
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का परिचय
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। यह मंदिर ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित है और यहाँ से गोदावरी नदी का उद्गम होता है।
त्र्यंबकेश्वर को तीनों लोकों के स्वामी (त्र्यम्बक) भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। यहाँ का ज्योतिर्लिंग अन्य ज्योतिर्लिंगों से थोड़ा भिन्न है क्योंकि इसमें भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के भी प्रतीक चिन्ह मौजूद हैं।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
1. गौतम ऋषि और गोदावरी नदी की उत्पत्ति
पुराणों के अनुसार, एक बार गौतम ऋषि ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अन्न और जल की अनंत प्राप्ति का वरदान दिया।
इससे अन्य ऋषियों को जल और भोजन के लिए किसी प्रकार की परेशानी नहीं हुई।
लेकिन कुछ ऋषि और देवता गौतम ऋषि से ईर्ष्या करने लगे और उन्होंने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए एक योजना बनाई।
उन्होंने एक गौ (गाय) को उनके खेतों में भेज दिया, ताकि गौतम ऋषि पर गौहत्या का दोष लग सके।
गौतम ऋषि ने जैसे ही उस गाय को हटाने के लिए घास का तिनका फेंका, वह गिरकर मर गई।
इससे ऋषि पर गौहत्या का पाप लग गया और अन्य ऋषियों ने उन्हें पवित्र होने के लिए गोदावरी नदी में स्नान करने का सुझाव दिया।
गौतम ऋषि ने भगवान शिव की तपस्या की और उनसे गोदावरी नदी को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना की।
भगवान शिव प्रसन्न हुए और गंगा (गोदावरी) नदी को धरती पर अवतरित किया।
इस घटना के बाद भगवान शिव यहाँ त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व
1. गोदावरी नदी का उद्गम स्थल
त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास ही गोदावरी नदी का उद्गम स्थान है, जिसे कुशावर्त तीर्थ कहा जाता है।
यह नदी दक्षिण भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है।
2. अद्वितीय ज्योतिर्लिंग
अन्य ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव की मूर्ति होती है, लेकिन यहाँ भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एक साथ पूजा की जाती है।
ज्योतिर्लिंग का आकार स्वयंभू है और यह धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है, जिसे कालचक्र का संकेत माना जाता है।
3. कालसर्प दोष निवारण
त्र्यंबकेश्वर मंदिर कालसर्प दोष की पूजा के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
यहाँ कई भक्त अपने जन्म कुंडली में मौजूद दोषों को दूर करने के लिए विशेष पूजा करवाते हैं।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का इतिहास और निर्माण
1. पुराणों में उल्लेख
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और अन्य हिंदू ग्रंथों में मिलता है।
इसे पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है और यहाँ महर्षि गौतम, अगस्त्य और वशिष्ठ ने तपस्या की थी।
2. पेशवाओं द्वारा पुनर्निर्माण
वर्तमान मंदिर का निर्माण 1765 ई. में पेशवा बाजीराव प्रथम के पुत्र बालाजी बाजीराव (नाना साहब) ने करवाया।
यह मंदिर ब्लैक स्टोन (काले पत्थर) से निर्मित है और इसकी वास्तुकला अत्यंत भव्य है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का स्थान और यात्रा मार्ग
स्थान
राज्य – महाराष्ट्र
जिला – नासिक
ऊँचाई – समुद्र तल से 700 मीटर
कैसे पहुँचे?
हवाई मार्ग – निकटतम हवाई अड्डा ओझार एयरपोर्ट (नासिक) – 30 किमी है।
रेल मार्ग – निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक रोड रेलवे स्टेशन (28 किमी) है।
सड़क मार्ग –
त्र्यंबकेश्वर नासिक शहर से मात्र 30 किमी की दूरी पर है।
मुम्बई से नासिक पहुँचने के लिए बसें और टैक्सियाँ आसानी से उपलब्ध हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती पहननी अनिवार्य है।
यहाँ विशेष रूप से रुद्राभिषेक, कालसर्प दोष निवारण पूजा और नारायण नागबली पूजा की जाती है।
मंदिर में सावन, महाशिवरात्रि और कुंभ मेला अत्यंत धूमधाम से मनाए जाते हैं।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की तीनों लोकों में अधिपत्य और पवित्रता का प्रतीक है।
जो भी भक्त श्रद्धा और भक्ति से यहाँ पूजा करता है, उसे पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। यह स्थान कालसर्प दोष निवारण और गोदावरी स्नान के लिए भी प्रसिद्ध है।
क्या आप इस पवित्र स्थल की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं?
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