विवाह का सुख और ज्योतिषीय योग

विवाह का सुख और ज्योतिषीय योग

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख प्राप्त करता है, जिसमें घर, वाहन सुख आदि सम्मिलित हैं। शुक्र यौन अंगों और वीर्य का भी कारक माना जाता है। यह सुख, उपभोग, विलास और सुंदरता के प्रति आकर्षण उत्पन्न करता है। विवाह के प्रारंभिक समय में गृहस्थी सुचारू रूप से चलती है, किंतु कुछ समय बाद पति-पत्नी में कलह, झगड़े और अनबन होने लगते हैं, जिससे जीवन तनावपूर्ण हो जाता है। इन स्थितियों के लिए जन्म कुंडली में उपस्थित कुछ योग और दोष उत्तरदायी होते हैं। इसलिए, विवाह तय करने से पूर्व कुंडली मिलान के दौरान इन योगों का अवलोकन आवश्यक होता है।

विवाह और सप्तम भाव का महत्व

सप्तम भाव में शुभ योग: यदि सप्तम भाव में उसका स्वामी (सप्तमेश) स्वग्रही हो और किसी पाप ग्रह की युति या दृष्टि न हो, तो यह दांपत्य सुख के लिए शुभ होता है।

दांपत्य सुख में कमी: यदि स्वग्रही सप्तमेश पर शनि, मंगल या राहु में से दो ग्रहों की संपूर्ण दृष्टि या युति हो, तो यह दांपत्य जीवन को प्रभावित कर सकता है और सुख में कमी आ सकती है।

शुक्र के साथ अन्य ग्रहों का प्रभाव: यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश या पंचमेश की युति हो, तो दांपत्य जीवन सुखद होता है, जबकि षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश से संबंध होने पर सुख में कमी आती है।

शुभ ग्रहों का प्रभाव: यदि सप्तमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, सप्तमेश से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, तथा चंद्र और शुक्र पर भी शुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखमय और प्रेमपूर्ण होता है।

सुंदर और गुणवान जीवनसाथी: यदि लग्नेश सप्तम भाव में स्थित हो और चतुर्थेश की शुभ दृष्टि हो, साथ ही अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों, तो ऐसा जातक अत्यंत सुंदर, सुशील और गुणवान जीवनसाथी प्राप्त करता है। (यह योग कन्या लग्न में मान्य नहीं होगा।)

स्नेहपूर्ण दांपत्य जीवन: यदि सप्तमेश केंद्र, त्रिकोण या एकादश भाव में स्थित हो, तो दांपत्य जीवन अत्यंत मधुर और प्रेमपूर्ण रहता है। यदि सप्तमेश और शुक्र उच्च राशि में या स्वराशि में हों और उन पर पाप ग्रहों का प्रभाव न हो, तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है।

पति और पत्नी के लिए विशेष ग्रह योग

पुरुष की कुंडली में: शुक्र स्त्री सुख का कारक ग्रह होता है। यदि सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो और शुक्र एवं चतुर्थेश भी साथ हों, तो पति-पत्नी का जीवन प्रेमपूर्ण रहता है।

स्त्री की कुंडली में: पति सुख का कारक ग्रह बृहस्पति होता है। यदि सप्तमेश बलवान हो और बृहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो, तो ऐसी स्त्री को उत्तम पति सुख प्राप्त होता है।

सुखी और पुत्रवान स्त्री: यदि स्त्री की कुंडली में द्वितीय, सप्तम और द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में स्थित हों और बृहस्पति की दृष्टि हो, तो वह अत्यंत सुखी, पुत्रवान और समृद्ध होती है।

स्नेहपूर्ण संबंध: यदि पुरुष का सप्तमेश जिस राशि में स्थित हो, वही राशि स्त्री की भी हो, तो पति-पत्नी के बीच गहरा प्रेम रहता है।

गण और राशि का मेल: यदि वर-कन्या एक ही गण के हों और उनकी राशि स्वामियों में मित्रता हो, तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है।

मंगल और शुक्र का प्रभाव: यदि सप्तम भाव में मंगल और शुक्र स्थित हों, तो व्यक्ति में प्रबल कामवासना होती है। ऐसे जातकों को समान ग्रह स्थिति वाले जीवनसाथी का चुनाव करना चाहिए।

कुंडली मिलान में अन्य महत्वपूर्ण बिंदु

दोनों कुंडलियों का संतुलन: यदि एक की कुंडली में दांपत्य सुख हो और दूसरे की कुंडली में न हो, तो विवाह के बाद भी सुख नहीं मिल पाता। इसलिए, गुण मिलान के अलावा स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति और संतान योग का भी अध्ययन आवश्यक होता है।

आयु का संतुलन: वर-वधु की आयु में अधिक अंतर नहीं होना चाहिए।

शारीरिक सामंजस्य: दोनों की लंबाई, ऊंचाई, मोटाई और सुंदरता में भी साम्य होना आवश्यक है। कई बार धनी माता-पिता अपनी साधारण रूपवती कन्या का विवाह धन के लालच में सुंदर और गौरवर्ण युवक से कर देते हैं, जो आगे चलकर दांपत्य कलह का कारण बनता है।

इसलिए, विवाह से पूर्व सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से कुंडली मिलान और अन्य आवश्यक विश्लेषण अवश्य करवाना चाहिए, ताकि भविष्य में दांपत्य जीवन सुखमय और शांतिपूर्ण बना रहे।