
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के उच्च और नीच होने का विशेष महत्व होता है। किसी ग्रह की उच्च स्थिति उसकी ऊर्जा को अधिकतम स्तर पर पहुंचाती है, जिससे वह अपनी पूरी शक्ति प्रदान करता है। वहीं, नीच स्थिति में ग्रह अपनी ऊर्जा को ठीक तरह से प्रकट नहीं कर पाता, जिससे उसकी शुभता प्रभावित होती है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कौन से ग्रह उच्च और नीच में होते हैं, उनके तत्व क्या हैं और वे किस प्रकार जीवन को प्रभावित करते हैं।
1. ग्रहों के तत्व और उनके गुण
ग्रहों के प्रभाव को समझने के लिए उनके तत्वों को जानना आवश्यक है। प्रत्येक ग्रह एक विशेष तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, जो उसके स्वभाव और प्रभाव को निर्धारित करता है।
सूर्य और मंगल - अग्नि तत्व ग्रह हैं, जो ऊर्जा, आत्मविश्वास और साहस का प्रतीक हैं।
चंद्र और शुक्र - जल तत्व ग्रह हैं, जो भावनाओं, सौंदर्य और प्रेम का कारक हैं।
बुध - पृथ्वी तत्व ग्रह है, जो बुद्धि, तार्किकता और व्यवहारिकता को दर्शाता है।
गुरु (वृहस्पति) - आकाश तत्व ग्रह है, जो ज्ञान, विस्तार और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
राहु और केतु - ये छाया ग्रह हैं, जिनका कोई स्थायी तत्व नहीं होता। ये भ्रम, छल-कपट और मायाजाल का निर्माण करते हैं।
2. ग्रहों के उच्च और नीच राशियां
ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह किसी विशेष राशि में उच्चतम प्रभावी (उच्च) और न्यूनतम प्रभावी (नीच) स्थिति में होता है।
सूर्य - मेष राशि में उच्च का और तुला राशि में नीच का होता है।
चंद्रमा - वृषभ राशि में उच्च का और वृश्चिक राशि में नीच का होता है।
मंगल - मकर राशि में उच्च का और कर्क राशि में नीच का होता है।
बुध - कन्या राशि में उच्च का और मीन राशि में नीच का होता है।
गुरु (वृहस्पति) - कर्क राशि में उच्च का और मकर राशि में नीच का होता है।
शुक्र - मीन राशि में उच्च का और कन्या राशि में नीच का होता है।
शनि - तुला राशि में उच्च का और मेष राशि में नीच का होता है।
3. उच्च ग्रहों के प्रभाव
ग्रह जब उच्च स्थिति में होते हैं, तो वे अपनी शुभ ऊर्जा को पूरी तरह प्रकट करते हैं।
सूर्य जब मेष राशि में उच्च होता है, तो व्यक्ति को नेतृत्व क्षमता, आत्मविश्वास और निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है।
चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च होने पर व्यक्ति को मानसिक शांति, भावनात्मक स्थिरता और परिवारिक सुख प्रदान करता है।
मंगल मकर राशि में उच्च होने पर व्यक्ति में साहस, पराक्रम और दृढ़ संकल्प का संचार करता है।
बुध कन्या राशि में उच्च होने पर व्यक्ति को तार्किक, व्यवहारिक और संवाद कुशल बनाता है।
गुरु कर्क राशि में उच्च होने पर व्यक्ति में ज्ञान, दानशीलता और धार्मिक प्रवृत्ति विकसित करता है।
शुक्र मीन राशि में उच्च होने पर व्यक्ति को प्रेम, कला, सौंदर्य और वैवाहिक सुख में सफलता दिलाता है।
शनि तुला राशि में उच्च होने पर व्यक्ति में अनुशासन, मेहनत और न्यायप्रियता को बढ़ाता है।
4. नीच ग्रहों के प्रभाव
ग्रह जब नीच स्थिति में होते हैं, तो उनकी सकारात्मक ऊर्जा कमजोर हो जाती है, जिससे नकारात्मक प्रभाव दिखाई देते हैं।
सूर्य तुला राशि में नीच होने पर व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी, आलस्य और निर्णय में अस्थिरता हो सकती है।
चंद्रमा वृश्चिक राशि में नीच होने पर व्यक्ति को मानसिक अस्थिरता, चिंता और तनाव का सामना करना पड़ता है।
मंगल कर्क राशि में नीच होने पर व्यक्ति में गुस्सा, जल्दबाजी और विवाद प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
बुध मीन राशि में नीच होने पर व्यक्ति में भ्रम, निर्णय में असमंजस और संचार में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
गुरु मकर राशि में नीच होने पर व्यक्ति में ज्ञान की कमी, आलस्य और नकारात्मक सोच उत्पन्न हो सकती है।
शुक्र कन्या राशि में नीच होने पर प्रेम संबंधों में समस्याएं, भौतिक सुख-सुविधाओं में कमी का सामना करना पड़ सकता है।
शनि मेष राशि में नीच होने पर व्यक्ति को संघर्ष, बाधाएं और निराशा का सामना करना पड़ सकता है।
5. ग्रहों के उच्च और नीच होने के ज्योतिषीय प्रभाव
उच्च और नीच ग्रहों का प्रभाव कुंडली के अन्य ग्रहों की स्थिति, दृष्टि, और युति पर निर्भर करता है। यदि उच्च ग्रह शुभ ग्रहों के साथ युति या दृष्टि में हो, तो उसके सकारात्मक प्रभाव और अधिक बढ़ जाते हैं। वहीं, नीच ग्रह यदि शुभ ग्रहों के प्रभाव में हों, तो उनका नकारात्मक प्रभाव कम हो जाता है।
6. विशेष उपाय
यदि किसी जातक की कुंडली में नीच ग्रहों के दुष्प्रभाव दिख रहे हों, तो कुछ विशेष उपायों द्वारा उन्हें कम किया जा सकता है।
सूर्य के लिए - सूर्य अर्घ्य दें और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
चंद्रमा के लिए - शिवलिंग पर जल अर्पित करें और रुद्राभिषेक करें।
मंगल के लिए - हनुमान चालीसा का पाठ करें और मंगलवार का व्रत करें।
बुध के लिए - गणपति पूजन करें और बुध मंत्र का जाप करें।
गुरु के लिए - गुरुवार को पीले वस्त्र पहनें और केले के वृक्ष का पूजन करें।
शुक्र के लिए - शुक्रवार को माता लक्ष्मी की आराधना करें और सफेद वस्त्र धारण करें।
शनि के लिए - शनिदेव का पूजन करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
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