श्रीलंका के ऐतिहासिक स्थल आशोक वाटिका में 8 अगस्त 2024 को एक विशेष आध्यात्मिक समागम का आयोजन किया जाएगा, जिसमें गुजरात के प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान धवल कुमार व्यास जी सुंदरकांड पाठ करेंगे। यह कार्यक्रम श्रीलंका में आयोजित होने वाले यूनिवर्सल मेरिट अवार्ड समारोह का हिस्सा है, जिसमें दुनिया भर के अतिथि इस कार्यक्रम शामिल होंगे। और डॉ. धवल कुमार व्यास को श्रीलंका के महामहिम पूर्व एवं प्रथममंत्री श्री महेंद्र राजपक्षे के करकमलो से उन्हें यूनिवर्सल मेरिट अवार्ड से भी सम्मानित किया जाएगा
धवल कुमार व्यास जी ने कहा कि यह उनके लिए एक महान अवसर है कि वे श्रीलंका की इस पवित्र भूमि पर सुंदरकांड का पाठ कर सकें। उन्होंने कहा कि इस पाठ के माध्यम से वे सभी श्रद्धालुओं को भगवान राम की लीलाओं और आदर्शों से प्रेरित करेंगे।
उल्लेखनीय है कि आशोक वाटिका वह स्थान है जहां भगवान राम की पत्नी, माता सीता को रावण ने बंदी बनाकर रखा था। यहां पर सुंदरकांड पाठ का आयोजन एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करेगा और इस ऐतिहासिक स्थल की धार्मिक महत्ता को और बढ़ाएगा।
यूनिवर्सल मेरिट अवार्ड समारोह में विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिभाशाली लोगों को सम्मानित किया जाएगा और यह आयोजन मानवता और सद्भावना के संदेश को फैलाने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। इस विशेष कार्यक्रम में धवल कुमार व्यास जी द्वारा किए जाने वाले सुंदरकांड पाठ से श्रद्धालु आत्मिक शांति और धार्मिक प्रेरणा प्राप्त करेंगे।
आयोजनकर्ताओं ने सभी श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे इस पवित्र अवसर पर अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर इस आध्यात्मिक समागम का लाभ उठाएं।
डॉ. धवलकुमार विष्णुभाई व्यास का जन्म गुजरात के विसनगर में हुआ था और वे अपने गांव सुंढ़िया में पले-बढ़े। वे पिछले दो दशकों से अहमदाबाद स्थित यूके आधारित प्रमुख केपीओ उद्योगों में लेखांकन के क्षेत्र में कार्यरत हैं। बचपन से ही उनकी भगवान शिव की आराधना में गहरी आस्था थी। वर्ष 2003 के आसपास एक दिन उन्होंने सुंदरकांड का पाठ किया और उसके बाद से शनिवार को सुंदरकांड का नियमित पाठ करने लगे। इस आध्यात्मिक अनुभव ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने सभी अन्य प्रार्थनाएं छोड़ दीं।
विदेशों में भी फैलाया आध्यात्मिक संदेश
डॉ. व्यास ने विदेश में भी अपनी साधना का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने वर्चुअल सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया और एक कनाडाई यात्री ने उनके साथ एक पॉडकास्ट रिकॉर्ड किया। उनकी इस अनोखी साधना के लिए उन्हें नई दिल्ली में 'लाइफ टाइम अचीवमेंट एंड स्टार एक्सीलेंस' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ऑलसोएस्ट्रो न्यूज़ में डॉ धवल कुमार से विशेष चर्चा: रामचरितमानस के लंका कांड, अशोक वाटिका, और हनुमान जी पर विचार-विमर्श:
ऑलसोएस्ट्रो न्यूज़ के विशेष साक्षात्कार में, डॉ धवल कुमार व्यास ने रामचरितमानस के लंका कांड, अशोक वाटिका, और हनुमान जी, श्री राम और माता सीता पर गहन चर्चा की। डॉ धवल कुमार ने रामचरितमानस के महत्वपूर्ण दोहों और घटनाओं पर अपने विचार साझा किए, जो इन पात्रों और घटनाओं के महत्व को उजागर करते हैं।
उन्होंने लंका कांड के अंतर्गत हनुमान जी की वीरता और धैर्य की प्रशंसा की, विशेष रूप से उस समय जब उन्होंने अशोक वाटिका में माता सीता से भेंट की थी। उन्होंने हनुमान जी द्वारा माता सीता को श्री राम की अंगूठी देने और उनके साहसिक कार्यों को रेखांकित किया, जो कि रावण के दरबार में उनकी शक्ति और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है।
डॉ धवल कुमार ने श्री राम के धैर्य और समर्पण को भी महत्वपूर्ण बताया, खासकर जब वह सीता माता की खोज में लगे हुए थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रामचरितमानस के दोहे और श्लोक न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि उनमें जीवन के गहरे संदेश भी निहित हैं।
इस विशेष चर्चा ने दर्शकों को रामचरितमानस के अद्वितीय साहित्यिक और आध्यात्मिक आयामों से रूबरू कराया, और डॉ धवल कुमार के विश्लेषण ने इस पौराणिक ग्रंथ की गहराई को और अधिक समझने में मदद की।
"मसक समान रूप कपि धरी।लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी"
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है, जिसमें हनुमान जी के समुद्र पार कर लंका जाने की घटना का वर्णन है। इसका अर्थ है:
"हनुमान जी ने मच्छर के समान छोटा रूप धारण किया और भगवान नरसिंह का स्मरण करते हुए लंका की ओर चल पड़े।"
इसमें यह बताया गया है कि हनुमान जी ने अपना आकार मच्छर के समान छोटा कर लिया ताकि वे लंका में प्रवेश कर सकें। उन्होंने भगवान नरसिंह का स्मरण कर अपनी भक्ति और शक्ति को बढ़ाया और लंका की ओर बढ़ गए।
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥4॥
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है और इसका अर्थ है:
"देखकर हनुमान जी ने मन ही मन प्रणाम किया। सीता जी बैठे हुए रात का समय बिता रही थीं। उनका कृश (दुबला) शरीर था, सिर पर जटा (जटाओं) की एक लंबी बेनी (चोटी) थी और वे हृदय में श्री रघुनाथ (भगवान राम) के गुणों का जाप कर रही थीं।"
इसमें यह वर्णन किया गया है कि हनुमान जी ने माता सीता को देखकर मन ही मन उन्हें प्रणाम किया। सीता जी रात के समय बैठी थीं, उनका शरीर दुबला था और सिर पर जटाओं की एक लंबी चोटी थी। वे हृदय में भगवान राम के गुणों का स्मरण कर रही थीं।
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ॥12॥
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है और इसका अर्थ है:
"हनुमान जी ने अपने हृदय में विचार कर मुद्रिका (रामचिह्न) को छोड़ दिया। जैसे असोक (पेड़) को अंगार (आग) दे दी गई हो, वैसे ही हर्षित होकर उन्होंने उसे उठाकर थाम लिया।"
इसमें हनुमान जी ने सीता माता को रामचिह्न (मुद्रिका) दिखाया और जब सीता ने उसे देखा, तो उन्होंने अत्यंत खुशी के साथ उसे स्वीकार किया। यह सीता माता की राहत और हर्ष को दर्शाता है, जैसे कि असोक वृक्ष को आग देकर उसकी दशा बदल दी गई हो।
साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥3॥
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है और इसका अर्थ है:
"साधुओं की उपेक्षा का फल ऐसा होता है, जैसे अनाथ के नगर को जलाना। एक क्षण में नगर जल जाता है, वैसे ही बिभीषण का घर भी एक पल में जल गया।"
इसमें यह कहा गया है कि साधुओं की उपेक्षा का परिणाम इतना भयंकर होता है कि जैसे अनाथ के नगर को एक ही पल में जलाया जा सकता है, वैसे ही बिभीषण के घर को भी एक क्षण में नष्ट किया जा सकता है। यह रावण और उसके सहयोगियों की करनी की निंदा करता है और साधुओं की महत्ता को दर्शाता है।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥2॥
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है और इसका अर्थ है:
"हे दीनदयाल, आप जो दीनों के लिए दया और सम्मान के पात्र हैं, कृपया इस महान संकट को दूर करें।"
इसमें हनुमान जी भगवान राम से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे जो दीन और गरीबों के प्रति दयालु हैं और जो सम्मान के योग्य हैं, वे उन्हें इस भारी संकट से उबारें। यह हनुमान जी की भक्ति और उनके संकट के समय भगवान राम की सहायता की कामना को दर्शाता है।
धवल कुमार व्यास जी ने कहा कि यह उनके लिए एक महान अवसर है कि वे श्रीलंका की इस पवित्र भूमि पर सुंदरकांड का पाठ कर सकें। उन्होंने कहा कि इस पाठ के माध्यम से वे सभी श्रद्धालुओं को भगवान राम की लीलाओं और आदर्शों से प्रेरित करेंगे।
उल्लेखनीय है कि आशोक वाटिका वह स्थान है जहां भगवान राम की पत्नी, माता सीता को रावण ने बंदी बनाकर रखा था। यहां पर सुंदरकांड पाठ का आयोजन एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करेगा और इस ऐतिहासिक स्थल की धार्मिक महत्ता को और बढ़ाएगा।
यूनिवर्सल मेरिट अवार्ड समारोह में विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिभाशाली लोगों को सम्मानित किया जाएगा और यह आयोजन मानवता और सद्भावना के संदेश को फैलाने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। इस विशेष कार्यक्रम में धवल कुमार व्यास जी द्वारा किए जाने वाले सुंदरकांड पाठ से श्रद्धालु आत्मिक शांति और धार्मिक प्रेरणा प्राप्त करेंगे।
आयोजनकर्ताओं ने सभी श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे इस पवित्र अवसर पर अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर इस आध्यात्मिक समागम का लाभ उठाएं।
डॉ. धवलकुमार विष्णुभाई व्यास का जन्म गुजरात के विसनगर में हुआ था और वे अपने गांव सुंढ़िया में पले-बढ़े। वे पिछले दो दशकों से अहमदाबाद स्थित यूके आधारित प्रमुख केपीओ उद्योगों में लेखांकन के क्षेत्र में कार्यरत हैं। बचपन से ही उनकी भगवान शिव की आराधना में गहरी आस्था थी। वर्ष 2003 के आसपास एक दिन उन्होंने सुंदरकांड का पाठ किया और उसके बाद से शनिवार को सुंदरकांड का नियमित पाठ करने लगे। इस आध्यात्मिक अनुभव ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने सभी अन्य प्रार्थनाएं छोड़ दीं।
विदेशों में भी फैलाया आध्यात्मिक संदेश
डॉ. व्यास ने विदेश में भी अपनी साधना का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने वर्चुअल सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया और एक कनाडाई यात्री ने उनके साथ एक पॉडकास्ट रिकॉर्ड किया। उनकी इस अनोखी साधना के लिए उन्हें नई दिल्ली में 'लाइफ टाइम अचीवमेंट एंड स्टार एक्सीलेंस' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ऑलसोएस्ट्रो न्यूज़ में डॉ धवल कुमार से विशेष चर्चा: रामचरितमानस के लंका कांड, अशोक वाटिका, और हनुमान जी पर विचार-विमर्श:
ऑलसोएस्ट्रो न्यूज़ के विशेष साक्षात्कार में, डॉ धवल कुमार व्यास ने रामचरितमानस के लंका कांड, अशोक वाटिका, और हनुमान जी, श्री राम और माता सीता पर गहन चर्चा की। डॉ धवल कुमार ने रामचरितमानस के महत्वपूर्ण दोहों और घटनाओं पर अपने विचार साझा किए, जो इन पात्रों और घटनाओं के महत्व को उजागर करते हैं।
उन्होंने लंका कांड के अंतर्गत हनुमान जी की वीरता और धैर्य की प्रशंसा की, विशेष रूप से उस समय जब उन्होंने अशोक वाटिका में माता सीता से भेंट की थी। उन्होंने हनुमान जी द्वारा माता सीता को श्री राम की अंगूठी देने और उनके साहसिक कार्यों को रेखांकित किया, जो कि रावण के दरबार में उनकी शक्ति और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है।
डॉ धवल कुमार ने श्री राम के धैर्य और समर्पण को भी महत्वपूर्ण बताया, खासकर जब वह सीता माता की खोज में लगे हुए थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रामचरितमानस के दोहे और श्लोक न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि उनमें जीवन के गहरे संदेश भी निहित हैं।
इस विशेष चर्चा ने दर्शकों को रामचरितमानस के अद्वितीय साहित्यिक और आध्यात्मिक आयामों से रूबरू कराया, और डॉ धवल कुमार के विश्लेषण ने इस पौराणिक ग्रंथ की गहराई को और अधिक समझने में मदद की।
"मसक समान रूप कपि धरी।लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी"
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है, जिसमें हनुमान जी के समुद्र पार कर लंका जाने की घटना का वर्णन है। इसका अर्थ है:
"हनुमान जी ने मच्छर के समान छोटा रूप धारण किया और भगवान नरसिंह का स्मरण करते हुए लंका की ओर चल पड़े।"
इसमें यह बताया गया है कि हनुमान जी ने अपना आकार मच्छर के समान छोटा कर लिया ताकि वे लंका में प्रवेश कर सकें। उन्होंने भगवान नरसिंह का स्मरण कर अपनी भक्ति और शक्ति को बढ़ाया और लंका की ओर बढ़ गए।
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥4॥
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है और इसका अर्थ है:
"देखकर हनुमान जी ने मन ही मन प्रणाम किया। सीता जी बैठे हुए रात का समय बिता रही थीं। उनका कृश (दुबला) शरीर था, सिर पर जटा (जटाओं) की एक लंबी बेनी (चोटी) थी और वे हृदय में श्री रघुनाथ (भगवान राम) के गुणों का जाप कर रही थीं।"
इसमें यह वर्णन किया गया है कि हनुमान जी ने माता सीता को देखकर मन ही मन उन्हें प्रणाम किया। सीता जी रात के समय बैठी थीं, उनका शरीर दुबला था और सिर पर जटाओं की एक लंबी चोटी थी। वे हृदय में भगवान राम के गुणों का स्मरण कर रही थीं।
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ॥12॥
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है और इसका अर्थ है:
"हनुमान जी ने अपने हृदय में विचार कर मुद्रिका (रामचिह्न) को छोड़ दिया। जैसे असोक (पेड़) को अंगार (आग) दे दी गई हो, वैसे ही हर्षित होकर उन्होंने उसे उठाकर थाम लिया।"
इसमें हनुमान जी ने सीता माता को रामचिह्न (मुद्रिका) दिखाया और जब सीता ने उसे देखा, तो उन्होंने अत्यंत खुशी के साथ उसे स्वीकार किया। यह सीता माता की राहत और हर्ष को दर्शाता है, जैसे कि असोक वृक्ष को आग देकर उसकी दशा बदल दी गई हो।
साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥3॥
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है और इसका अर्थ है:
"साधुओं की उपेक्षा का फल ऐसा होता है, जैसे अनाथ के नगर को जलाना। एक क्षण में नगर जल जाता है, वैसे ही बिभीषण का घर भी एक पल में जल गया।"
इसमें यह कहा गया है कि साधुओं की उपेक्षा का परिणाम इतना भयंकर होता है कि जैसे अनाथ के नगर को एक ही पल में जलाया जा सकता है, वैसे ही बिभीषण के घर को भी एक क्षण में नष्ट किया जा सकता है। यह रावण और उसके सहयोगियों की करनी की निंदा करता है और साधुओं की महत्ता को दर्शाता है।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥2॥
यह दोहा रामचरितमानस से लिया गया है और इसका अर्थ है:
"हे दीनदयाल, आप जो दीनों के लिए दया और सम्मान के पात्र हैं, कृपया इस महान संकट को दूर करें।"
इसमें हनुमान जी भगवान राम से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे जो दीन और गरीबों के प्रति दयालु हैं और जो सम्मान के योग्य हैं, वे उन्हें इस भारी संकट से उबारें। यह हनुमान जी की भक्ति और उनके संकट के समय भगवान राम की सहायता की कामना को दर्शाता है।
24 Comment's
Jai siyaram jai Hanuman
Jay Shree Ram Dhavalbhai amne live sambhalva ne jova male evu karjo kaik... Chek sri lanka sudhi jav cho to amne labh male ahiya betha
Hari Om bhai shanti thi yatra karjo varsad nu dhyan rakhjo baki to hanuman ji ni krupa che tamari par. Jay Shree Ram Jay Hanuman