही परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, मां की कृपा से हर असंभव कार्य संभव हो सकता है। उनकी आराधना से साधक को जीवन में आने वाले सभी संकटों का समाधान मिलता है।

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मां कूष्मांडा की स्तुति (Maa Kushmanda Ki Stuti)

मां कूष्मांडा की स्तुति के लिए निम्नलिखित स्तोत्र का पाठ किया जाता है:

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।  
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

यह स्तोत्र मां की महिमा और शक्ति का गुणगान करता है और साधक को मां की कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है।

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मां कूष्मांडा की पूजा के लाभ (Benefits Of Worshipping Maa Kushmanda)

स्वास्थ्य: मां कूष्मांडा की पूजा से साधक का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और वह मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है।
  
धन और समृद्धि: मां की कृपा से साधक के जीवन में धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  
व्यापार और करियर: व्यापार और करियर में आने वाली सभी बाधाओं का अंत होता है और साधक को सफलता प्राप्त होती है।

वैवाहिक जीवन: मां कूष्मांडा की पूजा से वैवाहिक जीवन में सुख और शांति आती है।

शिक्षा: विद्यार्थियों के लिए मां की पूजा विशेष लाभकारी होती है। इससे उन्हें विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

रिश्ते और मित्रता: मां कूष्मांडा की कृपा से संबंधों में मधुरता आती है और साधक को अच्छे मित्रों का साथ मिलता है।

इस प्रकार नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा से साधक को हर प्रकार की भौतिक और आध्यात्मिक सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से जीवन के सभी क्षेत्र सफल और सुखमय होते हैं।