निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी मुहूर्त क्या है? जानें भीम ने क्यों रखा था यह व्रत? ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी मनाई जाती है। साल में कुल 24 एकादशी आती हैं। इनमें से निर्जला एकादशी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि निर्जला एकादशी पर निर्जला उपवास रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है। यह साल की सबसे बड़ी एकादशी होती है। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई 2023 दिन बुधवार को मनाया जा रहा है। पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के बलशाली योद्धा भीम ने भी यह व्रत रखा था। 10 हजार हाथियों के समान ताकत रखने वाले भीम को बहुत भूख लगती थी। वह अपनी भूख को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। भीम जानते थे कि व्रत-उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन भीम के लिए ऐसा कोई व्रत रखना संभव नहीं था। तब श्रीकृष्ण के कहने पर भीम ने एकमात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखा। भूख बर्दाश्त ना होने पर शाम होते ही वो मूर्छित हो गए। तब से इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं क्यों कि इस एकादशी पर भीम ने व्रत रखा था। कहते हैं कि इस दिन बिना जल के उवपास रखने से साल की सभी एकादशियों का पुण्य फल मिलता है। निर्जला एकादशी का महत्व निर्जला एकादशी का व्रत करने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, इस दिन उपवास करने से अच्छी सेहत और सुखद जीवन का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन व्रत करने से पापों का नाश होता है और मन शुद्ध होता है। इस एकादशी को त्याग और तपस्या की सबसे बड़ी एकादशी माना जाता है। शुभ मुहूर्त ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि की शुरुआत 30 मई को दोपहर 1 बजकर 4 मिनट पर शुरु हो चुकी है और इसका समापन 31 मई दोपहर 1 बजकर 45 मिनट पर होगा। उदया तिथि के चलते यह निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई को रखा जाएगा। व्रत विधि निर्जला एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके बाद पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण की पूजा करें। इन्हें पीले फूल, पंचामृत और तुलसी अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें। व्रत का संकल्प लेने के बाद अगले दिन सूर्योदय होने तक जल की एक बूंद भी ग्रहण ना करें। इसमें अन्न और फलाहार का भी त्याग करना होता है। अगले दिन यानि कि द्वादशी तिथि को स्नान करके फिर श्रीहरि की पूजा करने के बाद अन्न जल ग्रहण करें और व्रत का पारण करें। ऐसा करने से जगत के पालनहार भगवान जल्द प्रसन्न होंगे और अपने भक्तों पर हमेशा कृपा बनाएं रखेगें।

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