क्या आपकी कुंडली में है दो या तीन विवाह का योग? जानें उपाय

क्या आपकी कुंडली में है दो या तीन विवाह का योग? जानें उपाय

विवाह का विषय भारतीय ज्योतिष में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विशेष रूप से एकाधिक विवाह के योग को लेकर 'जातक पारिजात' और 'सर्वार्थचिंतामणि' जैसे ग्रंथों में गहराई से चर्चा की गई है। इस लेख में हम विस्तारपूर्वक इन योगों का वर्णन करेंगे, साथ ही ज्योतिषीय उपाय भी बताएंगे जो विवाह के क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं।

जातक पारिजात के अनुसार एकाधिक विवाह के योग

यदि सप्तमेश और शुक्र दोनों द्विस्वभाव राशि या अंश में स्थित हों, तो जातक की दो पत्नियाँ होंगी।

जब सप्तमेश केंद्र या कोण में हो, अपनी उच्च राशि या मित्र राशि में हो अथवा दशमेश से दृष्ट हो, तो जातक को अनेक पत्नियाँ प्राप्त हो सकती हैं।

जब दूसरे भाव में कई पाप ग्रह स्थित हों और सप्तमेश भी पाप ग्रह से दृष्ट हो, तो जातक को तीन पत्नियाँ प्राप्त होने का योग बनता है।

यदि सप्तम और अष्टम भाव में पाप ग्रह हों तथा मंगल द्वादश भाव में हो और उसका स्वामी अदृश्य हो, तो जातक की दूसरी पत्नी होने का संकेत मिलता है।

सर्वार्थचिंतामणि के अनुसार एकाधिक विवाह के योग

यदि सप्तम भाव का कारक पाप ग्रह से युत हो या जन्म तथा नवमांश में नीच का हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो, तो दो विवाह का योग बनता है।

यदि दूसरे और सातवें भाव में पाप ग्रहों का योग या दृष्टि हो तथा उनके स्वामी बलहीन हों, तो व्यक्ति की दूसरी पत्नी होगी।

यदि दूसरे या सातवें भाव में दो या अधिक पाप ग्रह हों तथा दूसरे और सातवें भाव के स्वामी पाप ग्रहों से युत/दृष्ट हों, तो तीन विवाह होते हैं।

यदि लग्न, दूसरे और सातवें भाव में पाप ग्रह हों तथा नीच का सप्तमेश ग्रहण आदि से ग्रस्त हो, तो भी ऐसा ही प्रभाव देखने को मिलता है। (यहाँ विवाह पहली पत्नी की मृत्यु के बाद होता है।)

यदि लग्न या सप्तमेश नीच का हो, ग्रहण अथवा क्रूर षड्यांश में हो, तो एक से अधिक विवाह का संकेत मिलता है।

यदि सप्तम भाव और सप्तमेश पाप ग्रहों के बीच में हों तो कलत्र योग बनता है, जिससे जातक की पत्नी की मृत्यु हो सकती है।

यदि सप्तम भाव में मंगल हो, तो जातक की कई पत्नियाँ हो सकती हैं। यदि सूर्य सप्तम भाव में हो, तो जातक का कुटुम्ब बड़ा होगा और उसकी कई पत्नियाँ होने का योग बनता है।

अन्य ज्योतिषीय दृष्टिकोण

नवमांश कुंडली: नवमांश कुंडली में सप्तम भाव का विशेष महत्व होता है। यदि नवमांश में सप्तमेश नीच का हो या पाप ग्रहों से प्रभावित हो, तो एकाधिक विवाह के संकेत प्रबल हो जाते हैं।

शुक्र का प्रभाव: शुक्र विवाह का मुख्य कारक है। यदि शुक्र राहु या केतु के साथ हो या शनि से प्रभावित हो, तो व्यक्ति के जीवन में वैवाहिक अस्थिरता देखी जा सकती है।

मंगल दोष: मंगल का प्रभाव यदि सप्तम या अष्टम भाव में हो, तो यह विवाह में देरी या पुनर्विवाह के योग को जन्म दे सकता है।

एकाधिक विवाह से बचाव के उपाय

ग्रह शांति पूजा: यदि कुंडली में पाप ग्रहों का प्रभाव अधिक हो, तो उचित पूजा-पाठ कर उनकी शांति करानी चाहिए।

रुद्राभिषेक: विवाह में देरी या एकाधिक विवाह के योग में रुद्राभिषेक अत्यंत प्रभावी होता है।

गायत्री मंत्र का जाप: रोज़ाना 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करना शुभ फलदायी होता है।

सप्तम भाव के ग्रहों का संतुलन: विशेष रूप से शुक्र, मंगल और शनि से जुड़े उपाय करने से विवाह संबंधित समस्याएँ दूर हो सकती हैं।

रत्न धारण: विवाह में बाधा के लिए पुखराज, गोमेद या मोती जैसे रत्न धारण करना लाभकारी हो सकता है।

एकाधिक विवाह के योग जातक की कुंडली में विशेष ग्रह स्थितियों के आधार पर बनते हैं। इन योगों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार से प्रकट हो सकता है। उचित उपायों और ज्योतिषीय परामर्श के माध्यम से इन दोषों का शमन संभव है। इस प्रकार, सही ज्ञान और मार्गदर्शन से वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है।