डॉ. राघव नाथ झा
तात्कालिक प्रश्न या प्रश्न-लग्न ज्योतिष वह प्राचीन पद्धति है जिसमें किसी भी व्यक्ति द्वारा पूछे गए प्रश्न के उसी क्षण की ग्रह-स्थिति को आधार बनाकर उत्तर निर्धारित किया जाता है। यह विधि पराशर, भृगु, वाराहमिहिर और ताजिक नीलकण्ठी जैसे प्रामाणिक ग्रंथों में स्पष्ट रूप से वर्णित है। शास्त्र कहता है कि प्रश्न-संकेत स्वयं ग्रहों द्वारा निर्मित होते हैं, इसलिए प्रश्न उठते ही उस समय की लग्न-कुंडली ही फल का बीज मानी जाती है।
शास्त्रीय आधार पर एक प्रसिद्ध श्लोक है—
“यथाकालोदिते लग्ने चन्द्रस्य च स्थितिर्निशा ।
ततः सिद्धिर्निर्णयः कार्ये प्रश्नस्य निश्चिता ॥”
अर्थात— प्रश्न के समय का लग्न और चन्द्र की स्थिति ही कार्य की सिद्धि-असिद्धि के निश्चित संकेत देते हैं।
पराशर व भृगु परम्परा प्रश्न की पवित्रता को सर्वाधिक महत्त्व देती है— गंभीर, स्पष्ट और संकल्पयुक्त प्रश्न ही सत्य फल देता है; संदेहपूर्ण या मज़ाक में किया गया प्रश्न फलहीन माना गया है।
वाराहमिहिर की परम्परा में लग्नेश, चन्द्रमा तथा शुभ दृष्टियाँ प्रमुख निर्णायक तत्व हैं। चन्द्रमा को प्रश्न का मन व हृदय कहा गया है— चन्द्र शुभ हो तो कार्य में उन्नति, अशुभ हो तो विलंब या बाधा।
ताजिक पद्धति में इष्ट और अपक्लिष्ट योगों द्वारा त्वरित निर्णय होते हैं— इष्ट योग सफलता, अपक्लिष्ट योग रुकावट का संकेत है।
विषयानुसार भावों का भी निर्णय में विशेष योगदान है—
धन हेतु 2/11, विवाह हेतु 7, रोग हेतु 6, संतान हेतु 5, तथा नौकरी/कर्म हेतु 10वाँ भाव।
इन विविधताओं
के बावजूद तीन सिद्धांत सर्वमान्य हैं—
1. प्रश्न का क्षण ही निर्णायक
2. लग्न–लग्नेश–चन्द्रमा का बल
3. विषय-भाव और कारक ग्रहों का प्रभाव
यही तात्कालिक प्रश्न ज्योतिष का शास्त्रीय और संक्षिप्त सार है। डॉ. राघव नाथ झा



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