कुंडलिनी जागरण और ज्योतिष: आध्यात्मिक ऊँचाई की ओर अग्रसर होने का मार्ग

कुंडलिनी जागरण और ज्योतिष: आध्यात्मिक ऊँचाई की ओर अग्रसर होने का मार्ग

आध्यात्मिक जागरण की राह में कुंडलिनी का जागरण अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है। सिद्ध योगी योग, ध्यान और ज्ञान के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति को जागृत करके ब्रह्मज्ञान प्राप्त करते हैं। यह प्रक्रिया अत्यंत कठिन होती है और मन की संपूर्ण एकाग्रता एवं साधना की आवश्यकता होती है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति का कुंडलिनी जागरण में विशेष प्रभाव पड़ता है।

कुंडलिनी और ग्रहों का संबंध

कुंडलिनी जागरण के लिए व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों और शरीर के चक्रों के बीच संतुलन होना आवश्यक है। प्रत्येक चक्र का संबंध एक विशिष्ट ग्रह से होता है:

कुंडलिनी ऊर्जा - राहु

मूलाधार चक्र (मूल शक्ति केंद्र) - शुक्र

स्वाधिष्ठान चक्र (रचनात्मकता और काम ऊर्जा) - मंगल

मणिपुर चक्र (आत्मबल और शक्ति केंद्र) - सूर्य

अनाहत चक्र (हृदय केंद्र) - गुरु (बृहस्पति)

विशुद्ध चक्र (आवाज और अभिव्यक्ति) - बुध

आज्ञा चक्र (तीसरा नेत्र) - चंद्र

सहस्राधार चक्र (मस्तिष्क का ऊपरी केंद्र) - शनि

ओजस (समाधि) - केतु

कुंडलिनी जागरण में सहायक योग

कुंडली में कुछ विशेष योग बनते हैं तो व्यक्ति को कुंडलिनी जागरण में सरलता होती है:

गुरु, सूर्य, चंद्र अथवा राहु के केंद्र (1, 4, 7, 10) या त्रिकोण (1, 5, 9) में होने से।

शुक्र, शनि या गुरु के केंद्र या त्रिकोण में स्थित होने अथवा इन ग्रहों के बीच युति, प्रतियुति या परिवर्तन योग बनने से।

गुरु का आठवें भाव में स्थित होना, अथवा आठवें भाव में अन्य शुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ना।

दशम भाव के स्वामी के साथ शुक्र का केंद्र या त्रिकोण में होना, विशेषतः परिवर्तन योग, युति या प्रतियुति में।

राहु और कुंडलिनी जागरण

राहु जब जन्मकुंडली में अग्नि या वायु तत्व की राशि (मेष, सिंह, धनु, मिथुन, तुला, कुंभ) में स्थित हो, तो व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने में सहायता होती है।

दीक्षा के लिए ग्रहों का महत्व

सत्य सनातन साधना में किसी संत या गुरु से दीक्षा लेने के लिए शनि और चंद्र का शुभ स्थिति में होना आवश्यक है। इस दौरान गुरु और शुक्र का सूर्य के साथ युति में न होना भी महत्वपूर्ण है। यह ग्रह योग व्यक्ति को दिव्यता की ऊँचाइयों पर पहुँचने में सहायता करता है।

व्यक्ति का व्यक्तित्व और चक्रों का प्रभाव

हमारे व्यक्तित्व का केंद्र यह दर्शाता है कि हमारे भीतर कौन-सा चक्र सबसे अधिक सक्रिय है। इसका प्रभाव हमारे स्वभाव, सोच, व्यवहार और ऊर्जा पर पड़ता है।

मूलाधार चक्र सक्रिय होने पर व्यक्ति का जीवन भौतिक सुख-सुविधाओं पर केंद्रित रहता है। इसका स्वामी शुक्र होता है।

स्वाधिष्ठान चक्र प्रभावी होने पर व्यक्ति रचनात्मक, ऊर्जावान और जोश से भरा रहता है। मंगल इसका स्वामी है।

मणिपुर चक्र सक्रिय होने पर आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और साहसिकता प्रबल होती है। सूर्य इसका स्वामी है।

अनाहत चक्र जागृत होने पर व्यक्ति करुणाशील, प्रेममय और परोपकारी होता है। गुरु इस चक्र का स्वामी है।

विशुद्ध चक्र के प्रभावी होने पर व्यक्ति प्रभावी वक्ता, बुद्धिमान और तार्किक प्रवृत्ति का होता है। बुध इसका स्वामी है।

आज्ञा चक्र जागृत होने पर व्यक्ति आत्मज्ञान और ईश्वरीय दृष्टि प्राप्त करता है। चंद्र इसका स्वामी है।

सहस्राधार चक्र जागृत होने पर व्यक्ति समाधि अवस्था में पहुँचकर दिव्य शक्ति प्राप्त कर लेता है। शनि इसका स्वामी है।

कुंडलिनी जागरण के लाभ

मानसिक शांति और स्थिरता

आध्यात्मिक शक्ति और आत्मज्ञान की प्राप्ति

मनोबल और आत्मविश्वास में वृद्धि

रोगों से मुक्ति और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार

जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और सफलता की प्राप्ति

कुंडलिनी जागरण एक गहन साधना प्रक्रिया है जिसमें ज्योतिषीय योगों का विशेष महत्व है। ग्रहों और चक्रों के बीच का यह सामंजस्य साधक को आत्मिक ऊँचाइयों तक पहुँचाने में सहायक होता है। उचित साधना, ध्यान और गुरु के मार्गदर्शन से व्यक्ति दिव्यता और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कर सकता है।