पंचमुखीहनुमानमूर्ती रहस्य

पंचमुखीहनुमानमूर्ती रहस्य

 मित्रो आज एक पोस्ट में किसीने हिनदूओं को गधे घोड़े सूअर बन्दर के मुख वाले हनुमान को पूजने के कारण मूर्ख घोषित किया । 
मै उस व्यक्ति का आभारी हूं जिसने यह वक्तव्य देकर पंचमुखी हनुमान के वास्तविक परिचय पर मनन करने का अवसर प्रदान किया ।
राम रावण युद्ध के दौरान रावण का भाई अहिरावण राम लक्ष्मण को मोह पाश में बाँध पाताल लोक में ले गया । विभीषण ने यह रहस्य समझ हनुमानजी को बताया । पाताल लोक के द्वार मकरध्वज को पराजित कर हनुमान ने पाताल लोक में प्रवेश किया ।
पाताल में अहिरावण के प्राण पूजागृह में प्रज्ज्वलित पांच दिशाओं में रखे पांच दियों में बसते थे । जिन्हें एक ही फूंक में बुझाने पर ही अहिरावण की मृत्यु हो सकती थी ।
तब हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा।
उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। 
इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप पांच मुखों से एक ही फूंक में बुझाए इस तरह अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को मुक्त कराया ।
मित्रो यह पौराणिक कथा है ,आइये इसके मर्म पर विचार करते है ।

मित्रो रावण हंमारे जीवन का अहंकार है । अहि रावण अहंकार का भाई मोह है । 
मोह राम लक्ष्मण यानी ज्ञान वैराग्य को मोहीत कर पाताल लोक ( अधोगती ) में बन्दी बना लेता है । मित्रो ज्ञान और वैराग्य मोह द्वारा मोहित हो जाते है । मोह का मुकाबला सिर्फ साधक का प्रबल वैराग्य ही कर सकता है । हनुमानजी प्रबल वैराग्य है । उन्हें राम लक्ष्मण के अहिरावण द्वारा बन्दी बनाए जाने की सूचना विभीषण देते है । विभीषण संत प्रवृति का नाम है जो जीव को सावधान करती है ।
पाताल लोक यानी अनैतिक कर्मो की भूमी का द्वारपाल मकरध्वज है । मकरध्वज का अर्थ जिसके ध्वज में मगर का चिन्ह है । मगर विषय रस में डूबी वासनाएं है । और मकरध्वज इन वासनाओं का मूर्त रूप हैं । अहिरावण(मोह ) की रक्षा मकरध्वज (वासनाए) ही करता है ,क्योकि मोह के मरने पर वासनाएं खुद मर जाती है । हनुमानजी पहले मकरध्वज को पराजित करते है , क्योकि मोह को समाप्त करने के लिए वासनाओं को पहले मारना पड़ेगा ।
अहिरावण के प्राण पांच प्रज्ज्वलित दीपक में बसे थे । 
मित्रो पांच दीपक हमारी पांच ज्ञानेंद्रियां है । इन दीपकों में विषय रस की अग्नि होती है । विषयो का रस ही वह ईंधन है जो मोह को प्रज्ज्वलित रखता है। ये ज्ञानेंद्रियाँ इनके रस और तत्व इस प्रकार से है ।

ज्ञानेंद्रि विषय तत्व
कर्ण शब्द आकाश
त्वचा स्पर्श वायु
नेत्र तेज अग्नि
जिव्हा स्वाद जल
नासिका सुगन्ध पृथ्वी

मित्रो ये पांच विषय ही समस्त वासनाओं के कारण है । इन विषयों के विकार समाप्त करना ही पांच दीपक बुझाना है ।
एक फूंक में बुझाने की शर्त इसलिए है ,क्योकि जो दीपक बुझ गया वह दूसरे दीपक से फिर जल उठेगा । साधना में सब विषय एक साथ ही छोड़ना पड़ते है यदि एक भी दीपक या विषय भोग बचा रहा तो मोह कैसे जायेगा ।

पंच मुखी का पहला मुख वराह का है । वराह अवतार की कथा में वराह ने पृथ्वी को दांतों से उठा कर पृथ्वी का उद्धार किया था । अतः वराह मुख को पृथ्वी तत्व के प्रतीक स्वरूप लिया गया । 
दूसरा मुख गरुड़ का है । जो विष्णु का वाहन है । आकाश में विचरण करने से गरुड़ मुख को आकाश तत्व के प्रतीक स्वरूप लिया गया । 

तीसरा वानर मुख स्वयम हनुमानजी का है जो वायु तत्व के प्रतीक है । 

चौथा मुख क्रोधित नरसिंह अवतार का है जो अग्नि तत्व का प्रतीक है । 

पाँचवा मुख समुद्र मंथन से निकले ह्यग्रीव नामक घोड़े का है । जो समुद्र से उत्तपन्न होने के कारण जल तत्व का प्रतीक है । 

पांचो मुख पशुओं के इसलिए लिए है क्योंकि पशु अपनी इंद्रियों का उपयोग करते है उपभोग नही । वे इंद्रियों द्वारा उतना ही ग्रहण करते है जो जीवन जीने के लिए आवश्यक है ।

मित्रो इस तरह शुद्ध पंचतत्व युक्त प्रबल वैराग्य की मूर्ती ही पञ्चमुखी हनुमान की दिव्य मूर्ति हैै । जो शुद्ध पंच तत्व निर्मित पंच मुखों से इंद्रियों की विषय अग्नि बुझा कर मोह की कैद से ज्ञान वैराग्य रूपी राम लक्ष्मण को मुक्त करवाने में समर्थ हैं ।

ज्ञान वैराग्य सांसारिक मोह से दूर हो कर ईश्वरीय मोह भजन ,दर्शन , नाम श्रवण , धूप सुगन्ध , भोग प्रसाद में फंस जाते है । यानी इंद्रियों के विषय दूर नही होते । लेकिन प्रबल वैराग्य जिसमे यम-नियम द्वारा तत्वों की शुद्धि होने से विषय विकार समाप्त हो जाते है । फिर उसे कुछ भी अच्छा या बुरा नही लगता । जो जीवन के लिए आवश्यक है इंद्रियों से उतना ही ग्रहण करता है ।

तो मित्रो गर्व करो हमारी पौराणिक कथाओं के मर्म पर ।

आचार्य तुषार जोशी 
ज्योतिषाचार्य 
राजकोट 

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