महादानी राजा बलि के यहां चार मास निवास करते हैं,भगवान विष्णु। चातुर्मास असल में संन्यासियों द्वारा समाज को मार्गदर्शन करने का समय है। आम आदमी इन चार महीनों में अगर केवल सत्य ही बोले तो भी उसे अपने अंदर आध्यात्मिक प्रकाश नजर आएगा।
इन चार मासों में कोई भी मंगल कार्य- जैसे विवाह, नवीन गृहप्रवेश आदि नहीं किया जाता है। ऐसा क्यों? तो इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-अर्चना करें। बदलते मौसम में जब शरीर में रोगों का मुकाबला करने की क्षमता यानी प्रतिरोधक शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है। janiye devshiyani ekadashi ka bare may
वास्तव में यह वे दिन होते हैं जब चारों तरफ नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ने लगता है और शुभ शक्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं ऐसे में जरूरी होता है कि देव पूजन द्वारा शुभ शक्तियों को जाग्रत रखा जाए। देवप्रबोधिनी एकादशी से देवता के उठने के साथ ही शुभ शक्तियां प्रभावी हो जाती हैं और नकारात्मक शक्तियां क्षीण होने लगती हैं।
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में जाते हैं। इसलिए अगले चार महीने तक कोई भी शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं। इसे चातुर्मास कहते हैं। भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन निद्रा से जागते हैं। best astrologer website :- allso.in , best web designer ashish lodhi :- vivahallso.com , best matrimonial website :- vivahallso.com
क्या है महत्व: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसे हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। आषाढ़ के महीने में दो एकादशी आती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में।
भगवान विष्णु ही प्रकृति के पालनहार हैं और उनकी कृपा से ही सृष्टि चल रही है। इसलिए जब श्रीहरि चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं तो उस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। इसी समय से चातुर्मास की शुरुआत भी हो जाती है। इस समय कोई मांगलिक या भौतिक कार्य तो नहीं होता, लेकिन तपस्या होती है। इसलिए इसे चातुर्मास भी कहा जाता है। इसे बहुत ही शुभ महीना माना जाता है।
देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि देवशयन हो गया है। शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते। चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
देवशयनी एकादशी से साधुओं का भ्रमण भी बंद हो जाता है। वह एक जगह पर रुक कर प्रभु की साधना करते हैं। चातुर्मास के दौरान सभी धाम ब्रज में आ जाते हैं। इसलिए इस दौरान ब्रज की यात्रा बहुत शुभकारी होती है। अगर कोई व्यक्ति ब्रज की यात्रा करना चाहे तो इस दौरान कर सकता है।
जब भगवान विष्णु जागते हैं, तो उसे देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी कहा जाता है. इसके साथ ही शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं।
इस बार देवशयनी एकादशी आज 20जुलाई 2021 को है....देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है।
पूजन से लाभ : - देवशयनी एकादशी व्रत करने और इस दिन भगवान श्रीहरि की विधिवत पूजन से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं। मन शुद्ध होता है, सभी विकार दूर हो जाते हैं। दुर्घटनाओं के योग टल जाते हैं। देवशयनी एकादशी के बाद शरीर और मन तक नवीन हो जाता है।
एकादशी व्रत कथा!!!!! युधिष्ठिर ने पूछा : भगवन् ! आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘शयनी’ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ । वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है । आषाढ़ शुक्लपक्ष में ‘शयनी एकादशी’ के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवान विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया ।
‘हरिशयनी एकादशी’ के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभाँति धर्म का आचरण करना चाहिए ।
जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिए । एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए । ऐसा करनेवाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं ।
राजन् ! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चाण्डाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहनेवाला है । जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं । चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए ।
सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए । जो चौमसे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है । राजन् ! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए । कभी भूलना नहीं चाहिए। ‘शयनी’ और ‘बोधिनी’ के बीच में जो कृष्णपक्ष की एकादशीयाँ होती हैं, गृहस्थ के लिए वे ही व्रत रखने योग्य हैं - अन्य मासों की कृष्णपक्षीय एकादशी गृहस्थ के रखने योग्य नहीं होती । शुक्लपक्ष की सभी एकादशी करनी चाहिए।
इस हरिशयन मंत्र से सुलाएं भगवान विष्णु को! सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्। best astrologer website :- allso.in , best web designer ashish lodhi :- vivahallso.com , best matrimonial website :- vivahallso.com
यानी, हे प्रभु आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर और अचर सो जाते हैं. आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है और जागती है. आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें।
पूजन विधि:इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजन की जाती है ताकि चार महीने तक भगवान विष्णु की कृपा बनी रहे।
– मूर्ति या चित्र रखें– दीप जलाएं– पीली वस्तुओं का भोग लगाएं.– पीला वस्त्र अर्पित करें।
– भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। अगर कोई मंत्र याद नहीं है तो सिर्फ हरि के नाम का जाप करें। हरि का नाम अपने आप में एक मंत्र है।
– जप तुलसी या चंदन की माला से जप करें।
– आरती करें। best astrologer website :- allso.in , best web designer ashish lodhi :- vivahallso.com , best matrimonial website :- vivahallso.com
– विशेष हरिशयन मंत्र का उच्चारण करें...
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