कुंडली के सप्तम भाव से स्त्री, विवाह, व्यापार साझेदारी, झगडे की जानकारी महे प्राप्त होती है। सप्तम भाव में स्थि मंगल के प्रभाव से जातक का वैवाहिक जीवन सुखी नही रहता सप्तम भाव का संबंध जातक के पत्नी का स्वभाव रूप-रंग तथा विवाहित सुख का होता है। मंगल के सप्तम भाव में स्थित होने से जातक के विवाहित सुख में कमी होने की संभावना रहती है।
सप्तम भाव व्यापार व साझेदारी का भी होता है। इस भाव में मंगल स्थित होने से जातक साझेदारी में मिलकर व्यापार करे तो वह सफल नहीं हो पाता जिन लोगों के साथ जातक साझेदारी में व्यापार करता है। उनकी तरफ से जातक को धोखा देने की संभावना होत है। व्यापार में जातक को अपयश व हानि होने की संभावना रहती है।
सप्तम भाव में स्थित मंगल होने से जातक डाक्टर या सर्जन हो तो उसे प्रसिद्धि प्राप्त होती है। मैकेनिक, इंजिनिअर ड्राईवर खेती इनका कारक मंगल ग्रह है। सप्तम भाव में स्थिरता मंगल के प्रभाव से जातक इन क्षेत्रों में कार्य करे तो उसे सफलता हासिल होती है। सप्तम भाव में मंगलस स्थित होने से जातक अधिकारी हो तो उसके अपने नीचे काम करनेवालों से झगड़ा होता रहता है।
सप्तम भाव में मंगल वक्री या अशुभ प्रभाव युक्त होकर बैठा हो तो ऐसे जातक के विवाह नहीं होने की संभावना होती है। ऐसा जातक रोगी व शरीर से दुबला पतला दिखाई देता है। सप्तम भाव में मंगल के अशुभ फल ही प्राप्त होते है। सप्तम भाव में मंगल स्थित होने से मंगल के प्रभाव से जातक एक से अधिक व्यापार या उद्योग करने की ईच्छा रखता है। परंतु वह ठीक तरह से किसी भी व्यापार में सफल नही हो पाता।
सप्तम दृष्टि भाव में मंगल स्थित होने से उसकी पूर्ण सप्तम दृष्टि प्रथम (लग्न) भाव पर पडती है। मंगल की लग्न पर दृष्टि होने से जातक क्रोधी व उग्र स्वभआव का होता है।
सप्तम भाव में मंगल स्त होने से उसकी चतुर्थ दृष्टि दशम भाव पर पडती है मंगल की दशम भाव पर दृष्टि होने से जातक को कार्य क्षेत्र में अधिक परिश्रम के पश्चात फल की प्राप्ति होती है। पित वह बुद्धिमान हुआ।
सप्तम भाव में मंगल स्थित होने से उसकी अष्टम दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है। मंगल की दृष्टि भाव पर दृष्टी होने से जातक धन संचय नहीं कर पाता एवं परिवार से जातक के मतभेद बने रहते है।
सप्तम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को पत्नी की ओर से सुख प्राप्त होता है। तथा व्यवसाय के क्षेत्र में उन्न्ति प्राप्त होती है।
सप्तम भाव में मंगल शत्रुराशि में होने से जातक विवाहित जीवन में कष्ट तथा व्यवसाय में कठिनाईयो का समना करना पडता है।
सप्तम भाव में मंगल का अपनी स्वराशि मेष या वृश्चिक में स्थित होने से जातक को पत्नी से सुख प्राप्त होता है एवं व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है। सप्तम भाव में मंगल का अपनी उच्च राशि मकर में स्थित होने से जातक को व्यवसाय के क्षेत्र में विशेष सफलता मिलती है। जातक का वैवाहिक जीवन मध्यम होता है।
सप्तम भाव में मंगल का अपनी नीच राशि कर्क में स्थित होने से जातक को विवाहित जीवन में दुःखी होता हैं तथा जातक के अपनी पत्नी से अलग होने की संभावना बनी रहती है।(प्रत्येक कुंडली के अनुसार यह बात भिन्न हो सकती है)
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