जय श्रीराम ।।
अति दुखदायी पाप कर्तरी योग
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कर्तरी का शाब्दिक अर्थ होता है काटना या कुतरना। कुंडली में जब किसी भाव के एक घर आगे और एक घर पीछे क्रूर या पापी ग्रह बैठे हो तब उस भाव से पाप कर्तरी योग बनता है। जब किसी भाव के एक घर आगे और एक घर पीछे दोनों और क्रूर या पापी ग्रह बैठे हों तब उस भाव के फल संघर्ष और परेशानी से प्राप्त होते हैं। मगर यहाँ पर किसी भाव के अगले और पिछले भाव में सिर्फ क्रूर या पापी ग्रह होने से यह योग बनता है यदि किसी भाव के अगले और पिछले भाव में क्रूर या पापी ग्रह के साथ कोई सौम्य ग्रह भी बैठा हो तब यह दोष नहीं लगता है। जिस भाव से पाप कर्तरी योग बन रहा हो यदि उस भाव में कोई ग्रह भी बैठा हो तब वह भी पाप कर्तरी योग या दोष के प्रभाव में आ जाता है और उस ग्रह के कारकत्वों और भाव से जुड़े फल संघर्ष और मुश्किलों से प्राप्त होते हैं। आपको पता ही होगा कि कुंडली में क्रूर और पापी ग्रह चाहे योग कारक ही क्यों ना हों पर वह अपना नैसर्गिक स्वाभाव नहीं छोड़ते हैं।
ज्योतिष के अनुसार जब कुंडली का विश्लेषण किया जाता है तो कई प्रकार के दोषों का पता लगता है। ऐसा ही यह योग है। दरसल कर्तरी का अर्थ काटना या कुतरना होता है।
कुंडली में जब किसी भाव के एक घर आगे और एक घर पीछे पापी ग्रह बैठे हों तब उस भाव से पाप कर्तरी योग का निर्माण होता है। यदि किसी भाव के अगले और पिछले भाव में पापी ग्रह के साथ कोई सौम्य ग्रह बैठा हो तब यह दोष नहीं लगता है। जिस भाव से पाप कर्तरी योग बन रहा हो यदि उस भाव में कोई ग्रह बैठा हो तब पाप कर्तरी योग प्रभावी होता है। उस ग्रह के कारकत्वों और भाव से जुड़े फल बहुत संघर्ष से प्राप्त होते हैं। कुंडली में पापी ग्रह चाहे योग कारक ही क्यों ना हों पर वह अपना नैसर्गिक स्वाभाव नहीं छोड़ते हैं।
पाप कर्तरी योग का निर्माण
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कुंडली के पंचम भाव में गुरु बैठा है। इसके एक घर आगे अर्थात छठे भाव में पापी शनि बैठा हुआ है। एक भाव पीछे अर्थात चौथे भाव में पापी ग्रह मंगल और केतु बैठा हुआ है। इस तरह से कुंडली के पंचम भाव में पाप कर्तरी योग आ जाता है। अब यहाँ पर पंचम भाव से जुड़े फल जैसे शिक्षा और संतान में प्राप्त होने में परेशानी आएगी। अब यहाँ पंचम भाव में गुरु ग्रह भी पाप कर्तरी योग के प्रभाव में आ गया है। इस स्थिति में गुरु से जुड़े फल भी मुश्किल और संघर्ष के बाद प्राप्त होंगे।
सप्तम भाव के एक घर पीछे अर्थात छठे भाव में पापी ग्रह शनि बैठा हुआ है और सप्तम भाव के एक घर आगे अर्थात अष्टम भाव में क्रूर ग्रह सूर्य बैठा हुआ है।
तो सप्तम भाव में बैठा बुध ग्रह भी पाप कर्तरी योग के प्रभाव में आ जाने की वजह से पति पत्नी शादी व हिस्सेदारी तथा रोज़ाना की आय प्राप्त करने में परेशानी आएगी। जब चंद्रमा की राशि से द्वादश भाव में शनि का गोचर होता है तो वह साढ़ेसाती का शुरुआती समय होता है। जब चंद्र राशि के ऊपर शनि ग्रह आता है। तब शनि की साढ़े साती का मध्यम चरण होता है। जब चंद्र राशि के दूसरे भाव में शनि आता है तो वह समय पापी ग्रह शनि की साढ़े साती का अंतिम चरण होता है। जो पैरों पर जाकर खत्म होता है। इस प्रकार चंद्रमा ग्रह से द्वादश भाव से द्वितीय भाव तक शनि का गोचर करना मनुष्य के लिए अशुभ प्रभाव देता है। जिसके चलते जीवन नीरस हो जाता है। साथ ही जीवन मे समस्याओं का अंबार लग जाता है। कहने का मतलब परेशानियों कस्टों की लिस्ट लंबी हो जाती है। मनुष्य चाह कर भी कोई सफलता अर्जित नही कर पाता है।
ज्योतिषआचार्यआशीष गुप्ता 9312289250
वैदिक ज्योतिष व लाल किताब कुंडली विशेषज्ञ
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