दीवाली का महत्व
दीवाली हिन्दू धर्म का एक प्रमुख प्रकाश‑उत्सव है, जिसे अँधेरे पर प्रकाश, अधर्म पर धर्म, अज्ञान पर ज्ञान की विजय के रूप में देखा जाता है। इस दिन घर‑परिवार, समाज में उल्लास फैलता है; दीप जलाए जाते हैं, रंगोली होती है, मिठाई बाँटी जाती है और नए आरंभों की कामना की जाती है।
यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि बाहरी ही नहीं, आंतरिक अँधेरा (जिसे हम भय, आलस्य, नकारात्मकता कह सकते हैं) भी जला‑भजाकर उजाले की ओर ले जाना चाहिए।
दीवाली क्यों मनाई जाती है?
यह पर्व प्राचीन कथा‑परंपरा से जुड़ा है, जहाँ भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के बाद अपने राज्य अयोध्या लौटे, तब अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया।
साथ ही, यह दिन देवी‑देवताओं — विशेषकर माता लक्ष्मी (समृद्धि की देवी), गणेश (विघ्नहर्ता) और कुबेर (धन के अधिपति) — की आराधना का अवसर होता है।
दीप जलाना, घर‑साफ‑सुंदर करना, नए आरंभ करना — ये सब संकेत हैं कि हम अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सौभाग्य और उजाले को आमंत्रित कर रहे हैं।
2025 में दीवाली की तिथि एवं शुभ मुहूर्त
इस वर्ष, कार्तिक माह कृष्ण‑पक्ष की अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर 2025 को दोपहर लगभग 3:44 PM से शुरू होकर 21 अक्टूबर 2025 शाम लगभग 5:54 PM तक है।
इस कारण से, कई स्रोतों के अनुसार मुख्य दीवाली (लक्ष्मी‑पूजन सहित) 20 अक्टूबर 2025 की शाम को मनाई जाएगी।
शुभ पूजन‑मूहूर्त (लगभग): शाम 7:08 PM से 8:18 PM के बीच (लक्ष्मी पूजन के लिए) कहा गया है।
प्रादोष‑काल (शाम‑समय) भी लगभग 5:58 PM से 8:25 PM तक माना गया है।
नोट: यह मुहूर्त सामान्य भारत‑व्यापी पंचांगों के अनुसार है। आपके स्थानीय पंडित या क्षेत्र‑पंचांग के अनुसार कुछ समय में बदलाव हो सकता है — इसलिए पूजा से पूर्व स्थानीय पंचांग देखें।
दीवाली पूजन की तैयारी
सबसे पहले घर‑आँगन को अच्छी तरह सफाई करें। विशेष रूप से उत्तर‑पूर्व (ईशान‑कोण) ओर का ध्यान दें क्योंकि यह शुभ दिशा मानी जाती है।
घर में दीपक, रंगोली, फूल, पारंपरिक सजावट (तोरण‑बंदनवार) आदि लगाएँ।
पूजा स्थल के लिए एक साफ चौकी या मेज चुनें, उस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएँ।
उस स्थान पर माता लक्ष्मी, गणेश एवं कुबेर जी की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें।
पूजा सामग्री को व्यवस्थित रूप से तैयार रखें — जिससे पूजा के समय व्यवधान न हो।
पूजन सामग्री (क्या चढ़ाना चाहिए)
पूजा में निम्नलिखित वस्तुएँ उपयोग में लाना शुभ माना गया है:
दीपक (तेल/घी से) और अगरबत्ती, धूप‑कपूर
रोली, हल्दी, अक्षत (चावल)
फूल‑माला (कमल, गुलाब, गेंदे)
मिठाई (लड्डू, मोदक, बताशा)
चावल, फल‑फूल, नारियल, पान‑सुपारी
सिक्के (चांदी/तांबा) या धन‑राशि
कलश (पानी के साथ), मिट्टी‑दीया, दीपमालाएं
पूजा की थाली जिसमें थाली, चम्मच, नैवेद्य आदि हों
पूजा प्रक्रिया (क्रमबद्ध विधि)
पूजा से पहले स्वयं एवं परिवार के सदस्य शुद्ध एवं साफ कपड़े पहन लें।
सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें — उन्हें फूल, दूर्वा, मिठाई चढ़ाएँ।
इसके बाद माता लक्ष्मी की पूजा करें — उन्हें फूल, सिक्के, मिठाई, चावल‑दाना अर्पित करें।
कुबेर जी की पूजा करें — धन‑समृद्धि की कामना से।
पूजा स्थल पर दीपक जलाएं, आरती करें (पहले गणेश, फिर लक्ष्मी)।
पूरे घर में दीप‑मालाएं, आरती‑गीत, भजन आदि करें।
पूजा के अंत में प्रसाद वितरित करें और परिवार‑सदस्यों से आशीर्वाद लें।
दीवाली के दिन क्या करना चाहिए?
क्या करें:
घर, पूजा‑स्थान, दुकान आदि अच्छी तरह सजाएँ और सजावट (दीप, रंगोली, लाइट) करें।
नए खाता‑बही, व्यवसाय‑सक्रियता आदि आरंभ करना शुभ माना जाता है।
दीपक पूरे घर में, विशेष रूप से उत्तर‑पूर्व और दक्षिण‑पूर्व दिशाओं में लगाएँ।
रात में जागरण करें, परिवार‑दोस्तों के साथ मिलकर उल्लास मनाएँ।
दान‑दानशोधन करें (नीचे विशेष देखें) — यह पुण्य का अवसर है।
दीवाली के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
क्या न करें:
कटु‑वचन, झगड़ा‑विवाद से बचें।
पूजा के समय अशुद्ध हाथों या गंदे स्थान से पूजा न करें।
पूजा में उपयुक्त सामग्री न होने पर अपमान महसूस न करें — शांतिपूर्वक पुनः तैयारी करें।
दीपक या लाइटिंग करते समय सुरक्षा‑नियमों की अनदेखी न करें (बिजली ओवरलोडिंग, आग‑खतरा)।
पूजा के बाद प्रसाद‑चावल आदि संचित न करें — समय आने पर वितरित कर दें।
दान देना क्यों और कैसे?
दान करना इस पर्व का एक मूल अंग है — क्योंकि प्रकाश, समृद्धि एवं साझा‑भाव को बढ़ावा देता है।
अन्न दान: जरूरतमंदों को अनाज, भोजन देना।
वस्त्र दान: अच्छे‑साफ कपड़े दान करना।
दीप/दीया दान: मंदिर या सार्वजनिक स्थल पर दीपक जलाना।
धन‑दान: आर्थिक सहायता जरूरतमंदों या धर्म‑संस्थान को।
सामाजिक दान: जैसे झाड़ू‑दीपक आदि देना, जिससे साफ‑सफाई एवं सकारात्मक ऊर्जा बढ़े।
दान से न केवल सामाजिक लाभ होता है, बल्कि आध्यात्मिक शांति एवं पुण्य की प्राप्ति का मार्ग खुलता है।
दीवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक जीवन‑पाठ है — जो हमें सिखाता है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर प्रकाश मौजूद है, और उसे जला‑भजाकर हम अपनी, अपने परिवार‑समाज की, और पूरे समाज की उन्नति कर सकते हैं। सही तिथि, शुभ मुहूर्त, विधि‑विधान एवं श्रद्धा‑भाव से किया गया पूजा जीवन में समृद्धि, शांति और आनंद लाता है।
इस वर्ष (2025) में, 20 अक्टूबर को शाम के समय निर्धारित मुहूर्त में लक्ष्मी‑पूजन और दीपावली‑उत्सव करना शुभ माना गया है। आप स्थानीय पंचांग एवं पंडित से भी मिलकर समय‑सत्यापन कर सकते हैं।



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