करवा चौथ हिंदू धर्म का एक प्रमुख व्रत है, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के दर्शन तक निर्जल (बिना जल के) उपवास रखती हैं और सायंकाल चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पालन करती हैं। करवा चौथ न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह पति-पत्नी के प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक भी है।
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1. करवा चौथ 2025 — तिथि और समय
ध्यान दें: ये समय सामान्य (समूचे भारत के लिए अनुमानित) हैं। आपके नज़दीकी शहर / स्थान के अनुसार चन्द्र उदय और मुहूर्त थोड़ा बहुत बदल सकता है — इसलिए अपने स्थानीय पंचांग (ड्रिकपंचांग, ज्योतिष ऐप आदि) से पुष्टि करना बेहतर रहेगा।
2. करवा चौथ का महत्व और पौराणिक कथा
2.1 महत्व और धार्मिक मान्यता
करवा चौथ एक ऐसा व्रत है जिसे अधिकांशतः विवाहित महिलाएँ अपनाती हैं ताकि वे पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि की कामना कर सकें।
इसे निरजला व्रत माना जाता है — अर्थात् इस दिन खाना और पानी दोनों से परहेज़ किया जाता है, सूर्योदय से लेकर चाँद उदय तक।
धार्मिक ग्रंथों जैसे वामन पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि में इस व्रत का उल्लेख मिलता है।
कहावत है कि इस व्रत के कारण पति का जीवन दीर्घ और दांपत्य जीवन खुशहाल हो जाता है।
लोक मान्यता के अनुसार, महिलाएँ इस दिन भगवान शिव, पार्वती, चंद्रमा आदि की पूजा करती हैं।
2.2 पौराणिक कथा
एक प्रचलित कथा इस प्रकार है:
बहुत पहले एक व्यापारी था जिसके सात पुत्र और एक पुत्री थी, जिसका नाम करवा था। करवा का पति बहुत दूर गया हुआ था। एक दिन करवा ने व्रत रखा और चाँद निकलने की प्रतीक्षा की। लेकिन उसके छोटे भाईयों ने नीयत बिगाड़ने के लिए चाँद निकलने का दिखावा किया — उन्होंने दीपक जलाकर पीपल वृक्ष के नीचे रख दिया। करवा ने सोचा कि चाँद निकल गया है और उसने व्रत तोड़ लिया। उसी समय समाचार मिला कि उसका पति मर गया है। दुःखी करवा ने हृदय से प्रार्थना की और अगले वर्ष फिर व्रत किया। उसकी भक्ति से भगवान प्रसन्न हुए और उसके पति को पुनरुत्थान (जीवनदान) मिला। तब से यह व्रत प्रचलित हुआ।
यह कथा यह संदेश देती है कि श्रद्धा, समर्पण और धैर्य से पूजा करने से आशा की प्राप्ति होती है।
3. करवा चौथ पूजा-विधि (रिवाज और क्रम)
नीचे वह क्रम दिया गया है जिसे अधिकांश महिलाएँ पालन करती हैं:
3.1 तैयारियाँ (व्रत से पहले की रात / दिन भर)
महिलाएँ सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं, शुद्ध वस्त्र पहनती हैं।
(Sargi): व्रत से पहले, भोर से पहले, सास (सासु) अपनी बहू को सगारी देती है — फल, स्वादिष्ट व्यंजन, मिठाई आदि।
दिवसा के समय गृहकार्य, पूजा की तैयारी, सजावट, श्रृंगार आदि किया जाता है।
3.2 शाम की पूजा
समय से पहले बैठना — महिलाएँ शाम समय पर निश्चित स्थान पर बैठ जाती हैं।
पूजा सामग्री तैयार करना — थाली में दीप, अक्षत (चावल), रोली/कुमकुम, फूल, मिठाई, मीठा पान, पानी (करवा में), फल आदि।
पूजा अर्चना
पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा से होती है।
फिर करवा माता की पूजा की जाती है।
कथा / व्रत कथा सुनी जाती है, जिसमें करवा चौथ की पौराणिक कथा सुनाई जाती है।
भक्ति गीत गाए जाते हैं।
दीप / आरती होती है।
चन्द्र दिखना (चाँद का दर्शन)
चाँद निकलने पर महिलाएँ चाँद को छन्नी (छलनी) या झाली (screen) से देखती हैं, फिर उसी झाली से पति की ओर देखती हैं।
चाँद को अर्घ्य (जल अर्पित करना) दिया जाता है।
पति (या पति की ओर से) पहली जलपान (एक घूंट पानी) और भोज्य सामग्री (मिष्ठान) पत्नी को देते हैं, और व्रत पूर्ण होता है।
3.3 उपवास (पूरे दिन)
व्रत शुरू होते समय कोई जल या भोजन नहीं लिया जाता।
दिन भर पानी न पीना भी एक विशेष नियम है (निरजला व्रत)।
महिलाएँ अक्सर जागरण करती हैं, पूजा तैयारी करती हैं, और शाम तक मन को संयमित रखती हैं।
3.4 श्रृंगार एवं पारंपरिक रीति-रिवाज
करवा चौथ को 16 श्रृंगार का महत्व माना जाता है — मेहँदी, श्रृंगार (गहने, चुड़ी), सिंदूर आदि शामिल हैं।
महिलाएँ लाल, गहरे रंग जैसे मरून, गुलाबी आदि पारंपरिक वस्त्र पहनती हैं।
मेहँदी (हिना) बनवाना एक प्रमुख रस्म है।
सुंदर श्रृंगार, आभूषण लगाना आम बात है।
best astrologer Himanshu Bhardwaj