विवाह और साझेदारी के दृष्टिकोण से सप्तम स्थान ज्योतिष में अत्यधिक महत्व रखता है। यह स्थान कलत्र (जीवनसाथी) के साथ-साथ केंद्र स्थान के रूप में भी जाना जाता है। सप्तम स्थान में ग्रहों की स्थिति व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। यह न केवल विवाह के स्वभाव को दर्शाता है बल्कि लग्न (आत्मा) को भी प्रभावित करता है।
सप्तम भाव में चंद्रमा की स्थिति
शुभ स्थिति:
जब सप्तम भाव में चंद्रमा बलवान (पूर्णिमा के आसपास) होता है, तो यह अत्यंत शुभफल प्रदान करता है।
यह बुद्धिमत्ता, स्नेहपूर्ण स्वभाव, और संतुलित मानसिकता का कारक होता है।
पुरुष की कुंडली में यह जीवनसाथी के रूप में सुंदर, बुद्धिमान, और समर्पित जीवनसंगिनी का संकेत देता है।
यह चंद्रमा जीवन में प्रसन्नता, यात्रा का सुख, मृदुभाषी स्वभाव, और वाक्पटुता प्रदान करता है।
जातक में व्यापारी कुशलता होती है और उसे विदेशी सहयोग से लाभ मिलता है।
जीवन के उत्तरार्ध में यह चंद्रमा यश और सौभाग्य का कारक बनता है।
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अशुभ स्थिति:
यदि सप्तम स्थान में चंद्रमा कृष्ण पक्ष का हो (क्षीण चंद्रमा), तो यह स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत देता है।
अशुभ दृष्टि पड़ने पर यह जीवनसाथी की अस्वस्थता या वैवाहिक जीवन में असंतोष उत्पन्न कर सकता है।
स्त्रियों की कुंडली में सप्तम स्थान का चंद्रमा प्रियदर्शी और गुणी जीवनसाथी का संकेत देता है, लेकिन पाप ग्रहों के प्रभाव से समस्याएं बढ़ सकती हैं।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:
पुत्र भाग्य: सप्तम स्थान में शुभ चंद्रमा जातक के लिए पुत्र भाग्य का कारक बनता है।
यात्रा और व्यवसाय: यह जातक को यात्राओं का आनंद और व्यापार में सफलता दिलाने वाला बनाता है।
विदेशी संबंध: सप्तम चंद्रमा विदेशी सहयोग और वैश्विक दृष्टिकोण के साथ उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
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सप्तम भावगत चंद्रमा का प्रभाव जातक की वैवाहिक जीवन, साझेदारी, और सामाजिक संबंधों पर गहरा प्रभाव डालता है। बलवान चंद्रमा जहां शुभता और प्रसन्नता लाता है, वहीं अशुभ स्थिति में यह चिंता और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
कुंडली का समग्र विश्लेषण करके ही सटीक उपाय और फलादेश किया जा सकता है।
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