खगोल विज्ञान के नियमानुसार पृथ्वी एक सालमे सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करती है । सूर्य उत्तरायण से सूर्य दक्षिणायन के मध्य का समय संधि जब दिनरात समान समय होता है और सूर्य दक्षिणायन से सूर्य उत्तरायण की संधि जब दिनरात एक समान समय होता है । अमावस्या की रात्रि या एकम की रात्रि से नोउ रात्रि तक का जो समय है इसे अश्विन ओर चैत्र नवरात्र कहते है । इस दोनों संधि समय दौरान ब्रह्मांड के सभी ग्रह नक्षत्र का मुख पृथ्वी के सामने खुलता है । ब्रह्मांड की प्रचंड ऊर्जा शक्ति का प्रवाह पृथ्वी की तरफ बहता है । नासा जैसी अवकाशी संशोधन कर रही वैज्ञानिक संस्था ने भी इस कॉस्मेटिक ऊर्जा का प्रवाह उन्ही समय अंकित किया । उन पवित्र ऊर्जा शक्ति को ग्रहण करने केलिए हमारे ऋषियो ने नवरात्र उपासना का मार्ग दर्शन किया है । ये शक्ति को ही महामाया , अम्बा , दुर्गा कहा गया है ।
प्रत्यक्ष देवता सूर्य की शक्ति प्रचंड है । सूर्योदय के बाद सूर्य की किरण ओर घोर नाद के कारण ध्वनि तरंग , ओर मानसिक विचारों की तरंगें भी कमजोर हो जाती है । जो नियमित रेडियो सुनते होंगे उन्हें पता होगा कि कम फीकवंसी वाले रेडियो स्टेशन दिनमे ठीकसे नही सुनाई देते । रात्रि होते ही सभी स्टेशन स्पष्ट सुनाई देते है । इसलिए शक्ति की उपासनामें भी पूर्ण रात्रि का महत्व है । इसलिए सामान्य पूजन चाहे दिनमे करे किन्तु मंत्र जाप , स्तोत्रगान , मानसिक ध्यान भी सूर्यास्त के बाद से प्रातःकाल तक किया जाता है ।
निराकार ब्रह्म शिवके जो प्रधान अष्ट स्वरूप है उनमें एक ही महामाया है । इस विश्व की सभी देवी , दुर्गा , अम्बा उनका ही अंश स्वरूप है । विविध कार्य हेतु विविध समय के प्रागट्य को ही हम अलग अलग नामसे जानते है । हरेक देवी को कुलदेवी के स्वरूपमे उपासना कर के ही प्रसन्न किया जाता है । जैसे डॉक्टर वैद्य दर्दी की नाड़ी तासीर समझकर ही ओषध देते है , ऐसे ही जिस कुलगोत्रमे जन्म हुवा हो उस गोत्रके ऋषि की आराध्या ओर इष्ट देव ( गोत्र देवता ) ही वंशपरांगत हमारे देहमे जाग्रत होते है । इसलिए वो कुलदेवी के स्वरूप को ही अम्बा , दुर्गा , महा विद्या के स्वरूपमे यजन कर प्रसन्न कर सकते है । कुलदेवी के मूलस्वरूप की पूजा किये बगैर कोई देवी स्वरूप प्रसन्न नही हो सकता । हरेक व्यक्ति को यताशक्ति मति अनुसार नवरात्र उपासना करनी चाहिए । परिवार की सूखाकारी का मूल सत्य यही है । * स्नान शुद्धि करके घरके पूजा स्थानमे प्रथम गणपति ओर कुलदेवी की मूर्ति , कुम्भ , तस्वीर या त्रिशूल जो भी स्थापित हो उनकी पंचोपचार पूजन करे । * पूजन के बाद नवदुर्गा के उसदिन के स्वरूप का स्मरण करें और नैवेद्य प्रसाद अर्पण करें और प्रथम कुलदेवी मंत्र और उस दिनके दुर्गा स्वरूप के मंत्र का जाप करे । ( सभी नवदुर्गा के स्वरूप , महात्यम , प्रसाद और मंत्र नीचे दिए है ) * सूर्यास्त समय धूप दीप आरती करें * रात्रि कालमे यथाशक्ति मंत्रजाप , पाठ , स्तोत्र , चंडी गान करे । संभव हो तो रात्रिमें 11 माला या 111 माला मंत्रजाप करे । * नवरात्र उपासना पूर्ण होने पर दशवे दिन यथाशक्ति कन्या भोजन पूजन करे । संभव हो तो नवरात्रि के हरदिन भी कर सकते है । * नवरात्र दरम्यान उपवास या एक समय भोजन करे । * कन्या से लेकर बुजुर्ग स्त्री सभीमे कुलदेवी का स्वरूप का ही भाव करे । ( स्वपत्नी को भी इस नोउदीन देवी स्वरूप ही भाव रखे । नवरात्रमें सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करे । नवदुर्गा के स्वरूप , प्रसाद और जाप के बीज मंत्र ;-
प्रथम नवरात्र में मां दुर्गा की शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं। मां का वाहन वृषभ है तथा इन्हें गाय का घी अथवा उससे बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है।
दूसरे नवरात्र में मां के ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं। मां को शक्कर का भोग प्रिय है।
मां के इस रूप में मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र बना होने के कारण इनका नाम चन्द्रघंटा पड़ा तथा तीसरे नवरात्र में मां के इसी रूप की पूजा की जाती है तथा मां की कृपा से साधक को संसार के सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। शेर पर सवारी करने वाली माता को दूध का भोग प्रिय है।
अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली मां कुष्मांडा की पूजा चौथे नवरात्र में करने का विधान है। इनकी आराधना करने वाले भक्तों के सभी प्रकार के रोग एवं कष्ट मिट जाते हैं तथा साधक को मां की भक्ति के साथ ही आयु, यश और बल की प्राप्ति भी सहज ही हो जाती है। मां को भोग में मालपूआ अति प्रिय है।
पंचम नवरात्र में आदिशक्ति मां दुर्गा की स्कंदमाता के रूप में पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। इनकी पूजा करने वाले साधक संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं। उनके जीवन में किसी भी प्रकार की वस्तु का कोई अभाव कभी नहीं रहता। इन्हें पद्मासनादेवी भी कहते हैं। मां का वाहन सिंह है और इन्हें केले का भोग अति प्रिय है।
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा। छठे नवरात्र में मां के इसी रूप की पूजा की जाती है। मां की कृपा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारों फलों की जहां प्राप्ति होती है वहीं वह आलौकिक तेज से अलंकृत होकर हर प्रकार के भय, शोक एवं संतापों से मुक्त होकर खुशहाल जीवन व्यतीत करता है। मां को शहद अति प्रिय है।
सभी राक्षसों के लिए कालरूप बनकर आई मां दुर्गा के इस रूप की पूजा सातवें नवरात्र में की जाती है। मां के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के भूत, पिशाच एवं भय समाप्त हो जाते हैं। मां की कृपा से भानूचक्र जागृत होता है मां को गुड़ का भोग अति प्रिय है।
आदिशक्ति मां दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा आठवें नवरात्र में की जाती है। मां ने काली रूप में आने के पश्चात घोर तपस्या की और पुन: गौर वर्ण पाया और महागौरी कहलाई। मां का वाहन बैल है तथा मां को हलवे का भोग लगाया जाता है तभी अष्टमी को पूजन करके मां को हलवे पूरी का भोग लगाया जाता है। मां की कृपा से साधक के सभी कष्ट मिट जाते हैं और उसे आर्थिक लाभ भी मिलता है।
नौवें नवरात्र में मां के इस रूप की पूजा एवं आराधना की जाती है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है मां का यह रूप साधक को सभी प्रकार की ऋद्धियां एवं सिद्धियां प्रदान करने वाला है। जिस पर मां की कृपा हो जाती है उसके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। मां को खीर अति प्रिय है अत: मां को खीर का भोग लगाना चाहिए। देवी : बीज मंत्र ;- 1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:। 2. ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:। 3. चन्द्रघण्टा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:। 4. कूष्मांडा : ऐं ह्री देव्यै नम:। 5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:। 6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:। 7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:। 8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:। 9. सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:। इस तरह कुलदेवी के स्वरूपमे नॉदुर्गा की उपासना निःशंक सफल होती है । जिसे ये पता न हो कि उनकी कुलदेवी कौन है वो सिर्फ जय कुलदेवी माँ के नामसे जाप करे ।आप सभी धर्मप्रेमी जनोंके रदयमे बिराजमान कुलदेवी स्वरूप माँ ललिता त्रिपुरसुंदरी को कोटि कोटि दंडवत प्रणाम सह अस्तु .. श्री मात्रेय नमः
If you have any work from me or any types of quries , you can send me message from here. It's my pleasure to help you.
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