ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली के द्वितीय भाव को धन, वाणी, परिवार, भोजन, और संपत्ति से संबंधित माना जाता है। इस भाव में नव ग्रहों की स्थिति जातक के जीवन में इन पहलुओं पर व्यापक प्रभाव डालती है। आइए जानते हैं, सूर्यादि नव ग्रहों का दूसरे भाव में क्या फल होता है।
सूर्य का द्वितीय भाव में फल
यदि कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य विराजमान हो तो व्यक्ति आमतौर पर संपत्तिवान और भाग्यवान होता है। ऐसे जातक का स्वभाव झगड़ालू हो सकता है और नेत्र, मुख, एवं दंत संबंधी रोगों का सामना करना पड़ सकता है। स्त्रियों के मामले में, ऐसे व्यक्ति का कुटुंब से झगड़ा होने की संभावना रहती है।
चंद्रमा का द्वितीय भाव में फल
द्वितीय भाव में चंद्रमा होने पर जातक मधुरभाषी, सुंदर, भोगी, और परदेश में रहने वाला हो सकता है। ऐसा व्यक्ति सहनशील और शांतिप्रिय होता है। इसका व्यक्तित्व सौम्य और दूसरों के साथ व्यवहार मधुर होता है।
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मंगल का द्वितीय भाव में फल
दूसरे भाव में मंगल होने पर जातक कटुभाषी हो सकता है, धन की कमी से जूझता है, और संभवतः पशुपालन से जुड़ा रहता है। ऐसे जातक को नेत्र और कान से संबंधित रोग हो सकते हैं, लेकिन वह धर्म और धार्मिक कार्यों के प्रति प्रेम रखता है।
बुध का द्वितीय भाव में फल
दूसरे भाव में बुध होने से जातक बुद्धिमान और परिश्रमी होता है। वह सभा, मंच या किसी भी सार्वजनिक स्थान पर अपनी वाणी से दूसरों को प्रभावित कर सकता है। ऐसा व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
गुरु का द्वितीय भाव में फल
गुरु का दूसरे भाव में होना जातक को कवि और विद्वान बनाता है। उसमें राज्य संचालन की क्षमता होती है और वह बड़े नेतृत्व कार्यों में सफलता प्राप्त कर सकता है। इसके साथ ही ऐसा जातक अपनी बुद्धि और ज्ञान से समाज में मान-सम्मान प्राप्त करता है।
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शुक्र का द्वितीय भाव में फल
यदि शुक्र दूसरे भाव में हो तो जातक धनवान, यशस्वी और साहसी होता है। उसे कवि और भाग्यवान भी माना जाता है। ऐसा व्यक्ति भौतिक सुखों में रुचि रखता है और जीवन में ऐश्वर्य का आनंद उठाता है।
शनि का द्वितीय भाव में फल
यदि शनि दूसरे भाव में हो और कुंभ या तुला राशि का हो, तो जातक धनी, कुटुंब से अलग रहने वाला और लाभकारी होता है। अन्य राशियों में शनि होने पर जातक कटुभाषी हो सकता है और भाई-बंधुओं से अलगाव का सामना करना पड़ सकता है।
राहु का द्वितीय भाव में फल
द्वितीय भाव में राहु का होना जातक को परदेश जाने वाला बनाता है। ऐसे जातक की अल्प संतान होती है और धन की कमी से ग्रस्त हो सकता है। राहु के प्रभाव से व्यक्ति को परिवार से अलगाव या दूरी की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
केतु का द्वितीय भाव में फल
यदि दूसरे भाव में केतु स्थित हो तो जातक राजभीरु, विरोधी और आत्मसंशय से ग्रस्त हो सकता है। ऐसा व्यक्ति अपने कार्यों को लेकर अनिश्चित हो सकता है और दूसरों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रख सकता है।
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