“शरद पूर्णिमा” हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला पवित्र पर्व है।
“शरद” शब्द शरद ऋतु (ीरखा बादल समाप्ति, शरद ऋतु की शुरुआत) को सूचित करता है। इस रात चन्द्रमा की किरणें विशेष मान्यताओं के अनुसार अमृत — दिव्य जीवनदायी शक्ति — ले कर आनी कहलाती हैं।
इसी कारण इस रात आसमान के नीचे खीर आदि खाद्य पदार्थ रखे जाते हैं ताकि वे चांदनी से उस दिव्यता को ग्रहण कर सकें।
इसके अलावा, इस रात को भगवान कृष्ण ने गोकुल में राधा एवं गोपियों के साथ महा-रास लीला की थी — इस दृष्टि से इसे “रास पूर्णिमा” भी कहा जाता है।
“कोजागरी पूर्णिमा” नाम भी एक आदर नाम है — “को जागर्ति?” (कौन जाग रहा है?) — इस विश्वास से कि देवी लक्ष्मी व अन्य दिव्य शक्तियाँ इस रात जगने वालों पर वरदान देती हैं।
शरद पूर्णिमा 2025 — तिथि, मुहूर्त व समय
वर्ष 2025 में शरद पूर्णिमा 06 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होती है 06 अक्टूबर दोपहर 12:23 बजे से और समाप्त होती है 07 अक्टूबर सुबह 09:16 बजे तक।
चन्द्र उदय समय (चांद निकलने का समय) कई स्थानों पर लगभग शाम 5:27 बजे के आसपास होगा।
इस कारण, तथ्य यह है कि पूर्णिमा तिथि 7 अक्टूबर सुबह तक चलती है, लेकिन पूजा‑रात का मुख्य समय 06 अक्टूबर की रात ही माना जाता है।
पूजा हेतु शुभ मुहूर्त (निशीठ काल) 06 अक्टूबर की रात्रि 11:45 बजे से मध्य रात्रि 12:34 तक बताया गया है।
इस तरह, अधिकांश विद्वान और ग्रंथ 06 अक्टूबर की रात को ही शरद पूर्णिमा मनाने की सलाह देते हैं।
शरद पूर्णिमा का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व
शरद पूर्णिमा को लेकर अनेक धार्मिक विश्वास, कथाएँ और मान्यताएँ प्रचलित हैं। नीचे उनका सार प्रस्तुत है:
16 कलाओं का एकीकरण
कहा जाता है कि इस रात चन्द्रमा अपनी सम्पूर्ण 16 कलाएँ प्रकाश में लाता है — ये कलाएँ आद्यात्मिक गुण, आध्यात्मिक शक्तियाँ, चिकित्सा गुण आदि का प्रतीक हैं।
और भगवान कृष्ण को “पूर्णावतार” कहा जाता है क्योंकि वे 16 कलाओं से पूर्ण माने जाते हैं।
अमृत वर्षा की मान्यता
धार्मिक विश्वास है कि इस रात चाँदनी अमृतिलहरी की तरह धरती पर गिरती है। जो पदार्थ चंद्र किरणों के संपर्क में आएँ, उनमें दिव्य गुण प्रवेश करते हैं।
इसी कारण रात भर बाहर रखी खीर को विशेष महत्व दिया जाता है।
रास लीला
पुराणों में वर्णित है कि कृष्ण ने इस रात राधा और गोपियों के साथ रास लीला की थी और वह रात भर नृत्य हुआ।
इसलिए यह रात प्रेम, भक्ति, ऊर्जा एवं आनंद का प्रतीक मानी जाती है।
लक्ष्मी व विष्णु की पूजा
यह भी मान्यता है कि माता लक्ष्मी विशेष रूप से इस रात को धरती पर उतरती हैं और धन, संपदा, उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करती हैं।
लोग व्रत रखते हैं और विष्णु जी की पूजा करते हैं, ताकि जीवन में समृद्धि और मंगल आए।
आरोग्य एवं आत्म शुद्धि
आयुर्वेद एवं संस्कृति दृष्टिकोण से भी यह रात स्वास्थ्य सौम्य करने, शुद्धि करने, मन-शरीर को सुदृढ़ करने वाली मानी जाती है।
दान और जागरण
इस रात जगरण करना — भजन, कीर्तन, मंत्र जाप — अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। लोग जरूरतमंदों को दान करते हैं।
“को जगर्ति?” की प्रेरणा से यह कहने वाला संदेश है — “कौन जाग रहा है?” — अर्थात जो जागेगा, उस पर देवी लक्ष्मी की कृपा होगी।
कृषक जीवन और उपज का आभार
शरद पूर्णिमा मौसम परिवर्तन का प्रतीक भी है — मानसून समाप्ति और कटाई/फसल के आगमन का समय। इस समय किसान अपनी उपज के लिए आभार प्रकट करते हैं।
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क्रम
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क्रिया / विधि
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विवरण
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1
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संकल्प
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यह व्रत करने का संकल्प लें — सुबह जल्दी उठें, स्नान-ध्यान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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2
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पूजा स्थान एवं तैयारी
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पूजा गृह या पूर्व दिशा / ईशान कोण में चौकी रखें, उस पर सुंदर कपड़ा बिछाएँ।
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3
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देव प्रतिमा / चित्र स्थापना
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विष्णु जी, माता लक्ष्मी व चंद्र देव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
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4
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गंगाजल / पवित्र जल
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गंगाजल (या शुद्ध जल) लाकर पंचामृत या तुलसी पानी से देवताओं को अभिषेक करें।
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5
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आवश्यक सामग्री अर्पण
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पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य (मिष्ठान, फल, पकवान), अक्षत (चावल), रोली, चंदन, तुलसी आदि अर्पित करें।
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6
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मंत्र जाप / स्तुति पाठ
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विष्णु स्तोत्र, लक्ष्मी स्तुति, चंद्र स्तुति या “ॐ सोम सोमाय नमः” आदि मंत्र जपें।
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7
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खीर व्यवस्था
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खास बात — रात को चाँदनी में खीर (चावल-घी-शक्कर मिश्रण) बाहर रखें ताकि चंद्र की रोशनी उस पर पड़े। इसे अगली सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
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8
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अर्घ्य देना
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चंद्र उदय होते ही उन पर दूध, जल, तुलसी, शक्कर आदि अर्पित करें।
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9
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रात्रि जागरण / भक्ति कार्यक्रम
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रात्रि जागरण करें — भजन, कीर्तन, पाठ, कथा आदि करें।
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10
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प्रसाद वितरण
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अगली सुबह खीर / अन्य प्रसाद सभी को वितरित करें और दान करें।
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11
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उपसंहार
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व्रत का समापन करें — देवताओं को धन्यवाद करें, आरती करें, और शांति व अमंगल मंत्र जपें।
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शरद पूर्णिमा व्रत कथा (संक्षिप्त रूप)
विभिन्न क्षेत्रीय कथाओं में एक मुख्य कथा प्रचलित है:
एक बार एक स्त्री के मरे हुए शिशु को उसकी बहन ने स्पर्श कर जीवित कर दिया, जब उसने यह कहा कि वह शरद पूर्णिमा का व्रत करेगी। उसकी भव्य श्रद्धा से देवी प्रसन्न हुईं और उस पर अमृत वर्षा हुई। इस घटना से प्रेरणा लेकर शरद पूर्णिमा व्रत लोकप्रिय हुआ।
कथा का सामान्य संदेश — अश्रद्धालुओं के लिए यह व्रत फलदायी है, श्रद्धा और भक्ति मुख्य है।
पूजा विधि / व्रत नियम — चरणबद्ध विवरण
नीचे एक सरल पूजा विधि दी जा रही है, जिसे आप अपनी सामर्थ्य और परंपरा के अनुसार अनुसरित कर सकते हैं:
कुछ विशेष नियम व सुझाव
व्रत रहित लोग दिन में हल्का उपवास रख सकते हैं, या फलाहार कर सकते हैं।
रात्रि जागरण करना शुभ माना जाता है — पूरी रात जागना श्रेष्ठ है।
यदि संभव हो, किसी गरीब, अनाथ या जरुरतमंद को भोजन, वस्त्र, अनाज दान करना चाहिए।
पूजा सामग्री एवं प्रसाद स्वच्छता से तैयार करें।
स्थानानुसार परंपरा भिन्न हो सकती है — अपने परिवार या पंडित की परंपरा का पालन करें।
वैसे कुछ विचार और मेरा दृष्टिकोण
शरद पूर्णिमा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयाम भी गहरा है। अनेक घरों में इस रात मिलन, भजन-संगीत और सामूहिक जागरण का अवसर बनता है, जो समाज में एकता एवं श्रद्धाभाव को बढ़ावा देता है।
चांदनी रात में खीर रखना — यह प्रतीक है प्रकृति व आकाश के बीच संवाद का — “मानव ने भोजन तैयार किया, आकाशोत्कर्ष की शक्ति उसमें प्रवेश करें” — यह एक सुंदर प्रतीकवाद है।
इस रात यदि हम भक्ति, श्रद्धा और सेवा के भाव से जीवन बिताएँ — जागरण करें, दूसरों की सहायता करें, दान करें — तो यह दिन हमारे मन व आत्मा को भी “पूर्ण” बनाने का अवसर बन जाता है।
best Numerologer Vaishalee suryavanshi
Love , Peace, Prosperity