हम वैदिक, ज्योतिष, तंत्रादिक विषयों को विज्ञान कहने से क्यों डरते हैं।
निश्चित हमारा वैदिक, ज्योतिष, तंत्रादिक, मंत्रादिक, और यंत्रादि ज्ञान सत्य है और जो सत्य है वही विज्ञान है हमें इसपर गर्व भी है विस्वास भी .... परंतु विस्वास से ही काम नहीं चलेगा... प्रमाणित करके भी बताना पडेगा..... क्षमाकरें
क्यों इसको भी समझे:-
हमारे तंत्र सास्त्र में हजारों यंत्र(ताबीज) बनाने के तरीके हमारे ऋषियों ने दिये हैं....
और हम अब भी लडकी पटाने या धन प्राप्ती के ताबीज बेच रहे हैं....
जबकि वैज्ञानिकों ने उसी विध्याऔं को मोबाइल सिम, मैमोरी चिप जैसे यंत्र बनाकर आपको बेच दिया.... और बडे-बडे तांत्रिक उनका उपयोग कर रहे है.... और डींगे हाँकते नहीं थकते कि हमारा वेद.... परंतु उसे हकीकत के धरातल पर उतारने की बात पर बगलें झाँकते है... क्षमाकरें।।
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गीता में भी भगवान क्रष्ण ने बताया है... विज्ञान युक्त ज्ञान ही सर्वोपरि होता है।।
हम सारे तंत्र-मंत्र-यंत्र की बात करने वाले डींगे तो हाँकते हैं.... सम्होहन, मारण, उच्चाटन आदि की... पर एक भी अपस्ताल में जाकर मरीज को बेहोश करके नहीं दिखा सकता.... परंतु अमेरिका ने इसी सम्होहन (हिप्नोटिज्म) को सर्जरी से पहले बेहोश करने के लिऐ उपयोग करना सुरू कर दिया है और मेडीकल विज्ञान में सामिल कर दिया है....
बंधुवर हम वैदिक मंत्रों को.. तोता रटंत में लगे हैं... और इतराते है... हमारा वैदिक, हमारे मंत्र..... परंतु एक भी मांत्रिक उन सूत्रों(मंत्रों) का तात्पर्य नहीं जानता...
परंतु आइंस्टीन ने..
"या देवी सर्वभूतेषु, शक्तीरूपेण संस्तिथा" जैसे एक मंत्र को समझकर उसपर खोज की ... और परमाणु की असीम शक्ती को "परमाणु विघटन करके" उसकी भयानक शक्ती को साकार प्रमाणित कर दिया... हम बस इस मंत्र का जाप ही कर रहे हैं।
जब भी हमारी वैदिक-विज्ञान को प्रमाणित करने कि बात आती है... तो हमारे देश के विद्वान सिर्फ ये कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं.... हमें अपने वेद और ऋषियों की खोज पर गर्व है.... फिर हम उसे विज्ञान कहने से डरते क्यों हैं... सायद उसे साकार (प्रमाणित) करने की हमारी औकात नहीं हैं..... ।।
कटुसत्य तो यही है।
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अधिकतर तंत्र-मंत्र-यंत्र के दावे और और रटी हुई (वैदिक)किताबी बातें सुनाकर लोगों को गुमराह करने वाले और खुद को ज्ञानी कहने वाले... ज्योतिष , तंत्रादि वैदिक-विज्ञान की कथाऐं सुनाना सीख गये हैं.... परन्तु एक भी ज्योतिष या तंत्रादिक ज्ञानी उन वैदिक सूत्रों को दूनियां के वैज्ञानिक समुदाय के सामने साकार करके दिखाने हिम्मत क्यों नहीं दिखाता.... मालुम है क्यों
क्योंकि सभी ने तोते की तरह रटा है... उसको साकार करने की साधना ही नहीं की है और किसी का इष्टवल इतना नहीं है कि अपनी कथनी को प्रमाणित कर सके ।।
निश्चित हमारे वैदिक ज्ञान और महिर्षियों पर हमैं गर्व है.... परन्तु इससे काम नहीं चलेगा... तंत्र-मंत्र-यंत्र का गुणगान करके विद्वान कहलाने से काम नहीं चलेगा... उसको दुनियां के सामने ... आइंस्टीन, और जेम्स की तरह साकार करके दिखाना ही होगा....वैदिक काल में भी ब्रह्मऋर्षी को प्रमाणित करना पडता था... और साकार करना ही सही माइनों में ऋषी-परम्परा थी.... और रहेगी भी।।
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हिम्मत है तो करके दिखाओ... तब हम नहीं सारी दुनियाँ कहेगी... कि भारतीय वैदिक-विज्ञान और ऋषियों पर गर्व है.... ऐसा साबित करना होगा...
कैसे करें प्रमाणित
अगर सम्मोहन कर सकते हो तो.... मैडीकल कोलेज में जाकर साबित करो.... मरीज को बेहोश करो.... या बेहोश को होश में लाओ.... बातें करने से ऋषियों का सम्मान नहीं होगा।।
मारण करने का कोई... यंत्र या तंत्र साधक है तो... फोज के साथ खडे होकर... दुश्मन को मार कर दिखाओ.... डींगे हाँकने से काम नहीं चलेगा।।। देश को आवस्यकता है दुश्मन को मारण करने वालों की..... कहा छुपकर बैठे हैं.... मूठ मारने वाले.... सामने क्यों नहीं आते।।
अगर तारण विध्या का कोई साधक है... तो प्रसूति डाक्टर के पास जाकर... उलझी हूई डिलेवरी को सामान्य प्रसूति करके बताओ... और माँ-गर्भस्थ शिशू को तार के प्रमाणित कर दो.... तारण विध्या ये है...।।
उच्चाटन का माहिर है... तो किसी एक ही आतंकवादी... या देश-द्रोही का हृदय परिवर्तन करके साबित कर दो कि.... ऐसे मन उच्चटित होता है.....
वाल्मीकी जैसे डाकू को हृदय परिवर्तन करके बताया था ऋषियों ने रामायण में ऐसे कई उदाहरण है।।
लोगों को सुनाने से वैदिक-ऋषियों पर गर्व नहीं होगा।।।
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हाथ जोडकर प्रार्थना है....
आओ हम सभी मिलकर.... ये प्रमाणित करने का प्रयास करें... कि हमारे भारतीय महिर्षियों की यतार्थ वैदिक-विज्ञान हर मुशीबत में साकार होकर... मानव कल्याण के काम आ सकती है... और हमारे तंत्र-मंत्र-यंत्र भी मशीनी क्षमतायुक्त हो सकते हैं....
हम भी मन की गती से चलने वाले यंत्र बना सकते हैं। हम भी सम्मोहन, मारण, उच्चाटन आदि क्रियाओं का डाक्टरों के साथ मिलकर मानवीय प्रयोग कर सकते हैं.....
हम भी साधना शक्ती से अपने शरीर के विधुत-प्रवाह से करंट देकर (पागल खाने के रोगी को) शौक दे सकते हैं उसको ठीक कर सकते हैं।। हम भी पूरी दुनियां के सामने वैदिक-विधाऔ को प्रमाणित कर सकते हैं।। ..... ज्योतिष-तंत्र तो विज्ञान था, है, और रहेगा.... ये हम सिद्ध करके दिखा सकते हैं.... और यही हमारे जीवन का लक्ष्य भी है।।
जिसको कोई शंका-कशंका हो वो पर्सनल संम्पर्क कर सकता है:-
शक्ती-उपासक:- पं.कृपाराम उपाध्याय (ज्योतिर्विद , तत्ववेक्ता एवं तंत्रज्ञ)
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