सनातन हिन्दू धर्म में मोक्ष को मनुष्य जीवन का लक्ष्य माना जाता है आत्मा कर्म अनुसार मनुष्य जीवन पाती है इसका मुख्य उद्देश्य सत्कर्म कर मोक्ष की प्राप्ति है इसलिए मानव जीवन को अन्य योनियों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि मोक्ष प्राप्त किए बिना मनुष्य को बार-बार इस संसार में आना पड़ता है। पद्म पुराण में मोक्ष की चाह रखने वाले प्राणियों के लिए "मोक्षदा एकादशी व्रत" रखने की सलाह दी गई है। इस व्रत का उद्देश्य पितरो को मुक्ति दिलाना भी हैं। इससे मनुष्य के पूर्वजो को मोक्ष मिलता हैं। उनके कर्मो एवम बंधनों से उन्हें मुक्ति मिलती हैं। श्रीहरि के प्रताप से मनुष्य के पापो का नाश होता हैं और मनुष्य के मृत्यु के बाद उसका उद्धार होता हैं।
मोक्षदा एकादशी व्रत विधि
मोक्षदा एकादशी के दिन अन्य एकादशियों की तरह ही व्रत करने का विधान है। मोक्षदा एकादशी से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पूरे घर में गंगाजल छिड़क कर घर को पवित्र करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा में तुलसी के पत्तों को अवश्य शामिल करना चाहिए। janiye moshda ekadashi fast vidhi or iske benefit
पूजा करने बाद विष्णु के अवतारों की कथा का पाठ करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी की रात्रि को भगवान श्रीहरि का भजन- कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुन: विष्णु की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। अंत: में परिवार के साथ बैठकर उपवास खोलना चाहिए।
मोक्ष की प्राप्ति के इच्छुक जातकों के लिए हिन्दू धर्म में इस व्रत को सबसे अहम और पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। mosh ki prapti ka ishuk hindu dram , best astrologer website allso.in
मोक्षदा एकदशी बहुत ही विशेष एकदशी है। यही वह शुभ दिन था जिस दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद् भगवद गीता सुनाई थी। जो कोई भी इस दिन किसी योग्य व्यक्ति को भगवत गीता उपहार के स्वरुप में देता है, वह श्री कृष्ण द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करता है। best matrimonial website vivahallso.com
पराना का मतलब व्रत खोलना होता है। एकदशी पराना एकदशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। द्विद्वादशी तिथि के भीतर ही पराना करना आवश्यक है। द्वादशी के भीतर पराना नहीं करना अपराध के समान है। moshda ekadashi porananik khatha ka bare may janiye
पराना को हरि वासर के दौरान नहीं करना चाहिए। हरि वासर के समाप्त होने के बाद ही व्रत को खोलना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की एक चौथाई अवधि के बराबर है। उपवास तोड़ने का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत को नहीं खोलना चाहिए। यदि कुछ कारणों से प्रातःकाल के दौरान उपवास ना खोल सके तोह व्रत मध्याह्न के बाद ही खोलना चाहिए। ekadashi ka fast do din tak kyu chalta hai janiye
कभी-कभी एकदशी का उपवास लगातार दो दिनों तक चलता है। यह सलाह दी जाती है कि पारिवारिक लोग केवल पहले दिन उपवास का पालन करें। दुसरे दिन की एकादशी बैरागी, विधवाओ के लिए है। दोनों दिनों पर एकदशी का उपवास कट्टर श्रद्धालुओं के लिए है जो भगवान विष्णु के प्यार और स्नेह के इक्छुक हैं।
मोक्षदा एकादशी पौराणिक कथा
मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है। एक समय की बात है गोकुल नगर पर वैखानस नाम के राजा राज किया करते थे। ये बहुत ही धार्मिक प्रकृति के राजा थे। प्रजा भी सुखचैन से अपने दिन बिता रही थी। राज्य में किसी भी तरह का कोई संकट नहीं था। एक दिन क्या हुआ कि राजा वैखानस अपने शयनकक्ष में आराम फरमा रहे थे। तभी क्या हुआ कि उन्होंने एक विचित्र स्वपन देखा जिसमें वे देख रहे हैं कि उनके पिता (जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे) नरक में बहुत कष्टों को झेल रहे हैं। अपने पिता को इन कष्टों में देखकर राजा बेचैन हो गये और उनकी निंद्रा भंग हो गई। अपने स्वपन के बारे में रात भर राजा विचार करते रहे लेकिन कुछ समझ नहीं आया। तब उन्होंनें प्रात:काल ही ब्राह्मणों को बुलवा भेजा। ब्राह्मणों के आने पर राजा ने उन्हें अपने स्वपन से अवगत करवाया। ब्राह्मणों को राजा के स्वपन से यह तो आभास हुआ कि उनके पिता को मृत्युपर्यन्त कष्ट झेलने पड़ रहे हैं लेकिन इनसे वे कैसे मुक्त हो सकते हैं इस बारे में कोई उपाय सुझाने में अपनी असमर्थता जताई। उन्होंनें राजा वैसानख को सुझाव दिया। आपकी इस शंका का समाधन पर्वत नामक मुनि कर सकते हैं। वे बहुत पंहुचे हुए मुनि हैं। अत: आप अतिशीघ्र उनके पास जाकर इसका उद्धार पूछें।
अब राजा वैसानख ने वैसा ही किया और अपनी शंका को लेकर पर्वत मुनि के आश्रम में पंहुच गये। मुनि ने राजा के स्वपन की बात सुनी तो वे भी एक बार तो अनिष्ट के डर से चिंतित हुए। फिर उन्होंने अपनी योग दृष्टि से राजा के पिता को देखा। वे सचमुच नरक में पीड़ाओं को झेल रहे थे। उन्हें इसका कारण भी भान हो गया। तब उन्होंनें राजा से कहा कि हे राजन आपके पिता को अपने पूर्वजन्म पापकर्मों की सजा काटनी पड़ रही है। उन्होंने सौतेली स्त्री के वश में होकर दूसरी स्त्री को सम्मान नहीं दिया, उन्होंनें रतिदान का निषेध किया था। तब राजा ने उनसे पूछा हे मुनिवर मेरे पिता को इससे छुटकारा कैसे मिल सकता है। तब पर्वत मुनि ने उनसे कहा कि राजन यदि आप मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का विधिनुसार व्रत करें और उसके पुण्य को अपने पिता को दान कर दें तो उन्हें मोक्ष मिल सकता है। राजा ने ऐसा ही किया। विधिपूर्वक मार्गशीर्ष एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य को अपने पिता को दान करते ही आकाश से मंगल गान होने लगा। राजा ने प्रत्यक्ष देखा कि उसके पिता बैकुंठ में जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हे पुत्र मैं कुछ समय स्वर्ग का सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हो जाऊंगा। यह सब तुम्हारे उपवास से संभव हुआ, तुमने नारकीय जीवन से मुझे छुटाकर सच्चे अर्थों में पुत्र होने का धर्म निभाया है। तुम्हारा कल्याण हो पुत्र। ashish lodhi web designer website , http://adweb.rf.gd/?i=1
राजा द्वारा एकादशी का व्रत रखने से उसके पिता के पापों का क्षय हुआ और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई इसी कारण इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा गया। चूंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश भी दिया था इसलिये यह एकादशी और भी अधिक शुभ फलदायी हो जाती है।