नौ दिनों में देवी के विभिन्न रूपों की उपासना विशेष नैवेद्य और मंत्रों के साथ की जाती है। यहां प्रत्येक दिन के अनुसार बीज मंत्र और नैवेद्य का विवरण है:
प्रतिपदा तिथि: शुद्ध घी अर्पित करें।
मंत्र: ह्रीं शिवायै नम:।
द्वितीय तिथि: शक्कर का भोग लगाकर दान करें।
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मंत्र: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
तृतीया तिथि: दूध का दान करें।
मंत्र: ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
चतुर्थी तिथि: मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करें।
मंत्र: ऐं ह्री देव्यै नम:।
पंचमी तिथि: केले का नैवेद्य अर्पित करें।
मंत्र: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
षष्ठी तिथि: मधु से पूजा करें।
मंत्र: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
सप्तमी तिथि: गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें।
मंत्र: क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
अष्टमी तिथि: नारियल का भोग लगाएं।
मंत्र: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
नवमी तिथि: काले तिल का नैवेद्य अर्पित करें।
मंत्र: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
नवरात्रि के इस पावन अवसर पर देवी दुर्गा की उपासना से न केवल अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम किया जा सकता है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता भी लाई जा सकती है। उपरोक्त साधनाओं और मंत्रों का पालन करके आप अपनी जीवन की कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं। नवरात्रि का यह पर्व आपको सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति दिलाए। जय माता दी!
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Very useful information by ALSO GROUP and Special thanks for Dear Prof. Kartikbhai Raval..