*जन्म से मृत्यु प्रयन्त यात्रा*
आरंभिक बिंदु- जन्म (लग्न भाव)
जन्म से 4 वर्ष की शैशवावस्था - द्वितीय भाव
5 से 8 वर्ष की पूर्व बालावस्था- तृतीय भाव
9 से 12 वर्ष प्रयन्त उतर बालावस्था- चतुर्थ भाव। (बालावस्था समाप्त)
13 से 16 वर्ष प्रयन्त कुमारावस्था- पंचम भाव
17 से 20 वर्ष प्रयन्त किशोरावस्था अर्थात जीवनक संधिकाल- षष्ठ भाव (व्यसन भाव)
21 से 24 वर्ष प्रयन्त युवावस्था-सप्तम भाव
25 से 28 वर्ष प्रयन्त अवस्था- अष्टम भाव
29 से 32 वर्ष प्रयन्त अवस्था- नवम भाव
33 से 36 वर्ष प्रयन्त प्रौढ़ावस्था-दशम भाव
37 से 39 वर्ष प्रयन्त उतर प्रौढ़ावस्था-एकादश भाव
40 से 44 वर्ष प्रयन्त उतर प्रौढ़ावस्था-द्वादश भाव
पुनः 45 से 48 वर्ष प्रयन्त लग्न भाव की अवस्था...
ये कुल अढाई चक्रीय जीवन चक्र है।
49 से 52 वर्ष पुनः द्वितीय भाव
53 से 56 वर्ष अवस्था-तृतीय भाव
57 से 60 वर्ष की अवस्था- चतुर्थ भाव
(ये वो अवस्था है जिसमे बाल और वृद्ध दोनों एक समान हो जाते है। इंसान पुनः बालावस्था में प्रवेश कर जाता है। मन वैसा ही चंचल। जिसे सामान्य भाषा मे सठियाने की उम्र कही जाती है।
यह सूत्र जीवन के प्रत्येक पड़ाव, प्रत्येक विषय पर समान रूप से लागू है।
यह एक ऐसा दुर्लभ ज्ञान है, जो कि आपको अन्यत्र नहीं मिलेगा। न किसी व्यक्ति के पास और न ही ज्योतिष की किसी पुस्तक में।
मानव जीवन की कुल 120 वर्ष की आयु निर्धारित की गई है। जो कि इन द्वादश भावों के कुल अढाई चक्रों में सम्पूर्ण होती है। ये अढाई चक्रीय कुल जीवन है जिसका आरम्भ लग्न(जन्म) से और इति सप्तम(मृत्यु) पर जाकर सम्पूर्ण होता है।